आइए जानते हैं उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले का इतिहास

टिहरी गढ़वाल जिले का इतिहास : देवभूमि उत्तराखंड का जिला टिहरी गढ़वाल पर्यटकों के बीच एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय जिला है। यह पर्वतों के बीच में स्थिति बहुत ही सुंदर प्राकृतिक स्थल है। बड़ी संख्या में हर साल पर्यटक यहां पर इस के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए आते हैं। इसकी प्राकृतिक खूबसूरती लाखों की संख्या में पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती है।

यहां पर तीन नदियों का संगम भागीरथी, भिलंगना, वाद्य गंगा है। यह तीन तरह से नदी से घिरे होने के कारण इस जगह को त्रिहरी फिर टीरी व टिहरी नाम से बुलाया जाने लगा।

 टिहरी गढ़वाल प्रमुख रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है। टिहरी शब्द त्रिहरी से बना है, जिसका अर्थ होता है एक ऐसा स्थान जो तीन तरह के पाप मनसा (विचारों से उत्पन्न पाप), वचसा (शब्दों से उत्पन्न पाप), कर्मणा (कर्मों से उत्पन्न पाप) से मुक्त करने का काम करता है। वही गढ़ का अर्थ है किला। जिसके पीछे का इतिहास काफी लंबा रहा है।

टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड की बाहरी सीमा ने दक्षिणी ढलान पर पड़ने वाले एक पवित्र पहाड़ी जिले के रूप में जाना जाता है। टिहरी गढ़वाल के बारे में कहा जाता है कि ब्रह्मांड की रचना से पूर्व भगवान ब्रह्मा ने इस जगह पर तपस्या की थी। इस जिले में दो स्थान मुनिकीरेती तथा तपोवन प्राचीन काल में ऋषियों के लिए तपो स्थली रही है। यह पर्वतीय क्षेत्र संचार के साधनों की कमी के कारण यहां की संस्कृति आज भी संरक्षित है।

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साल 888 तक यह सारा गढ़वाल छोटे-छोटे गढ़ो में विभाजित था और अलग-अलग राजाओं द्वारा वहां पर राज किया जाता था। जिनको राणा, राय, ठाकुर के नाम से जाना जाता है।

टिहरी गढ़वाल जिले का इतिहास: प्राचीन इतिहास

टिहरी गढ़वाल के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि राजकुमार कनक पाल मालवा से श्री बद्रीनाथ जी के दर्शन के लिए आए थे। बद्रीनाथ चमोली जिले में है। वहां पर उनकी भेंट तत्कालीन राजा भानु प्रताप से होती है। राजा भानु प्रताप राजा राजकुमार कनक पाल से इतना प्रभावित हो जाते हैं कि उनसे अपनी पुत्री का विवाह तय कर देते हैं और अपना सारा राज्य उन्हें सौंप देते हैं।

धीरे-धीरे कनक पाल और उनके वंशजों ने सारे गढ़ो पर विजय प्राप्त करके अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया।  1803 ई तक समस्त गढ़वाल क्षेत्र पर इन्हीं का शासन रहा। 1794 में में गढ़वाल क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ता है 1783 में भयंकर तूफान आते हैं और इस दौरान नेपाल के गोरखा गढ़वाल क्षेत्र पर आक्रमण करके कब्जा करना शुरू कर दिया था। इस क्षेत्र के लोग प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त थे और गोरखाओं के आक्रमण का विरोध नहीं कर सके और धीरे-धीरे शक्तिहीन होते गए।

1803 में गोरखा ने पुनः गढ़वाल क्षेत्र पर राजा प्रद्युम्न शाह के शासनकाल में आक्रमण किया। देहरादून में गोरखा से युद्ध के दौरान राजा प्रद्युम्न शाह वीरगति प्राप्त करते हैं और उनका नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह उनके राज दरबारयों की चालाकी की वजह से बच जाता है। इस लड़ाई के पश्चात गोरखाओं ने पूरे गढ़वाल क्षेत्र का अपना कब्जा जमा लिया।

वही सुदर्शन शाह ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद लेकर गोरखा से अपने राज्य को मुक्त कराने की कोशिश करने लगे। ईस्ट इंडिया कंपनी ने कुमाऊं, देहरादून और पूर्वी गढ़वाल में एक साथ ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया और टिहरी गढ़वाल को राजा सुदर्शन शाह को सौंप दिया। इसे टिहरी रियासत के नाम से जाना जाने लगा था। उनके वंशजों ने 1815 से 1949 तक यहां पर शासन किया।

 फिर भारत छोड़ो आंदोलन के समय इस क्षेत्र के लोगों ने सक्रिय रूप से भारत की आजादी में भाग लिया और जब हमारा देश 1947 को आजाद हुआ तो टिहरी रियासत को स्वतंत्र भारत में विलय कर दिया गया। इस प्रकार से 1949 में टिहरी रियासत उत्तर का उत्तर प्रदेश में विलय हो जाता है और टिहरी को एक नए जिले का दर्जा मिलता है। यह क्षेत्र काफी बिखरा हुआ था इसके परिणाम स्वरूप 24 फरवरी 1960 को उत्तर प्रदेश शासन में टिहरी की एक तहसील को अलग कर दिया और उसे उत्तरकाशी नाम दे दिया।

टिहरी गढ़वाल के प्रमुख पर्यटन स्थल –

दल्ला आरगढ़ – धनसाली से करीब 15 मीटर की दूरी पर स्थित दल्ला आरगढ़ नामक गांव अत्यंत सुंदर गांव है। यह गांव स्वर्गीय श्री त्रेपन सिंह नेगी की जन्मभूमि कही जाती है। जिन्होंने उत्तराखंड स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, वह टिहरी से सांसद भी रह चुके हैं। यहां से हिमालय की पहाड़ियों का बेहद ही मनोरम दृश्य देखने को मिलता है। यहां पर इष्टदेव नागराज का एक भव्य मंदिर है। स्थानीय लोगों द्वारा इस गांव को लिटिल मसूरी के नाम से भी जाना जाता है।

श्री बूढ़ा केदारनाथ मंदिर –  केदारनाथ मंदिर का महत्व पुराणों से भी अधिक बताया जाता है चारों पवित्र धामों के मध्य बूढ़ा केदारेश्वर धाम की यात्रा को आवश्यक माना जाता है प्राचीन काल से ही तीर्थाटन पर निकले आपसे श्री बूढ़ा केदारनाथ के दर्शन को अवश्य करते रहे हैं

देवप्रयाग – देवप्रयाग भारत का एक प्राचीन शहर है। यहां पर अलकनंदा और भागीरथी नदी आपस में मिलती है। देवप्रयाग जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे वृद्धाजन के नाम से जानते हैं। यह विध्वंस के जटायु की भूमि के रूप में जानी जाती है।

कंपटी फाल – यह जगह पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है। मसूरी स्थित कंपटीफल टिहरी से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। यह जगह हिल स्टेशन के रूप में जानी जाती है। यह नियम नेत्री मार्ग पर स्थित है। यहां पर स्थित वाटरफॉल खूबसूरत घाटी पर स्थित होने की वजह से आकर्षण का केंद्र रहता है।

नाग टिब्बा – टिहरी गढ़वाल के पर्यटन स्थल नाग टिब्बा से आप हिमालय की खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठा सकते हैं। इसके अलावा यहां से देहरादून की घाटियों का नजारा भी देखा जा सकता है। नाग टिब्बा ट्रैकर, और पर्वतारोहियों के लिए एक बेहद उपयुक्त जगह मानी जाती है।

यह भी जाने : देवभूमि के पौड़ी गढ़वाल जिले का इतिहास | History of Pauri Garhwal in Hindi

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