देवभूमि के पौड़ी गढ़वाल जिले का इतिहास | History of Pauri Garhwal in Hindi

पौड़ी गढ़वाल जिले का इतिहास (History of Pauri Garhwal) : पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड का ऊंची पहाड़ियों के बीच मे स्थित एक बेहद खूबसूरत जिला है। यह जिला कंडोलिया की पहाड़ियों के बीच में स्थित है। समुद्र तल से इस जिले की ऊंचाई 1750 मीटर है। पौड़ी गढ़वाल हिल स्टेशन के रूप में भी पर्यटकों के बीच प्रसिद्ध है।

यह देवभूमि उत्तराखंड का एक ऐसा जिला है जहां पर सालभर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। पौड़ी गढ़वाल की दो नदियां अलकनंदा और नायर प्रमुख नदियाँ है।

 पौड़ी जिला गोलाकार आकार में है। इसके उत्तर में चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल दक्षिण में उधम सिंह नगर पूर्व में अल्मोड़ा तथा पश्चिम में देहरादून जिला स्थित है। यहां के बड़े बड़े पहाड़ और जंगल इसकी खूबसूरती का और भी ज्यादा आकर्षण बना देते हैं। यहां से बर्फ से ढके हिमालय के बेहद खूबसूरत और आकर्षक नजारा देखने को मिलते हैं। यह जिला 5440 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

Location of Pauri Garhwal district in Uttarakhand

पौड़ी गढ़वाल जिले का प्राचीन इतिहास – 

देवभूमि उत्तराखंड जिला पौड़ी (पौड़ी गढ़वाल जिले का इतिहास) गढ़वाल अपनी संस्कृति और विरासत के साथ साथ अपनी अदम्य साहस के लिए भी जाना जाता है। प्राचीन काल में यहां पर कत्यूरी राजवंश के राजाओं का निवास स्थान अलग-अलग जगहों पर रहा है। उत्तराखंड में पहले कत्यूरी राजवंश का शासन हुआ करता था। इस क्षेत्र में तत्काल राजवंशों के शिलालेख और मंदिर यहां पर देखने को मिलते हैं। 

कत्यूरी शासन के पतन के बाद गढ़वाल का पूरा क्षेत्र एक सरदार द्वारा संचालित हो रहा था। जिसमें 60 से अधिक राजवंशों में विभाजित होकर यहां पर शासन होता था। उस समय यहां के सेनापति चंद्रपुर के सेनापति हुआ करते थे। चंद्रपुरगढ़ के राजा जगतपाल ने यहां पर 1455 से 1493 तक शासन किया था। 15वीं शताब्दी के अंत में राजा अजय पाल ने इस क्षेत्र पर शासन किया उसके बाद से ही इस क्षेत्र को गढ़वाल के रूप में पहचान मिली।

राजा अजय पाल और उनके उत्तराधिकारियों ने गढ़वाल में लगभग 300 साल तक शासन किया। इस दौरान गोरखाओं द्वारा गढ़वाल और कुमाऊं में कई हमले भी किये गये। नेपाल के गोरखाओं ने जब कुमायूं पर अपना कब्जा जमा लिया तब आगे बढ़ते हुए उन्होंने गढ़वाल पर भी हमला कर दिया था।

इतिहास में बताया जाता है कि पौड़ी गढ़वाल में  से कई साल तक गोरखा शासन रहा। इसके बाद गोरखा और अंग्रेजों में झड़ते हुई और 12 अप्रैल 1815 से अंग्रेजों का यहां पर शासन शुरू हो गया। अंग्रेजों ने गढ़वाल क्षेत्र के अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पश्चिम तक में अपना राज्य स्थापित किया था। इस दौरान पश्चिमी गढ़वाल के बचे हुए हिस्से को राजा सुदर्शन शाह को सौंप दिया गया था। उन्होंने अपनी राजधानी टिहरी को बनाई थी।

 कुमायूं और गढ़वाल में अंग्रेजों ने शासन के लिए एक कमिश्नर नियुक्त किया था और नैनीताल में उसका मुख्यालय बनाया गया था। 1840 में पौड़ी गढ़वाल को एक अलग जिला बनाकर असिस्टेंट कमिश्नर के शासन में दे दिया गया था। भारत की आजादी के बाद 1960 में गढ़वाल जिले से काटकर चमोली एक नया जिला बनाया गया। 1969 में गढ़वाल डिवीजन को केंद्र बनाया गया है और उसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया था।

1998 में पौड़ी जिले 72 गांव को अलग कर दिया गया और एक नए जिले के रूप में रुद्रप्रयाग जिले का गठन हुआ था। इस तरह से वर्तमान पौड़ी गढ़वाल जिला अस्तित्व में आया। अब इसमें 9 लहसील और 15 विकास ब्लॉक है। देवभूमि उत्तराखंड का यह जिला हिले स्टेशन के रूप में भी पर्यटकों के बीच जाना जाता है। 

पौड़ी गढ़वाल की संस्कृति –

 उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ साथ अपनी परंपराओं और संस्कृति के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। लेकिन पौड़ी गढ़वाल की अपनी एक अलग पहचान है। यहां पर ज्यादातर लोग आम बोलचाल भाषा के रूप में गढ़वाली भाषा का उपयोग करते हैं। वहीं स्कूलों एवं सरकारी कार्यालयों में हिंदी भाषा और अंग्रेजी भाषा में काम होता है। यहां के लोग गढ़वाली के अलावा हिंदी और अंग्रेजी भाषा भी अच्छा बोलते हैं।

History of Pauri Garhwal in Hindi

पौड़ी गढ़वाल जिले का इतिहास में लोक संगीत, लोकगीत नृत्य की झलक स्थानीय पर्व – त्योहारों में देखने को मिलती है। यहां की महिलाएं जंगलों में घास काटने या खेतों में काम करने के दौरान लोकगीतों को गाते हुए देखी जा सकती हैं। इसके अलावा यहां के लोग अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए भी अपने पारंपरिक लोक नृत्य को करते हैं। पौड़ी गढ़वाल में त्योहारों में साल्टा महादेव का मेला, देवी का मेला, भौ मेला, सुभनाथ का मेला, पटोरिया मेला काफी प्रसिद्ध है। 

पौड़ी गढ़वाल के काफी लोग भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं यही वजह है कि भारतीय फौज में एक रेजीमेंट गढ़वाल नाम से भी है।

पौड़ी गढ़वाल के प्रमुख पर्यटन स्थल

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिला पर्यटन की दृस्टि से काफी समृद्ध जिला है। यहां पर कई सारे स्थल पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। 

बिंसर महादेव –

बिनसर महादेव मंदिर पौड़ी जिले में स्थित है। यह समुद्र से 2480 मीटर की ऊंचाई पर है। यह जगह हरिगौरी गणेश, महिषासुर मंदिनी के लिए प्रसिद्ध है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत ही मनोरम है। इस मंदिर के संबंध में मान्यता है कि महाराजा पृथ्वी ने इसे अपने पिता बिंद की याद में बनवाया था। बिनसर महादेव को बिंदेश्वर मंदिर के नाम से भी जानते हैं।

ताराकुण्ड –

  ताराकुंड समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बेहद खूबसूरत और आकर्षक जगह है। इतनी अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां से आसपास का नजारा बेहद ही दिलचस्प और मनमोहक लगता है। यहां पर एक छोटी सी झील और एक प्राचीन मंदिर है। इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के बावजूद यहां का प्राचीन मंदिर और 9 बस गहरा कुआं है जो आज भी लोगों के लिए बेहद आश्चर्य की बात है। बताया जाता है कि इस मंदिर को पांडवों ने बनवाया था। तीज त्यौहार को स्थानीय निवासियों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है।

खिरसू –

History of Pauri Garhwal in Hindi

खिरसू पौरी मुख्यालय से करीब 19 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। इसे एक पर्यटक ग्राम के तौर पर भी जाना जाता है। खिरसू एक बेहद शांतिपूर्ण माहौल वाला स्थल है। यहां पर, ओक, ऊंचे ऊंचे देवदार और सेब के बगीचे देखने को मिलते हैं। यहां पर एक बेहद प्राचीन गंढ़ीयाल देवता का मंदिर भी है।

ज्वालपा देवी मंदिर –

शक्तिपीठ मां दुर्गा को समर्पित ज्वालपा देवी मंदिर है। यह पौड़ी कोटद्वार सड़क मार्ग द्वारा करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। नवरात्र के अवसर पर यहां पर विशेष रूप से पूजा अर्चना होती है।

कण्वाश्रम

यह मालिनी नदी के किनारे स्थित है। यहां पर स्थित कण्व आश्रम बेहद महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक जगह मानी जाती है। बताया जाता है कि ऋषि विश्व मित्रों ने यहां पर तपस्या की थी। यहीं पर भगवानों के देवता इंद्र ने उनकी तपस्या को देखकर चिंतित हो गए थे और तपस्या को भंग करने के लिए मेनका को भेजा था। वह ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने में कामयाब रही थी। इसके बाद मेनका ने कन्या के रूप में जन्म लिया और पुनः स्वर्ग आ गई। बाद में वह कन्या शकुंतला के नाम से प्रसिद्ध हुई और उनका विवाह हस्तिनापुर के राजा से हुआ। शकुंतला ने एक बेटे को जन्म दिया और भारत नाम रखा। भारत के राजा बनने के बाद उनके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत रखा गया था।

कंडोलिया – 

पौड़ी गढ़वाल जिले का इतिहास

कंडोलिया देवता अर्थात शिव मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। यहां मन्दिर के पास खूबसूरत पार्क और खेल परिसर भी है। गर्मियों के मौसम में कंडोलिया पार्क में पर्यटकों की भीड़ देखी जाती है। यहां से पौड़ी शहर की खूबसूरती और गंगेश्वर घाटी भी देख सकते हैं। सर्दियों के मौसम में इस मंदिर से हिमालय की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहाँ से हिमालय की बंदरपूंछ, केदारनाथ, चौखंबा, नीलकंठ, त्रिशूल चोटियों का नज़ारा बेहद बेहद आकर्षक लगता है।

यह भी जाने : क्या हैं उत्तरकाशी जिले का इतिहास | HISTORY OF UTTARKASHI IN HINDI

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!