जानिए गढ़वाल का इतिहास
पौड़ी गढ़वाल की सीमा जिला बिजनौर हरिद्वार देहरादून टिहरी गढ़वाल रुद्रप्रयाग चमोली अल्मोड़ा नैनीताल उन जिलों से मिली हुई है।

गढ़वाल का इतिहास( History of Garhwal in Hindi)
गढ़वाल का इतिहास( History of Garhwal)उत्तराखंड का एक जिला पौड़ी गढ़वाल है। यह गंगा के मैदान में आंशिक रूप से उतरी हिमालय में है। पौड़ी गढ़वाल जिले में 5230 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र सम्मिलित है। पौड़ी गढ़वाल की सीमा जिला बिजनौर हरिद्वार देहरादून टिहरी गढ़वाल रुद्रप्रयाग चमोली अल्मोड़ा नैनीताल उन जिलों से मिली हुई है।
अगर हम बात करते हैं पौड़ी गढ़वाल का मौसम का तो यहां गर्मियों में बहुत सुखद और सर्दियों में ठंडा मौसम रहता है। इसके अलावा बरसात के दिनों में मौसम में परिदृश्य हरा भरा मौसम शांत होता है। इसके अलावा कोटद्वार और आसपास के भाव और क्षेत्र में मौसम काफी गर्म होता है। गर्मियों में यहां उच्च 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचाने के लिए सर्दी में पौङी के कई हिस्सों में बर्फबारी देखने को मिलती है।
पौड़ी गढ़वाल का इतिहास (History of Pauri Garhwal in Hindi)
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश कत्युरी था। जो एक ही प्रीत उत्तराखंड पर शासन किया और शिलालेख और मंदिरों के रूप में बहुत से महत्वपूर्ण अभिलेख भी छोड़े थे। कत्युरी के पतन के बाद की अवधि में, यह माना जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र 64 से अधिक रियासतों में विखंडित हो गया था और मुख्य रियासतों में से एक चंद्रपुरगढ़ थी।जिस पर कनकपाल के वंशजो थे।
15 वीं शताब्दी के मध्य में चंद्रपुररगढ़ जगतपाल (1455 से 14 9 3 ईसवी), जो कनकपाल के वंशज शासन के तहत एक शक्तिशाली रियासत के रूप में उभरा ।
15 वीं शताब्दी के अंत में अजयपाल ने चंदपुरगढ़ पर सिंहासन किया और कई रियासतों को उनके सरदारों के साथ एकजुट करके एक ही राज्य में समायोजित कर लिया। इसके बाद से लोग इस राज को गढ़वाल के नाम से जानने लगे।इसके बाद उन्होंने 1506 से पहले अपनी राजधानी चांदपुर से देवलगढ़ और बाद में 1506 से 1519 ईसवी के दौरान श्रीनगर स्थानांतरित कर दी थी।
पौड़ी गढ़वाल की खूबसूरती(The beauty of Pauri Garhwal)
पौड़ी गढ़वाल को बद्रीनाथ व केदारनाथ यात्रा का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। पौड़ी गढ़वाल में पर्यटन तथा धार्मिक स्थलों की कोई कमी नहीं है तथा यह सौंदर्य की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण जिला है।पौड़ी गढ़वाल में अलकनंदा, मधु गंगा एवं नयार नदियां बहती हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए पौड़ी किसी जन्नत से कम नहीं है। जानकारी के लिए आपको बता दे की पौड़ी गढ़वाल चारों और पहाड़ों से घिरा हुआ है।
यह समुद्र तल से 1814 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है इसे पौङी गढ़वाल का दिल कहा जाता है।हिमालय की वादियों से घिरा हुआ पौड़ी गढ़वाल अपने सुहावने वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। पौड़ी गढ़वाल में स्थित हिमालय, नदियां, हरे-भरे जंगल और ऊंचे-ऊंचे शिखर यहां की खूबसूरती को और अधिक बढ़ाते हैं। पौड़ी गढ़वाल की प्रमुख भाषा गढ़वाली है। लेकिन यहां पर रहने वाले लोग हैं हिंदी और अंग्रेजी में भी बोलते हैं।
पौड़ी गढ़वाल में घूमने की जगह (Places to visit in pauri garhwal)
ताराकुण्ड
पौड़ी गढ़वाल में ताराकुंड बहुत ही खूबसूरत एवं आकर्षित जगह है। समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ताराकुंड अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां के आसपास का नजारा काफी सुंदर लगता है। ताराकुंड खूबसूरत हिमालय की पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच में बसा है। इस मनोरम स्थल में एक छोटी सी झील और बहुत पुराना मंदिर भी है, बताया जाता है कि स्वर्गारोहण के वक्त पांडव यहां आए थे और उन्होंने ही यह मंदिर बनाया था। ताराकुंड में स्थानीय निवासियों द्वारा तीज का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। खूबसूरत पहाड़ियों के बीच ताराकुंड में आकर मन को शांति मिलती है।
चौखंभा व्यू प्वाइंट
पौड़ी से 4 किमी की दूरी पर स्थित चौखंभा व्यू प्वाइंट एक खूबसूरत जगह है। चौखंभा व्यू पॉइंट से आपको हिमालय के बर्फ से ढके पहाड़ों का शानदार नजारा देखने को मिलता है। यहां से दूर-दूर तक हरियाली ही हरियाली नजर आती है। अगर आप प्रकृति प्रेमी है और फोटोग्राफी का शौक रखते हैं तो यह जगह आपके लिए परफेक्ट जगह है। अगर आप ऊंची-ऊंची खूबसूरत चोटियों में समय बिताना चाहते हैं तो आपको चौखंभा व्यू प्वाइंट जरूर आना चाहिए।
बिनसर महादेव
पौड़ी से 114 किमी की दूरी पर स्थित बिनसर महादेव मंदिर यहां का एक प्रसिद्ध मंदिर है। 2480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बिनसर महादेव मंदिर अपनी प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए जाना जाता है। बिनसर महादेव मंदिर भगवान गौरी और गणेश के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध बिनसर महादेव मंदिर में हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। माना जाता है कि यह मंदिर महाराजा पृथ्वी ने अपने पिता बिंदु की याद में बनवाया था। इस मंदिर को बिंदेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
कंडोलिया
पौड़ी से 2 किमी की दूरी पर स्थित कंडोलिया देवता के मंदिर को भूमि देवता के रूप में पूजा जाता है। यहां के स्थानीय लोग इस मंदिर को बहुत मानते हैं। यह मंदिर गढ़वाल की देवी कंडोलिया देवी को समर्पित है। हर साल मंदिर में मेला लगता है, जिसको देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। कंडोलिया मंदिर के समीप खूबसूरत पार्क और खेल परिसर भी स्थित है। गर्मियों के दौरान कंडोलिया पार्क में पर्यटकों की भारी मात्रा में भीड़ देखी जा सकती है। कंडोलिया मंदिर से कुछ दूरी पर ही एशिया का सबसे ऊंचा स्टेडियम रांसी स्टेडियम भी है। कंडोलिया मंदिर से सर्दियों में हिमालय बहुत सुंदर दिखाई देता है।
खिर्सू
पौड़ी से 19 किमी की दूरी पर स्थित खिर्सू पौड़ी के सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। खिर्सू से हिमालय की रेंज के दीदार होते हैं और यह जगह ओक, देवदार और सेब के बगीचों से गिरी हुई है। खिर्सू, पौड़ी से जुड़ा हुआ है एक पहाड़ी गांव है जो चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसलिए यहां पर अधिकतर पर्यटक भारी संख्या में घूमने जाते हैं।