उत्तराखंड में पायी जाने वाली जड़ी बूटियाँ जिनकी कीमत प्रति किलो 8-10 लाख रुपए है
जाने देवभूमि उत्तराखंड के 5 औषधीय जड़ी बुटियों के बारे में
देवभूमि उत्तराखंड में बेहद खूबसूरत प्रकृति के नजारे देखने को मिलते हैं यहाँ कई सारे छोटे और बड़े बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है । लेकिन यहाँ प्राकृतिक के नजारों के साथ कई तरह के जड़ी बूटियाँ भी पाई जाती हैं जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है । इस वजह से कुछ जड़ी बूटियों की कीमत तो 8 से 10 लाख रुपये प्रति किलो तक भी होती है । आज हम जानेंगे कुछ ऐसे ही जड़ी बूटियों के बारे मे –
कीड़ाजडी –
कीड़ाजड़ी जैसे कि नाम से ही पता चल रहा है यह आधा कीड़ा और आधी जड़ी होती है । यह उत्तराखंड की हिमालय क्षेत्र की ऊँची पहाड़ियों में बर्फीले इलाकों में पायी जाती है । इसका वैज्ञानिक नाम कॉर्डीसेप्स सीनेंसिस है । इसमें प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन बी1, बी2, बी12, और पेप्टाइड्स जैसे पोषक तत्व पाए जाते है । यह एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसमें तमाम तरह की बीमारियों को सही करने की क्षमता होती है । यह जोड़ों का दर्द दूर करने, वजन को कम करने के अलावा सांस से संबंधित बीमारियों और फेफड़े और किडनी की बीमारी को भी ठीक करने की क्षमता रखती है । इसके सेवन से विभिन्न रोगों से लड़ने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है । सामान्यतः यह सर्दियों के मौसम में होते हैं और उनका जीवनकाल छः महीने रहता है । यह जड़ी-बूटी बेहद कीमती है इसकी कीमत 8 से 10 लाख रुपए प्रति किलो तक बताई जाती है ।
वज्रदन्ति –
वज्रदंती उत्तराखंड की मद्महेश्वर घाटी में बहुतया में पाई जाती है । यह एक अमूल्य औषधि (जड़ी बूटियाँ) है जो कई सारी बीमारियों को ठीक करने में मददगार है । कई सारी टूथपेस्ट बनाने कंपनियां अपने टूथपेस्ट में वज्रदंती का भी इस्तेमाल करती है । वज्रदन्ति दांतो से संबंधित बीमारियों को दूर करने और सांस से जुड़ी बीमारी तथा खाँसी की समस्या को भी दूर करने में मददगार है । जोड़ों के दर्द को दूर करने में यह प्रयोग की जाती है । आमतौर पर पहाड़ी लोग इसका काढ़ा बनाकर पीते हैं । इसके ताजे पत्ते को सुखाकर फिर उसको पाउडर बनाकर उसमें पानी मिलाकर काढ़ा बनाते हैं और छान कर इस्तेमाल करते हैं ।
वज्रदंती बुखार के असर को भी कम करने में मददगार होता है । जिन लोगों के दातों में कैविटी या फिर कुछ ठंढा या गरम खाने पर दाँतों में तेज झनझनाह होती है उन लोगों को वज्रदंती की पत्तियों या जड़ का पाउडर बनाकर उसे दंतमंजन की तरह इस्तेमाल करना चाहिए । वज्रदंती का पेस्ट कई सारे घाव को भरने का काम करता है । शरीर में सूजन आने या फिर एड़ियां फट जाने पर भी वज्रदंती का पेस्ट वहां पर लगाया जा सकता है । वज्रदन्ति बालों के लिए भी काफी फायदेमंद होता है । इसे बालों में लगाने से बाल लंबे और घने होते हैं ।
तिमूरु –
तिमूरु एक ऐसा झाड़ी नुमा पौधा है जो उत्तराखंड में हर जगह देखने को मिल जाता है । इसके पेड़ समुद्रतल से दो हजार मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं । इसका वैज्ञानिक नाम जेंथेजाइलम अरमेटम है । इसे कुमाऊ में तिमूरु और गढ़वाली में टिमरू कहा जाता है । जैसे कि मैदानी इलाकों में नीम में तमाम गुण पाए जाते हैं उसी तरह टिमरू में भी बहुत सारे औषधीय गुण पाए जाते हैं इसे पहाड़ की नीम भी कह सकते हैं । इसकी टहनियों का इस्तेमाल दातुन के रूप में भी किया जा सकता है, इससे दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं तथा मुंह से दुर्गंध की समस्या भी खत्म हो जाती है । इसकी पत्तियों को चबाने से भी मुंह की दुर्गंध दूर होती है और ऐसे में इसकी पत्तियां माउथ फ्रेशनर की तरह काम करती है । यह एक कटीला पौधा होता है और इसके काटे काफी तेज होते हैं । इसलिए इन्हें तोड़ने में सावधानी बरतना चाहिए ।
तिमूरु में में छोटे छोटे बीज भी लगते हैं और उनका इस्तेमाल चटनी के स्वाद को बढ़ाने में किया जा सकता है । इसके बीज के छिलके को मसाले के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तथा इसके बीजों को सुखाकर इससे तेल बनाए जाते हैं । इसके तेल में एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं और दवा बनाने वाली कंपनी है उसका इस्तेमाल करती हैं । कंटेयुक्त होने की वजह से पहाड़ी किसान इसकी झाड़ियों को अपने खेतों के मेड़ पर लगाते हैं, जिससे जंगली जानवर से खेतों को सुरक्षित रखा जा सके ।
किनगोड़ा –
इसका वैज्ञानिक नाम बेरबेरिज अरिस्तता है । यह उत्तराखंड के जंगलों में और सड़को के किनारे काफी ज्यादा देखने को मिलता है । उत्तराखंड के अलावा यह यूरोप, अफ्रीका, एशिया, उत्तरी अमेरिका, कनाडा, कोलंबिया में भी पाया जाता है । यह डायबिटीज, पाइल्स, लीवर की बीमारियों में को ठीक करने की क्षमता रखता है । पारंपरिक रूप से इसका इस्तेमाल त्वचा रोग, जोड़ों का दर्द, आंखों में संक्रमण, पीलिया, अतिसार जैसी बीमारियों में किया जाता रहा है । इसमें कैंसर जैसी बीमारी को भी ठीक करने की क्षमता पाई जाती है । इसमें प्रोटीन, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन C, मैग्नीशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं । इसकी पीली जोड़ों को या इसकी छाल को पानी में उबालकर पीने से शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है । इसका इस्तेमाल किडनी स्टोन के उपचार के तौर पर भी किया जाता है ।
कंडाली (बिच्छू घांस ) –
देवभूमि उत्तराखंड हिमालय का पहाड़ी इलाका होने की वजह से यहां पर कड़ाके की ठंड पड़ती है । ऐसे में इम्यून सिस्टम मजबूत रहने पर ही ठंड से बचा जा सकता है और स्वस्थ रहा जा सकता है । यहां के लोग ठंड से बचने के लिए कंडाली की पत्तियों के साग खाते हैं क्योंकि यह गर्म तासीर का होता है । कंडाली को बिच्छू घास के तौर पर भी जानते है । इसकी पत्तियां रोएंदार कांटे युक्त होती हैं । जब यह शरीर के किसी अंग से छू जाती है तो सनसनाहट का एहसास होता है । इसलिए इसे बिच्छू घास भी कहते हैं । कंडाली कई सारे औषधि गुणों से भरपूर है । कंडाली के पत्तों में आयरन पाया जाता है और इसका नियमित सेवन, एनीमिया की समस्या को दूर रखता है । इसमें फार्मिक एसिड, एसिडिटी कोलाइड और विटामिन ई पायी जाती है । पीलिया, सर्दी-जुखाम, और पेट से संबंधित समस्या होने पर कंडाली का सेवन लाभकारी होता है । यह मोटापा कम करने में भी मददगार है । किडनी के मरीजों के लिए इसका सेवन फायदेमंद होता है ।
कंडाली में कैंसर को खत्म करने की क्षमता होती है इसलिए इसके बीजों से कैंसर की दवाई भी बनाई जा रही है । इससे पित्तदोष, शरीर में जकड़न, मलेरिया जैसी बीमारियों में राहत मिलती है । इसके बीज को पेट सफा रखने में प्रयोग किया जाता है । कंडाली में फाइबर पाया जाता है और इसके फाइबर को निकालकर बैग, जैकेट आदि का निर्माण किया जाता है । कंडाली की पत्तियों की चाय पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है ।
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