उत्तराखंड के प्रमुख त्योहार: कैसे और कब मनाए जाते हैं?
मनुष्य का जीवन हमेशा आनंदमय तथा उत्सव प्रेमी में मानव जीवन में त्यौहार, मेंले, नृत्य संगीत विविध ललित कला आदि महती भूमिका का निर्वाह करते हुए हमारे जीवन को उमंग एवं हर्षोल्लास से भर देता है।
हमारे देश में हर जगह का अपना अलग-अलग रहन सहन और पर्व त्यौहार होता है । जैसा कि हम सभी जानते हैं मनुष्य का जीवन हमेशा आनंदमय तथा उत्सव प्रेमी में मानव जीवन में त्यौहार, मेंले, नृत्य संगीत विविध ललित कला आदि महती भूमिका का निर्वाह करते हुए हमारे जीवन को उमंग एवं हर्षोल्लास से भर देता है। उत्तराखंड बहुत से तिज त्यौहार के लिए प्रसिद्ध है जानकारी के लिए आपको बता दे कि यह स्थानीय त्यौहार, मेले, नृत्य, गीत-संगीत, तथा विविध कला समाज की स्थानीय भाषाओं, मान्यताओं, खान-पान, मनोरंजन, पर्यावरण पर्यावरण आदि को दर्शाते हैं।
फूलदेई त्यौहार
उत्तराखण्ड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार कई पर्व मनाये जाते हैं। इन्हीं त्यौहारों में से एक पर्व फूलदेई उत्तराखण्ड का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है। इस त्यौहार को फुलफुलमाई, फूल संक्रांति, फूल सगरांद, फूलकण्डी, फूलदेई भी कहा जाता है।यह त्यौहार चैत्र मास की संक्रांति में मनाया जाता है तथा इसी के साथ हिन्दु पंचाग के अनुसार नववर्ष का आगमन होता है। अत: उत्तराखण्ड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात् पहले दिन से ही बसंत ऋतु के आगमन की प्रसन्नता एवं स्वागत में फूलों का त्यौहार ‘फूलदेई’ मनाया जाता है।
इस त्यौहार का संबंध प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति से है चैत माह में चारों ओर हरियाली छाई हुई रहती है।नए फूल खिलने लगते हैं चारों ओर हर उल्लास का माहौल बना रहता है इस प्रसन्नता की अभिव्यक्ति फूलदेई पर्व के रूप में होती है।इस त्यौहार के अवसर पर छोटे बच्चे फ्यूंली, बुरांश, कचनार आदि के फूल एकत्रित कर उन्हें सबके घरों की दहलीज में जाकर डालते हैं और गीत गाते हैं। घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा बच्चों को चावल और गुड़ दिया जाता है। बच्चे निम्न गीत गाते हैं-
फूलदेई, छम्मा देई ,दैणी द्वारा , भरी भकरर ये देली से बारंबार नमस्कार, पूजे द्वारा बारंबार, फुले द्वारा (आपकी दहलीज फूलों से भरी और सब की रक्षा करने वाली हो। घर और समय सफल रहे भंडार भर रहे।इस त्यौहार की धार्मिक मान्यता भी है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव तथा माँ पार्वती का मिलन हुआ था। यह महीने औजी जाति के लिए खास महीना होता है।
चैत महीना के समय में औजी जाति के लोग अपने यजमानों के घर जाकर गीत गाते हैं ढोल नगाड़े बजाते हैं। इसके बदले में वह अपने यजमानों से दान दक्षिणा आभूषण तथा अनाज लेते हैं।औजी जाति के लोग अपने यजमानों की ब्याही कन्याओं के ससुराल जाकर मायके का संदेश पहुंचाते हैं।कुमाऊँ एवं गढ़वाल के अधिकांश स्थानों में यह त्यौहार मनाया जाता है, जबकि टिहरी के कुछ क्षेत्रों में यह त्यौहार 1 महीने तक मनाया जाता है इस त्यौहार के अंतिम दिन सारा चावल गुङ और घी इकट्ठा कर उसका प्रसाद तैयार किया जाता है और घोघा माता का भोग लगाया जाता है ।
मरोज पर्व –
मरोज पर्व यह उत्तरकाशी जनपद की रुपाणी घाटी में धूमधाम से मनाया जाता है यहां प्रत्येक साल जनवरी महीने में मरोज पर्व का आयोजन किया जाता है ।इस में कई प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं इन पकवानों के अतिरिक्त भोजन में लोग मांस खाते हैं।रासो तथा तांदि नृत्य भी इस पर्व का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है ऐसा कहा जाता है कि मरोज पर्व जीवन के प्रति सकारात्मक सोच एवं उमंग का पर्व होता है।
इगास पर्व
इगास त्यौहार गढ़वाल का त्यौहार है पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान राम रावण का वध करके अपने घर आए थे तो इसकी जानकारी 11 दिन बाद उत्तराखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र में पहुंची थी। इसलिए यहां के लोग दीपावली के 11 दिन इगास पर्व बङी धूमधाम से मनाते हैं।यह व्रत तथा देवपूजन का अवसर होता है। इस दिनरात्रि में भैलों नृत्य भी किया जाता है।। इस त्यौहार का संबंध वीरभर माधोसिंह भंडारी से जोड़ा जाता है।
कहा जाता है कि जब माधो सिंह भंडारी तिब्बत के अभियान में गये हुए थे, तब इस कारण दीपावली पर्व का आयोजन नहीं किया गया था। जब माधो सिंह विजयश्री का बारात कर गढ़वाल लौटे तो उनकी विजय की खुशी में बड़े धूमधाम से यहां दीपावली का पर मनाया जाता है। इसे इगास का नाम दिया गया
गोवर्द्धन पूजा
इस पर्व को कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के प्रथम दिन मनाया जाता है। दीपावली के अगले दिन गोवर्द्धन पूजा की जाती है। इसे अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है। इस त्यौहार का सम्बंध प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है। इस दिन गोधन की पूजा की जाती है। अत: इस पर्व को पशुओं विशेषत: दुधारू पशुओं से जोड़ा जाता है। इस अवसर पर उनकी पूजा की जाती है। उन्हें नहलाया-धुलाया जाता है एवं उन्हें फूलों की माला आदि पहनायी जाती है और फिर पूजा जाता है।