उत्तराखंड का विश्वप्रसिद्ध चमत्कारिक धाम | फेसबुक और एप्पल के मालिक के गुरू का आश्रम
दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे धाम, आश्रम या फिर मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद आप लोगो ने सुना होगा और बहुत से लोगों ने इस धाम के दर्शन भी किए होंगे। इस धाम को किसी परिचय की जरूरत नहीं है। इस धाम के चमत्कार से भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व परिचित हैं। उत्तराखंड को देवो की भूमि देवभूमि कहा जाता है और यहां के धार्मिक महत्व के बारे में पूरा विश्व जानता हैं। तो चलिए ऐसे ही एक विश्व प्रसिद्ध धाम के बारे में जानते हैं:-
कैंची धाम
यह धाम उत्तराखंड के नैनीताल जिले में नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर, भवाली से 9 किलोमीटर और अल्मोड़ा से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस धाम को कैंची मंदिर , नीम करौली धाम और नीम करौली आश्रम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर बाबा नीम करौली महाराज जी ने बनवाया है, जो चमत्कारी बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। बाबा नीम करौली महाराज जी केवल उत्तराखंड में ही चमत्कारी बाबा के नाम से नहीं जाने जाते हैं, बल्कि इनकी चमत्कारी की कथाएं विदेशों तक फैली हुई है। बाबा नीम करौली महाराज जी हनुमान जी के भक्त थे, इसलिए नीम करौली महाराज जी को भगवान हनुमान जी का रूप माना जाता हैं।
इस मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण बाबा नीम करौली महाराज जी की कृपा से ही हुआ है। कहा जाता है कि सन् 1962 के आस-पास बाबा नीम करौली महाराज जी के कदम रखते ही यहां की धरती धन्य हो गई। ऐसा कहा जाता है कि बाबा नीम करौली महाराज जी हनुमान जी का दूसरा रूप है। बाबा जी ने और इनके भक्तों ने सन् 1964 में कैंची धाम मंदिर में हनुमान जी का भव्य मंदिर बनवाया। इस मंदिर में हनुमान जी के अलावा अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी है। अब तो यहां पर बाबा नीम करौली महाराज जी की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित कर दी गई है। बाबा जी एक सिद्धि पुरुष थे, उनकी सिद्धियों के विषय में अनेक कथाएं देश-विदेशो में प्रसिद्ध है।
कैंची मंदिर एक आस्था का केंद्र है। यह मंदिर पीले और सिंदूरी रंग से सजाया गया है। यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं। हर साल 15 जून को यहां एक विशाल मेले और भंडारे का आयोजन होता है, जो कि इसके स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मेले की भव्यता और बाबा जी की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 15 जून को प्रशासन को उस दिन रोड मार्ग बंद करना पड़ जाता है, लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होने की वजह से। यहां पर भगवान श्री हनुमान जी का भव्य मंदिर भी 15 जून को ही बनाया गया था। इस दिन भक्तजन यहां इस मंदिर में पहुंचकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते हैं।
इस मंदिर का नाम कैंची धाम यहां के दो जबरदस्त मोड़ो की वजह से रखा गया है, जो कैंची के आकार के दिखाई देते हैं। यह मन्दिर चारो तरफ से सुन्दर से पहाड़ो से घिरा हुआ नदी के किनारे स्थित है, मानो ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वर्ग हो।
बाबा जी के बारे में और जाने तो पता चलता है कि बाबा जी का वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण था। इनका जन्म एक ब्राह्मण जमींदार के घर में सन् 1900 ई. के आस-पास हुआ था, जो अकबरपुर नामक गांव जिला फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश में स्थित है। बचपन से ही बाबा जी का संसार से मोह हट गया था। 11 साल की उम्र में उनका विवाह हो चुका था। विवाह के कुछ समय बाद वह अपना घर छोड़कर गुजरात चले गए। कहा जाता है कि बाबा जी ने गुजरात एवं भारत के अन्य जगहों मे भ्रमण किया। नीम करौली महाराज जी बीसवीं शताब्दी के महान संतों में जाने जाते हैं। पश्चिमी देशों में इन्हें बाबा रामदास और भगवान दास के नाम से जाना जाता हैं।
कथाओं से पता चलता है कि बाबा नीम करौली महाराज जी कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे, बल्कि बाबा जी को भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में पहले ही संदेह हो जाता था। कहा जाता है कि सन् 1962 ई. में बाबा जी ने अपने अनेक चमत्कारों से यहां के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया, जिससे लोगों का विश्वास बाबा जी के प्रति और बढ़ गया।
बाबा जी को यह स्थान बहुत पसंद था। वह हर गर्मियों में यहां आ कर रहा करते थे। बाबा जी हनुमान जी के भक्त थे और यह तपस्या और आराधना भी हनुमान जी की ही किया करते थे। इन्होंने अपनी तपस्या नीम करौली नामक स्थान पर की थी, जिससे इनको नीम करौली महाराज जी कहा जाने लगा। 17 वर्ष की आयु में ही बाबा को संसार के सभी ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी, उनको इतनी छोटी सी उम्र में ही भगवानों के बारे में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया था। पुरानी कथाओं के अनुसार हमको पता चलता है कि भगवान श्री हनुमान उनके गुरु थे।
कहते हैं कि बाबा पर बजरंगबली की विशेष कृपा थी। भगवान हनुमान जी की भक्ति के कारण ही उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई। बाबा जी जहां भी जाते थे, वहीं हनुमान जी का मंदिर बनवाते थे। लखनऊ का हनुमान मंदिर भी बाबा नीम करौली महाराज जी ने ही बनवाया है।
यह मंदिर उत्तराखंड का एक ऐसा तीर्थ स्थल है, जहां साल भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। यहां आकर भक्तजन बाबा नीम करौली महाराज जी की अराधना कर उनकी मूर्ति पर फूल चढ़ाते हैं और मन्नत मांगते हैं। इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी बाबा नीम करौली महाराज जी के दरबार में आता है, वह खाली हाथ नहीं जाता है। बाबा जी से उनके भक्त जो कुछ भी मन्नत मांगते हैं, वह बाबा जी अवश्य ही पूरा करते है। इस धाम में कुछ ही समय पूर्व एक ध्यान केंद्र भी बनाया गया है, जिसमें विदेशी भक्त काफी संख्या में आकर बाबा जी का ध्यान लगाते हैं। इस धाम में प्रसाद के रूप में चने दिए जाते हैं, जो इस धाम की पहचान बन गया है।
बाबा नीम करौली महाराज जी की प्रसिद्धि का अंदाजा आप उनके भक्तों में शामिल एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग और हॉलीवुड एक्टर्स रॉबर्ट्स से लगा सकते हैं। कहा जाता है कि बाबा नीम करौली महाराज जी अपनी मृत्यु की अंतिम तिथि तक हनुमान जी के मंदिर बनवाते रहे और दुखी व्यक्तियों की सेवा करते रहें। कैंची धाम में भी उन्होंने कई दुखियों की सेवा की थी। उनके पास कोई भी व्यक्ति क्यों आया है, वह पहले से ही जान लेते थे। उनको किसी भी घटना का पहले से ही अनुभव हो जाता था। बाबा जी ने कई मंदिर व आश्रम बनवाए, जिनमें सबसे पहले कैंची धाम मंदिर, जो नैनीताल जिले में स्थित है और दूसरा वृंदावन, जो मथुरा में स्थित है।
आइए जानते हैं बाबा जी द्वारा किए हुए कुछ चमत्कारों के बारे में :-
- ऐसा कहा जाता है कि बाबा नीम करौली महाराज जी एक साधारण व्यक्ति के रूप में रहते थे। वे नीम करौली गांव में रहकर हनुमान जी की साधना करते थे। एक बार उन्हें रेल गाड़ी में बैठने की इच्छा हुई तो वह नीम करौली के स्टेशन पर रेल के पहले डिब्बे में जाकर बैठ गए। कुछ समय बाद कंडक्टर टिकट लेने आया तो बाबा जी के पास टिकट और पैसे ना होने की वजह से कंडक्टर ने बाबा जी को रेल गाड़ी से उतार दिया। कहा जाता है कि बाबा जी जैसे ही रेल गाड़ी से उतरे तो रेलगाड़ी चलनी बंद हो गई। ड्राइवर के लाख कोशिश करने के बावजूद भी रेलगाड़ी नहीं चली, फिर रेल गाड़ी में बैठे लोगों ने कहा कि शायद बाबा जी को उतारने के कारण ही यह रेलगाड़ी चलना बंद हो गई है, तो अब आप लोग बाबा जी से माफी मांग कर उनको बुलाओ। फिर ड्राइवर और कंडक्टर ने बाबा जी से माफी मांग कर बाबा जी को रेलगाड़ी के पहले डिब्बे में बैठाया। बाबा जी के रेलगाड़ी में बैठते ही रेलगाड़ी चलनी शुरू हो गई। बाबा जी के इस चमत्कार को देखकर लोग आश्चर्यचकित रह गए।
- ऐसा भी कहा जाता है कि कैंची धाम मंदिर में हर साल 15 जून को जो एक विशाल मेले और भंडारे का आयोजन होता है, एक दिन इसी मेले के भंडारे में बाबा जी के भक्त भंडारे का प्रसाद बना रहे थे, तो अचानक से प्रसाद में डालने वाला घी खत्म हो गया, तो बाबा ने अपने भक्तों से कहा कि नीचे जो नदी बह रही है, उसमें से एक कनस्तर में पानी भरकर ले आओ और उससे ही प्रसाद बनाकर सभी भक्तों को प्रसाद बांट दो। बाबा जी के कहे जाने पर उनके भक्त नीचे बहती हुई नदी में जाकर एक कनस्तर में पानी भरकर लाए और उस पानी से प्रसाद बनाने लगे, जैसे ही पानी को प्रसाद बनाने के लिए उपयोग में लाया गया तो पानी घी में बदल गया। इस चमत्कार को देखकर सभी लोग नतमस्तक हो गए और बाबा जी के भक्तों का बाबा जी के प्रति विश्वास और बढ़ता चला गया।
- ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार बाबा नीम करौली महाराज जी रानीखेत से नैनीताल को आ रहे थे, जिस गाड़ी से बाबा नीम करौली महाराज जी आ रहे थे, उस गाड़ी में माता सिद्धि व तुलाराम शाह नाम का एक व्यक्ति भी बैठा था। बाबा नीम करौली महाराज जी अचानक से कैंची धाम के पास गाड़ी से उतर गए और इसी बीच में बाबा जी ने तुलाराम शाह से बोला कि श्यामलाल बहुत अच्छा आदमी था। लेकिन यह बात तुलाराम शाह को पसंद नहीं आई, क्योंकि श्यामलाल उनका समधी था। तुलाराम शाह ने बाबा की इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, वह सीधा चला गया। जब शाम को उसे पता चला कि उसके समधी श्यामलाल की दिल की धड़कन रुक गई, जिससे कि अब वह इस दुनिया में नहीं रहे। यह बात सुनकर तुलाराम शाह को बाबा जी की कही बातें याद आने लगती है, तब वह सोचता है कि बाबा जी ने पहले ही “था” शब्द क्यों लगाया। क्या बाबा जी जानते थे कि उनकी मृत्यु होने वाली है, तभी उन्होंने पहले ही “था” शब्द लगा दिया। इतना अलौकिक दिव्य चमत्कार था कि बाबा नीम करौली महाराज जी को दूर घटित घटना के बारे में बैठे-बैठे ही पता चल जाया करता था। इसी तरह की अनेक चमत्कारिक घटनाएं बाबा नीम करौली महाराज जी से जुड़ी हुई हैं।
- ऐसा भी कहा जाता है कि बाबा के कई भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग आदमी थे, जो फतेहगढ़ में रहते थे। यह घटना लगभग सन् 1943 की है। एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे कि वे रात में यहीं रुकेंगे। बुजुर्ग आदमी के साथ उसकी पत्नी रहा करती थी और उनका एक बेटा था, जो फौज में काम करता था। बाबा के रुकने से उनको खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज जी की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्होंने बाबा जी के सामने रख दिया। बाबा जी वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए। महाराज जी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे। ऐसे में उस बुजुर्ग दंपत्ति को भी कैसे नींद आती। वे वहीं बैठे रहे उनकी चारपाई के पास। महाराज जी को कराहते देखकर बुजुर्ग दम्पत्ति को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई उन्हें मार रहा है। जैसे-तैसे कराहते-कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा जी ने चादर को लपेटकर बजुर्ग आदमी को देते हुए कहा, कि इसे गंगा में बहा देना, इसे खोलकर देखना नहीं, नहीं तो फंस जाओगे। दोनों बुजुर्ग ने बाबा जी की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा जी ने कहा कि चिंता मत करना। महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा। जब वे चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा जी ने तो खाली चादर ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा जी की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में बहा दी। लगभग एक माह के बाद बुजुर्ग आदमी का इकलौता पुत्र बर्मा फ्रंट से लौट आया। वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त बर्मा फ्रंट पर तैनात था। उसे देखकर दोनों बुजुर्ग खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई। उसने बताया कि करीब एक महीने पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए, लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जान आई। यह वही रात थी, जिस रात नीम करौली बाबा जी उस बुजुर्ग आदमी के घर रुके थे। उस दंपत्ति को जब ये बात पता चली तो उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि बाबा जी कोई साधारण इंसान नहीं है।
बाबा नीम करौली महाराज जी की मृत्यु 11 सितंबर 1973 ई. को वृंदावन में हुई थी ।
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Reference : https://en.wikipedia.org/wiki/Neem_Karoli_Baba