क्या हें गोलू देवता की कहानी | Story of Golu Devta

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कहा जाता हैं कि गोलू देवता, कत्यूरी राजवंश के राजा झालुराई की इकलौती संतान थे। राजा झालुराई एक न्यायप्रिय, दयालु और तेजस्वी राजा थे। राजा झालुराई की सात पत्नियाॅं थी लेकिन राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति किसी से भी नहीं थी। इस विचार से कि उनका वंश आगे को कौन बढाएगा राजा काफी चिंतित रहता था। इस बात से चिंतित होकर राजा ने भगवान भैरव की घोर तपस्या करी जिससे भगवान ने उनको पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि तुम्हारी आठवीं पत्नि के गर्भ से मैं स्वंय तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।
गोलू देवता की कहानी
उस स्त्री के बारे में जानने के लिए जब राजा ने भगवान भैरव से प्रश्न किया तो भगवान भैरव ने कहा कि उचित समय आने पर तुमको खुद ज्ञात हो जाएगा कि वह स्त्री कौन हैं।
एक दिन राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार करने जंगल में गया जहां पर उसको एक कलिंगा नाम की स्त्री मिली जो दो बैलांे को लड़ते हुए अलग कर रही थी उसकी वीरता देख राजा अतिप्रसन्न हुआ और उस महिला की वीरता से प्रभावित होकर उसके सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रख दिया जिसे महिला ने स्वीकार कर लिया। कुछ समय पश्चात इस रानी से राजा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी जिसे देखकर बाकी रानियाॅ जलने लगी और उन्होंने इस बच्चे की जगह एक पत्थर रख दिया और उस बच्चे को एक पिंजरे में रखकर नदी में डाल दिया।

कहा जाता हैं कि ये पिंजरा एक मछवारे को मिला और उसने इस बालक का पालन-पोषण किया। जब बालक बड़ा हुआ तो उसको सपने में अपने साथ हुयी सारी घटनाएं याद आ गयी। सब कुछ ज्ञात होने के पश्चात बालक अपने पिता(मछुवारे) के पास गया और घोड़े की मांग करी। मछुवारा गरीबा था तो वह लकड़ी का घोड़ा ले आया।
कहा जाता हैं कि लड़का अपने भगवान भैरव के अवतार को जान चुका था और उसने उस लकड़ी के घोड़े को जीवित कर दिया और अपने जन्म स्थान झोलुराई की तरफ चला गया। जन्म स्थान के पास एक तालाब के किनारे वो सात रानियां बैठी थी, ये देखकर उस बालक ने अपने घोड़े को फिर से लकड़ी का बना दिया और तालाब से पानी पिलाने लग गया ये देखकर उन रानियों ने बालक से कहा कि तुम पागल हो ये लकड़ी का घोड़ा कैसे पानी पी सकता हैं। ये सुनकर उस बालक ने कहा कि जैसे एक रानी पत्थर को जन्म दे सकती है वैसे ही ये लकड़ी का घोड़ा भी पानी पी सकता हैं।
ये बात सुनकर उन रानियों को काफी गुस्सा आया और उन्होंने इसकी शिकायत राजा से करी। राजा ने उस बालक को अपने दरबार में बुलाया। इसके बाद उस बालक ने राजा को सारी कहानी बता दी जो उस राजा और भगवान भैरव के बीच हुयी थी, ये सुनकर राजा को उन रानियों पर अत्यधिक क्रोध आया और राजा ने उन सातों रानियों को कठोर कारावास में डाल दिया लेकिन उस बालक के आग्रह से राजा ने रानीयों को माफ कर दिया। कुछ समय पश्चात बालक के युवा होने पर राजा ने उसको राज्य का राजा घोषित कर दिया। यही बालक आगे चलकर अपने न्याय की प्रसिद्वि के लिए गोलू देव, ग्वाल महाराज, गोलजू, गोलू देवता आदि नामों से प्रसिद्व हुआ।
दोस्तों आशा करता हूॅं कि आपको ये पोस्ट जरूर पसंद आया होगा
—जय उत्तराखंड—
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