जोशीमठ कहाँ है? | जाने जोशीमठ का इतिहास | क्या है कारण जिससे जोशीमठ पर मंडरा रहा खतरा

Where is Joshimath

जोशीमठ को गेटवे ऑफ हिमालय (हिमालय का द्वार) भी कहा जाता है। यह केदारनाथ धाम तथा बद्रीनाथ धाम के बीच में पड़ता है। जोशीमठ देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह हिंदुओं की प्रसिद्ध पीठ है। जोशीमठ को ज्योतिर्मठ के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां पर आठवीं सदी में धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ था। शंकराचार्य जी ने ही बद्रीनाथ मंदिर तथा अन्य तीन मठों की स्थापना से पहले जोशीमठ की स्थापना की थी।

सर्दियों के मौसम में जोशीमठ में बद्रीनाथ की गद्दी विराजित की जाती है जहां पर नरसिंह के सुंदर एवं पुराने मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है। जोशीमठ, बद्रीनाथ व औली के निकट होने के कारण एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल बन गया है। जोशीमठ में अध्यात्मिकता की गहरी जड़े पाई जाती है। इसके आसपास घूमने योग्य स्थानों में औली प्रमुख है।

 जोशीमठ का इतिहास (History of Joshimath in Hindi) –

 जोशीमठ, पांडुकेश्वर में पाये जाने वाले कत्यूरी राजा ललितपुर के ताम्रपत्र के अनुसार कत्यूरी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। उस समय जोशीमठ का नाम कार्तिकेयपुर था। बाद में क्षत्रिय सेनापति कंटूर वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर शासन करना प्रारंभ किया तथा जोशीमठ को अपनी राजधानी बनाया।

वासुदेव कत्यूरी वंश के संस्थापक बताए जाते हैं। उन्होंने 7-11 वीं शताब्दी के बीच कुमाऊ एवं गढ़वाल पर शासन किया था। बाद मे जोशीमठ हिंदुओं के लिए एक धार्मिक स्थल के रूप में लोकप्रिय हुआ, जिसमें आदि शंकराचार्य का महत्वपूर्ण योगदान है। जोशीमठ ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश रूप है। यही वजह है कभी-कभी लोग इसे ज्योति पीठ भी कहते हैं। बताया जाता है कि आदि शंकराचार्य को जोशीमठ में ही एक शहसूत के पेड़ के नीचे ज्योति अर्थात ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। 

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भौगोलिक स्थिति –

जोशीमठ त्रिशूल शिखर से उत्तर की ओर अलकनंदा के किनारे पर स्थित है। इसके दोनों ओर एक चक्रकार की छाया है। इसके उत्तर में ऊंचा पर्वत उच्च हिमालय से आती ठंडी हवा को रोकता है। यह तीन तरफ बर्फ से ढके पहाड़, दक्षिण में त्रिशूल शिखर, उत्तर पश्चिम में बजरी शिखर तथा उत्तर में कामत शिखर से घिरी हुई जगह है।

यहां पर हाथी की शक्ल धारण किए हाथी पर्वत को भी देख सकते हैं। जोशीमठ की सबसे अलौकिक विशेषता है कि यहां पर एक पर्वत है जो एक लेटी हुई महिला की तरह प्रतीत होता है। लोग इसे स्लीपिंग ब्यूटी के नाम से भी लोग पुकारते हैं।

 जोशीमठ में स्थित दर्शनीय स्थल –

 कल्पवृक्ष एवं आदि शंकराचार्य गुफा बताया जाता है कि आठवीं शताब्दी में सनातन धर्म का पुनरुद्धार करने वाले आदि शंकराचार्य को यहीं पर एक शहतूत के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने राजा राजेश्वरी को अपना इष्ट देवी माना था। पेड़ के नीचे देवी एक ज्योति अर्थात प्रकाश के रूप में प्रकट हुई थी। उन्होंने ही आदि शंकराचार्य को बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित करने की शक्ति प्रदान की।

 ऐसी मान्यता है कि जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो उस समय 14 रत्न की प्राप्ति हुई थी, उसमें से एक परिजात का वृक्ष भी था जिसे देवराज इंद्र को सौंप दिया गया था। देवराज इंद्र द्वारा ही इस वृक्ष को हिमालय के उत्तर में वन में स्थापित किया गया। इस पेड़ के बारे में मान्यता है कि यह पेड़ वर्षभर हरा भरा रहता है। इसके पत्ते कभी भी गिरते नहीं है। इस पेड़ के ठीक नीचे आदि शंकराचार्य की गुफा है जिसमें आदिगुरु की एक मानव आकार की मूर्ति है।

  विष्णु मंदिर –

विष्णु मंदिर धौलीगंगा एवं अलकनंदा के संगम पर स्थित है। यह बद्रीनाथ सड़क पर 10 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। अलकनंदा नदी पर अंतिम पंच प्रयाग यहां पर स्थित है। कहा जाता है कि श्री विष्णु मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी।

 ज्योर्तेश्वर महादेव मंदिर –

 ज्योर्तेश्वर महादेव मंदिर कल्पवृक्ष के एक और पर स्थित है इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि आदि शंकराचार्य को जब ज्ञान प्राप्त हुआ उसके बाद उन्होंने एक प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग की पूजा की। यहां के गर्भगृह में सालो से एक दिया प्रज्वलित हो रहा है।

अन्य मंदिर
  • वासुदेव एवं नव दुर्गा मंदिर
  • नरसिंह मंदिर
  • ट्रोटचार्य गुफा एवं ज्योतिर मठ
निकट के आकर्षक स्थल –
  • तपोवन
  • सलधर गर्म झरना
  • नीति घाटी
  • औली
  • वृद्ध बदरी

 कैसे पहुंचे :

हवाई मार्ग : जोशीमठ देहरादून के निकट जौलीग्रांट निकटतम हवाई अड्डे से 273 किलोमीटर की दूरी 

पर स्थित है।

रेल मार्ग : जोशीमठ का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जहां से जोशीमठ 253 किलोमीटर है।

सड़क मार्ग : जोशीमठ देहरादून ऋषिकेश तथा हरिद्वार से जुड़ा हुआ है। इसलिए देहरादून ऋषिकेश और हरिद्वार से बस एवं टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा –

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। 6150 फीट की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते में पड़ता है। यह धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन संभावना जताई जा रही है कि यहां पर बड़ी आपदा आ सकती है। 1976 में ही उत्तराखंड के जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति को लेकर चेतावनी जारी की थी। लेकिन इसे अनदेखा कर दिया गया नतीजा अब घरों की दीवारो व छतों दरारे पड़ रही है।  यह दिन-ब-दिन स खिसक रहा है।

 वैसे तो पूरा उत्तराखंड हिमालय के सबसे नाजुक हिस्से में स्थित है। भूस्खलन, भूकंप, बादल फटना, हिमस्खलन, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं यहां पर घटती रहती है।

 भारत का पूरा हिमालय क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है। उत्तराखंड भारतीय हिमालय के उत्तर पश्चिम पर बना है। इसके चमोली जिले में स्थित जोशीमठ पर खतरा मंडरा रहा है।

 जोशीमठ भूकंप से ज्यादा भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है। यह प्राचीन भूस्खलन  से आई मिट्टी पर बसा हुआ कस्बा है। मलवे की मट्टी मजबूत नहीं होती है। ऐसे में जोशीमठ के नीचे की जमीन स्पंज जैसे खोखली हो चुकी है।

जोशीमठ भौगोलिक दृष्टि से भले ही खतरनाक है। लेकिन पर्यटन और धार्मिक स्थानों पर जाने के लिए यह एक मार्ग है। विशेष करके बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, वैली आफ फ्लॉवर्स और तुंगनाथ, चोपता आदि जाने के लिए यह एक खूबसूरत गेटवे है।

 ऋषिकेश – बद्रीनाथ नेशनल हाईवे पर मौजूद जोशीमठ पूरब से पश्चिम की ओर स्थित है। यह विष्णुप्रयाग से दक्षिण पश्चिम पर पड़ता है। अलकनंदा नदी यहां पर धौलीगंगा से मिलती है। जोशीमठ के नीचे की जमीन को अलकनंदा धौलीगंगा मिलकर काट रही है।

 जोशीमठ-औली रोड पर कई जगहों पर दरारे और गुफाएं बन रही है। बारिश के पानी के बहाव की वजह से मिट्टी खिसक जाती है, जिससे पत्थर खिसकने लगते हैं। इसके ऊपरी हिस्से में दरारे बन रही है। बड़े-बड़े पत्थरों के खिसकने की वजह से नीचे के इलाकों में रहने वाले लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। जोशीमठ-औली रोड पर कई जगहों पर सड़कें धंस गई है। मकानों में दरारे आ गई है।

 क्या है कारण जिस वजह से जोशीमठ पर मंडरा रहा खतरा –

 प्राचीन भूस्खलन के प्रवचन जोशीमठ का ज्यादातर हिस्सा ढलान पर है। ढलानों की मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर होती है और इनके ऊपर वजन काफी ज्यादा होता है जिसकी वजह से यह खिसक रही है। यहां पर सही ड्रेनेज़ सिस्टम न होने की वजह से मिट्टी अंदर की तरफ स्पंज की तरह खोखली हो गई है।

बारिश का पानी, घरों के गंदे पानी की निकासी की सही व्यवस्था नहीं है। यह पानी जमीन के अंदर रिसता है और मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर होती जाती है। लगातार पानी रिसने की वजह से मिट्टी मे मौजूद चिकने खनिज बह जाते हैं और जमीन कमजोर होते चली जाती है। ऊपर से लगातार हो रहा निर्माण कार्य भार को बढ़ा रहा।

2021 में हुई धौलीगंगा, ऋषि गंगा हादसे की वजह से जो मलवा आया उससे जोशीमठ के निचले हिस्से में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर बहुत ज्यादा नुकसान हुआ।

जोशीमठ पर मिश्रा समिति की रिपोर्ट –

लगभग 50 साल पहले 1976 मे गढ़वाल के तत्कालीन कलेक्टर एमसी मिश्रा के नेतृत्व में 18 सदस्य समिति का गठन हुआ था। इस समिति की रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि जोशीमठ एक पुराने भूस्खलन क्षेत्र पर स्थित है। अगर यहां पर विकास कार्य जारी रहा तो यह डूब सकता है।

रिपोर्ट में जोशीमठ में निर्माण प्रतिबंध की सिफारिश की गई थी। लेकिन रिपोर्ट की सिफारिशों को अनदेखा कर दिया गया। नतीजा आज जोशीमठ डूबने के कगार पर पहुंच गया है।

 1976 में मिश्रा समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि जोशीमठ एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है। जो चट्टान नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर टिका है। अलकनंदा और धौलीगंगा नदियां भूस्खलन को टिगर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उचित जल निकासी की सुविधा का अभाव है जो भूस्खलन का कारण बनता है जिससे पानी का रिसाव और मिट्टी का क्षरण होता है। 

यह भी जाने : जाने रुद्रप्रयाग जिले का इतिहास | History of Rudraprayag in Hindi

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