उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध नैनीताल जिले का इतिहास | History of Nainital in Hindi

नैनीताल जिले का इतिहास (History of Nainital in Hindi) : देवभूमि उत्तराखंड के जिले नैनीताल को सरोवर नगरी नैनीताल के रूप में जाना जाता है। यह देश ही नही बल्कि पूरी दुनिया में पर्यटकों का पसंदीदा स्थान है। इसे भारत का झीलों वाला जिला कहा जाता है। यहां पर लोग घूमने के साथ साथ हनीमून मनाने के लिए भी आते रहते हैं। सबसे ज्यादा गर्मियों के मौसम में यहां पर्यटक आते हैं। यहां की खूबसूरती और ठंडी आबोहवा की वजह से पर्यटक अपने आप इसकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं। कहा जाता है कि नैनीताल में स्वर्ग का एहसास होता है। कहा जाता है कि एक दौर ऐसा था जब नैनीताल जिले में सब से भी ज्यादा झील थी। तब इस शहर को छखाता के नाम से जानते थे। इसे 60 झील वाला शहर भी कहा जाता है। लेकिन अब यहां की ज्यादातर झीले अपना अस्तित्व खो चुकी है।

नैनीताल जिला कुमाऊं मंडल के अंतर्गत आता है। इसके उत्तर में अल्मोड़ा जिला दक्षिण में उधम सिंह नगर जिला पड़ता है। हल्द्वानी नैनीताल जिले का एक नगरीय क्षेत्र है। यह जगह झिलों से घिरे होने के कारण इसे भारत के ‘लेक डिस्टिक’ के तौर पर भी जाना जाता है। बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच में बसा यह उत्तराखंड ही नहीं बल्कि भारत का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यहां की प्रसिद्ध झील नैनी झील है। इसी के नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा था। नैनीताल बहुत ही खूबसूरत जिला है। नैनीताल शहर की हसीन वादियों के दर्शन केबल कार के द्वारा भी किया जा सकता है। कुमाऊँ मंडल विकास निगम द्वारा संचालित रोपवे को अब हाईटेक कर दिया गया है। अब पर्यटक रात के समय में भी नैनीताल को लाइट की रोशनी में निहार सकते हैं। इसके अलावा यहां पर जिन पर्यटकों को हार्स राइडिंग पसंद है वह भी आते हैं। पहाड़ों पर होने वाली घुड़सवारी के लिए पर्यटक यहां पर आते रहते हैं।

नैनीताल जिले में लोगों की बसावट के बाद साल 1867 में भयंकर भूकंप आया था जिससे कोई हताहत तो नही हुई थी लेकिन प्राकृतिक रूप से नुकसान हुआ था। उसके बाद 1880 में भारी भूस्खलन हुआ था। वह खनन के दौरान नैनीताल का एक बड़ा हिस्सा झील में समा गया था और उसी दौरान एक बड़ा खेल मैदान निर्मित हुआ था। अंग्रेजों ने प्राकृतिक घटनाओं से इस शहर को सुरक्षित रखने के लिए 64 छोटे बड़े नालों का निर्माण करवाया था। लेकिन वक्त बीतने के साथ पूरा शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता गया। इतिहासकार अजय रावत का कहना है कि इस शहर को बचाने के लिए यह नाले काफी महत्वपूर्ण रहे हैं। इन्हें नैनीताल की धमनियां कहा जाता है।

नैनीताल जिले का प्राचीन इतिहास –

नैनीताल जिले के इतिहास का उल्लेख पवित्र भूमि के रूप में स्कंद पुराण के मानस खंड में मिलता है। इसमें इस स्थान को त्रिऋषि सरोवर कहा गया है। ऐसा बताया जाता है कि इस स्थान पर तीन ऋषि अत्रि, पुलस्थ्य व पुलाहा ने तपस्या की थी। बताया जाता है कि जब उन्हें कहीं पर पानी नही मिल रहा था तब उन्होंने यहां पर एक बड़ा गड्ढा बनाया और उसमें मानसरोवर का जल भर दिया था। हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस झील में आज भी नहाने से मानसरोवर जैसा पुण्य प्राप्त होता है। इस झील के किनारे बसी नैना मां का मंदिर आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर को 64 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव अपनी पत्नी सति का अधजल शरीर लेकर आकाश मार्ग पर जा रहे थे तो उस दौरान मां सती की आंख यहां पर गिर गई थी। तभी यहां पर नैना देवी की स्थापना की गई थी और उनके नाम पर नैनीताल शहर का नाम रखा गया।

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प्राचीन समय में कुमायूं छोटे-छोटे क्षेत्रों में बंटा हुआ था और नैनीताल का क्षेत्र खसिया परिवार की विभिन्न शाखाओं के अधीन था। कुमायूं पर प्प्रभुत्व प्राप्त करने वाले पहले राजवंश चंद्रवंशी वंश के संस्थापक इलाहाबाद के पास स्थित झूंसी से आए सोमचंद थे जो सातवीं शताब्दी में यहां पर आए थे। उन्होंने कत्यूरी राजा की बेटी से शादी की थी और कुमायूं के अंदरूनी क्षेत्रों का विस्तार किया था। दहेज के रूप में उन्हें चंपावत नगर और साथ में तराई क्षेत्र की भूमि दी गई थी। धीरे-धीरे सोमचंद और उनके वंशजों ने अपने आसपास के क्षेत्रों पर आक्रमण करके उन पर अधिकार करना आरंभ कर दिया था। इस तरह से नैनीताल तथा उसके आसपास का क्षेत्र अवशोषित होने वाले अंतिम क्षेत्रों में से था। नैनीताल जिले के इतिहास में भीमताल जो कि नैनीताल से 13 मील की दूरी पर स्थित है वहां पर तेरहवीं शताब्दी में त्रिलोकी चंद ने अपनी सरहदों की रक्षा करने के लिए एक किला बनवाया था। कत्यूरी शासक ने 1488 से 1503 में अपने क्षेत्र का विस्तार करना प्रारंभ किया और नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। उसके पहले यह स्वतंत्र था। खटिया राजा ने फिर से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रयास किया और 1560 वह सफल भी हुए हैं लेकिन बालों कल्याण चंद द्वारा उन्हें वश में कर लिया गया। आईने अकबरी में भी जिन महलों का उल्लेख मिलता है वह सब मैदानी क्षेत्र के हैं। काफी समय बाद फिर से कुमायूँ की पहाड़ियों पर आक्रमण हुआ और इस बार 1743 में युद्ध छिड़ गया रुहेल लड़ते हुए भीमताल तक घुस आते है और उसे लूट लिया। अंत में गढ़वाल के राजा ने उन्हें खरीद लिया। 1747 में कल्याण चंद की मृत्यु के बाद उत्तरदायी राजाओं की शक्ति क्षीण होने लग गई थी। अगले राजा उनके बेटे दीप चंद बनते हैं। वह काफी धार्मिक प्रवृत्ति के थे और खुद को मंदिरों के निर्माण के लिए समर्पित कर दिया था। भीमताल में स्थित भीमेश्वर मंदिर उन्होंने ही बनवाया था।

नैनीताल जिले के इतिहास में इसके बाद छोटे छोटे राजा ने इस जगह पर शासन किया। 1814 में ब्रिटिश सरकार का ध्यान कुमाऊँ की तरफ आकर्षित हुआ। ईस्ट इंडिया कंपनी को पहाड़ों में दिलचस्पी थी क्योंकि यहां पर पैदा होने वाले गांजे के कारण ब्रिटिश को यह क्षेत्र आकर्षित करता था। तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड होस्टिंग ने कुमायूँ को शांतिपूर्वक निर्वासित करने का प्रयास किया और गार्डनर को कुमायूँ के राज्यपाल को बादशाह के साथ वार्ता के लिए दिल्ली भेज दिया। यह वार्ता सफल नहीं हुई और 1815 में युद्ध की घोषणा हो गई। युद्ध में नेपाल के गोरखाओं की हार होती है और पूरे क्षेत्र पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो जाता है।

नैनीताल जिले के इतिहास में इसकी खोज करने का श्रेय पीटर बैरन को दिया जाता है। हालांकि उसके पहले 1823 में ट्रेलर यहां पर आए थे। लेकिन उन्होंने इसकी जानकारी किसी को नहीं दी थी क्योंकि वह चाहते थे कि इसकी प्राकृतिक खूबसूरती बनी रहे। लेकिन 1841 में अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन यहां पर आते हैं और उन्होंने इसकी प्राकृतिक खूबसूरती को दुनिया के सामने रखा। इसीलिए पीटर बैरन को नैनीताल शहर की खोज का श्रेय दिया जाता है। बताया जाता है कि जब अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन यहां पर पहुंचे थे तब नरसिंहपुर दार के पास नैनीताल का स्वामित्व पीटर ने उन्हें ले जाकर काफी डराया धमकाया और पूरे शहर को अपने नाम करवा लिया। उसके बाद 1842 में अंग्रेजों ने नैनीताल को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बना ली और इसे छोटी विलायत का दर्जा दिया।

नैनीताल जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल

हनुमानगढ़ी

नैनीताल में स्थित हनुमानगढ़ी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है। यहां पर पर्यटक sun rise व sun set देखने के लिए आते हैं। साथ ही हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग यहां पर बने हनुमान जी के मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।

भौकुचियाताल व भीमताल –

पर्यटक यहां पर इन दोनों जगह पर आते हैं। लोग यहां पर पहुंच में ही स्थित धाम के दर्शन करने के लिए भी लोग आते हैं। यहां पर स्थित श्यामखेती गार्डन के भी लोग देखना पसंद करते हैं।

हिमालय दर्शन –

नैनीताल से हिमालय दर्शन कुछ किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। यह ट्रेकिंग के लिए भी एक उपयुक्त जगह है। दिसंबर और जनवरी के मौसम में यहां से हिमालय के खूबसूरती का नजारा लिया जा सकता है। वैसे इस जगह पर साल भर पर्यटक आते जाते रहते हैं।

रामगढ़ मुक्तेश्वर –

यह जगह नैनीताल शहर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर पड़ती है। यहां की शांत वादियां और हिमालय के दर्शन लोगों को काफी आकर्षित करते हैं। मुक्तेश्वर और रामगढ़ फल बागानों के लिए जाने जाते हैं। यहां पर आप सेब, आडू जैसे पहाड़ी फलों से लदे बागान को देख सकते हैं।

कैंची धाम

नैनीताल से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर बसा कैंची धाम मंदिर आस्था का केंद्र है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग समेत कई विदेशी लोग को मंदिर के दर्शन के बाद ही उन्हें कामयाबी मिली है। कहा जाता है कि किसी के घर्मानंद तिवारी नैनीताल से घर लौट रहे थे। रास्ते में उन्हें रात हो जाने की वजह से डर लग रहा था। तभी रास्ते में एक बाबा कंबल ओढ़े बैठे मिले। जब उनसे पूछा कि कहां जाना, आपको अभी गाड़ी मिल जाएगी। डरते हुए जब धर्मानंद ने यह पूछा कि बाबा और कब दर्शन देंगे। तब बाबा ’20 साल बाद कह कर’ ओझल हो गए थे। जब बाबा 20 साल बाद रानीखेत से लौट रहे थे तो तिवारी परिवार में बाबा नीम करोली को नहीं पहचाना। इसके बाद बाबा ने 20 साल पुरानी कहानी सुनाई और उस स्थान पर मंदिर के निर्माण करने की बात कही। तब से हर साल 15 जून को बाबा नीम करौली की स्थापना दिवस मनाया जा रहा है।

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