जाने रुद्रप्रयाग जिले का इतिहास | History of Rudraprayag in Hindi
रुद्रप्रयाग जिले का इतिहास|History of Rudraprayag in Hindi: देवभूमि उत्तराखंड के में स्थित रुद्रप्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का संगम स्थल है। यहीं से अलकनंदा देवप्रयाग में जाकर भागीरथी नदी से मिल जाती है और इसके बाद गंगा नदी के नाम से जाने जाते हैं। रुद्रप्रयाग के बारे में कहा जाता है कि इस जगह का नाम रुद्रप्रयाग भगवान शिव के नाम पर रखा गया।
रुद्रप्रयाग में अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का संगम अपने आप में बेहद खूबसूरत नजारा होता है। यह कुछ ऐसा लगता है जैसे दो बहने आपस में एक दूसरे से गले मिलती हों। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि यहां पर संगीत उस्ताद नारद मुनि ने भगवान शंकर की उपासना की थी। उस समय नारद मुनि जी को आशीर्वाद देने के लिए भगवान शंकर ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। यहां पर स्थित शिव और जगदंबा मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं। यहां का प्रमुख आकर्षण में गुप्तकाशी, अगस्तमुनि, सोनप्रयाग, खिरसू, गौरीकुंड, चोपता, केदारनाथ पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र रहते हैं।
जनसंख्या की दृष्टि से रुद्रप्रयाग जिला देव भूमि उत्तराखंड का सबसे छोटा जिला है क्षेत्रफल की दृष्टि से भी यहां जिला बेहद छोटा है। 2001 की जनगणना के अनुसार रुद्रप्रयाग की कुल जनसंख्या 2242 बताई गई है।
रुद्रप्रयाग जिले का आधुनिक इतिहास –
देव भूमि उत्तराखंड का जिला रुद्रप्रयाग अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय बना था। यह 16 सितंबर 1997 में चमोली जिले के कुछ क्षेत्र और पौड़ी जिले के कुछ भागों को मिलाकर अस्तित्व में आया था। रुद्रप्रयाग पंच प्रयाग में से एक माना जाता है और अलकनंदा नदी का संगम पांच संगम में से एक माना जाता है। रुद्रप्रयाग को खास पहचान दिलाने में यहां पर स्थित केदारनाथ मंदिर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। केदारनाथ मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जिसे पांडवों द्वारा बनवाया गया था और आदि शंकराचार्य द्वारा इसे पुनर्जीवित किया गया था।
रुद्रप्रयाग जिले के इतिहास के बारे में प्रमाणित लिपिबद्ध इतिहास छठ में ईस्वी में मिला था। आजादी से पहले रुद्रप्रयाग टिहरी क्षेत्र के अंतर्गत आता था। रुद्रप्रयाग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां पर नागवंशी राजाओं का शासन हुआ करता था। बाद में पंवार वंश के शासकों ने यहां पर अपना शासन स्थापित कर लिया। 1804 में यह क्षेत्र नेपाली गोरखा के अधीन था। बाद में गोरखा और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई और 1815 में यह अंग्रेजों के शासन के अधीन आ गया।
रुद्रप्रयाग का पौराणिक इतिहास –
पुराणों में बताया जाता है कि केदारखंड को भगवान शिव के निवास स्थान के तौर पर जाना जाता है। वेदों और भारतीय पुराणों, रामायण महाभारत के तत्वों से ऐसा लगता है कि हिंदू शास्त्रों में रुद्रप्रयाग को केदारखंड के रूप में लिखा गया है।
स्कंद पुराण में केदारखंड के बारे में लिखा गया है कि महाभारत के समय पांडवों के युद्ध में विजय होने के बाद कौरव भाइयों की हत्या का पश्चाताप करने के लिए पांडव अपना राज्य छोड़कर मंदाकिनी नदी के तट पर केदारनाथ पहुंच गए थे, और इसी स्थान से पांडवों ने स्वर्गारोहण के द्वार द्वारा स्वर्ग में प्रस्थान किया था।
केदारखंड में बताया गया है कि रुद्रप्रयाग में महर्षि नारद ने भगवान शिव की एक पैर पर खड़े होकर उपासना की थी। महर्षि नारद मुनि की उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नारद मुनि को रौद्र रूप में दर्शन दिया था। और यहीं पर महर्षि नारद ने रूद्र रूप में भगवान शिव से संगीत की शिक्षा ली थी। कहा जाता है कि इस दौरान भगवान शिव ने उन्हें वीणा भी प्रदान की थी।
रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल –
अगस्त्यमुनि – रुद्रप्रयाग में रुद्रप्रयाग मुख्यालय से 18 किलोमीटर की दूरी पर अगस्तमुनि है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 1000 मीटर है। कहा जाता है कि यहीं पर ऋषि अगस्त ने सालों तपस्या की थी। तभी इस मंदिर का नाम कल्पेश्वर महादेव अगस्तमुनि रख दिया। वैशाखी के अवसर पर यहां पर बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और इष्ट देवता की प्रार्थना करते हैं।
गुप्तकाशी – रुद्रप्रयाग स्थित गुप्तकाशी का महत्व काशी के बराबर है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव भगवान शिव से मिलने और उनसे आशीर्वाद लेने के लिए यहां आए थे। लेकिन भगवान शिव पांडवों से नहीं मिलना चाहते थे तो वह गुप्तकाशी से केदारनाथ चले गए थे। गुप्तकाशी में पुराना विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी कुंड आदि यहां का प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
सोनप्रयाग – सोनप्रयाग की समुद्र तल से ऊंचाई 1829 मीटर है। यह केदारनाथ के मुख्य मार्ग पर पड़ता है। सोनप्रयाग हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। कहा जाता है कि सोनप्रयाग के इस पवित्र पानी को छू लेने से बैकुंठ धाम पहुंचने में मदद मिलती है। यह केदारनाथ से 19 किलोमीटर की दूरी पर है। कहा जाता है कि सोनप्रयाग वह स्थान है जहां पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
खिरसू –
खिरसू बर्फ से ढके पर्वतों पर स्थित एक बेहद खूबसूरत स्थान है। यह हिमालय के मध्य में स्थित है। यह अपनी खूबसूरती से पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यहां से दूर-दूर तक ऊंचे ऊंचे शिखर दिखाई पड़ते हैं। यह बहुत ही शांतिपूर्ण स्थल है। यहां चारों तरफ ओक, देवदार और फलोंधान के ऊंचे ऊंचे वृक्ष देखने को मिलते हैं।
खिरसू के बारे में विस्तार से जानने के लिए देखे Khirsu Village | खिरसू गाँव एक दर्शनीय हिल स्टेशन
गौरीकुंड – गौरीकुंड के सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर की दूरी है। यह समुद्र तल से 1982 मीटर की ऊंचाई पर है। केदारनाथ मार्ग पर जाने के लिए यह अंतिम बस स्टेशन है। गौरीकुंड के बारे में कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहां पर भगवान को पाने के लिए माता पार्वती ने तपस्या की थी।
चोपता –
चोपता गोपेश्वर उखीमठ मार्ग से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह गढ़वाल क्षेत्र में आता है। यहां का प्राचीन तुंगनाथ मंदिर हिंदू धर्म के आस्था का केंद्र है। चोपता के बारे में विस्तार से जानने के लिए देखे – CHOPTA – MINI SWITZERLAND | चोपता – एक खूबसूरत हिल स्टेशन