शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव की ज़रूरत
मन का विचलित हो उठना भी शुभ संकेत है तभी आप उन कारणों को तलाशने की कोशिश करते हो और जब कारण का पता चल जाए तो आप उसका हल निकाल ही लेते हो |
ऐसे ही एक सुबह मेरा मन अपने प्राथमिक विद्यालय जाने का हुआ, पता करने पर ज्ञात हुआ कि अब न तो पहले जैसी छात्र संख्या रही हें और ना ही शिक्षक संख्या, स्कूल बंद होने की कगार पर खड़ा है|
मन कुंठित हो उठा यह जानकर कि न सिर्फ मेरे स्कूल का यह हाल है परन्तु अन्य कई सरकारी स्कूल की भी दयनीय स्थिति बनी हुई है, यहाँ तक की कुछ जगहों पर दो स्कूल को मिलाकर एक कर दिया गया है और कुछ स्कूल बंद भी हो चुके है|
अगर मैं अपने इलाके की बात करूँ जहाँ पर लोगो की आर्थिक स्थिति स्थायी है फिर भी लोग बहुत सोच समझकर खर्च करते हैं, जब प्रारंभ में गैर – सरकारी स्कूल स्थापित होने शुरू हुए थे बहुत कम बच्चों को दाख़िला दिलाया गया, परन्तु इन स्कूलों को ज्यादा समय नही लगा लोगो का ख़र्चा बढ़ाने में क्योंकि अब अभिभावक-गण शिक्षा की गुणवत्ता को महत्ता देने लगे हैं और अपने बच्चों के भविष्य को लेकर जागरूक हो उठे हैं |
सरकार ने भले ही अपने तरफ से और अपने तरीकों से प्रयास किया है कि स्कूल में छात्र-संख्या कम न हो, हमें स्कूल में हर तीन महीनों में मुफ़्त में चावल मिलते थे फिर बाद में स्कूल में खाना भी पकने लगा, कुछ स्कूलों का मंजर किसी रसोई से कम न था|
जब बात आती है अध्यापन की, BEd के दौरान भावी शिक्षकों को अध्यापन प्रणाली के बारे में विस्तृत रूप से पढ़ाया जाता हैं परन्तु वही शिक्षक उन तरीकों को कितना प्रभावी रूप से वास्तविक कक्षा में लागू कर पाता है इसकी जानकारी लेने का कोई साधन उपलब्ध नही है |
मैं स्वयं सरकारी विद्यालयों में पढ़ी हूँ और कक्षा का वह एक दृश्य मेरे आँखों के सामने आता है जब शिक्षक अपनी ड्यूटी के नाते पढ़ाता है, बिना इस बात की पुष्टि किये कि उनके पढ़ाने का तरीका कितने छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ |
सवाल यह है कि क्या कभी एसे कोई शोध हुए जिसमें यह अध्ययन किया गया कि जैसे जैसे नई पीढ़ी की सोचने समझने की क्षमता बढ़ती जाती है उस तरह उनके पाठ्यक्रम और अध्यापन प्रणाली में भी उचित बदलाव आना चाहिए |
हास्यप्रद तथ्य यह है जब छात्र के सीखने समझने की क्षमता को उसके घर की स्थिति या मानसिक क्षमता से जोड़ा जाता हैं ना कि शिक्षक के शैक्षिक योग्यता के आधार पर, अब बात आती है हम स्थानीय निवासियों की, जो अलग-अलग सरकार को बढ़े – बढ़े वादों के साथ आते देखती है और कोई खास परिवर्तन ना देखने की आदी हो गयी है, आखिर कब तक हम खुद को असहाय रखेंगे, जब हमारे पास विवेक है, बुद्धि है तो क्यों न हम ही सब एकजुट होकर इस समस्या का तोड़ निकालें|
आखिर कब तक अपने निजी जीवन के छोटी मोटी समस्याओं में उलझे रहेंगे, कब तक फेसबुक , व्हाट्सप में अपने शौक और स्टेटस का बखान करते रहेंगे|
मेरा छोटा सा सुझाव यह है कि जो भी चार लोग अपने समाज में सुधार लाने की अपेक्षा रखते है, समय निकालकर आप मुद्दों पर वार्तालाप करें और कुछ अत्यंत सरल और सहज उपाय निकालकर उन पर अमल करने की कोशिश करें|
उदाहरण के लिए अपने स्कूलों में छात्र संघ (Alumni association) का गठन करना, अतिथि व्याख्यान (Guest lecture) का आयोजन, छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए प्रेरक वार्तालाप (Motivational talk), शिक्षकों के साथ मिलकर Creative और effective teaching methodology का निर्माण, पुराने किताबों की लाइब्रेरी इत्यादि का निर्माण किया जा सकता है |
उक्त विचार लेखिका के स्वयं के हैं और आप अपनी सकारात्मक या नकारात्मक टिप्पणी देने के लिए स्वतंत्र हैं |
About Author | Dr. Babita Bhandari |
The writer has studied from College of Home Science, GBPUA&T Pantnagar. She feels that being a part of someone’s struggle can help in overcoming her never ending struggles of life . Her other interests include nature photography, novels and psychological studies. |
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