कल्पनाओं को साकार करने वाला वृक्ष : कल्पवृक्ष | KalpVriksha
दोस्तों कहा जाता है कि देवभूमि के कण कण में 33 करोड़ देवी देवता विराजमान हैं। फिर चाहे वो पत्थर, नदियां, भूमि, हवा, आकाश, पशु, पक्षी या फिर पेड़ ही क्यों ना हो। इस भूमि की अपनी मान्यताएं और अपनी आस्था है जो कि पूरे विश्व में अपनी इसी आस्था कि वजह से अपना अलग स्थान बनाए हुए हैं।
दोस्तो आज हम आपको देवभूमि के ऐसे ही एक वृक्ष के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि ये वृक्ष ना केवल मन्नतें ही पूरी करता है बल्कि इस वृक्ष का औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है। दोस्तो कहा जाता है कि इस वृक्ष को स्वर्गलोक से लाया गया है और ये वृक्ष समुद्रमंथन से उत्पन्न १४ रत्नों में से एक हैं जो कि उत्तराखंड के केवल एक जिले में ही पाया जाता है।
कल्पवृक्ष, जी हां दोस्तों इसे देवताओं का वृक्ष भी कहा जाता है। तो चलिए दोस्तो जानते हैं इस वृक्ष के बारे में –
दोस्तों अल्मोड़ा एक ऐसा शहर जिसको मान्यताओं के बारे में सबसे ऊपर माना जाता है ये वृक्ष यही पर स्थित है जो कि कल्पवृक्ष के नाम से जाना जाता है। इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है।
ये वृक्ष अल्मोड़ा-कफड़खान मोटर मार्ग में शैल गाव से लगभग २.५ किलो मीटर की दूरी पर छानी गांव पर स्थित है। अल्मोड़ा से यहां की दूरी लगभग 7 से 8 किलो मीटर है। मोटर मार्ग से लगभग ३ किलो मीटर की दूरी का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है, क्योंकि उस जगह पर अंदर को गाड़ी जाने की सुविधा अभी वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। कल्पवृक्ष एक बहुत बड़ी जन आस्था का केंद्र है। पैदल मार्ग होते हुए भी यहां आपको भक्त जनों की काफी भीड़ देखने को मिल जाएगी।
दोस्तो इस इस वृक्ष की ऊंचाई लगभग 70 फुट होती है और इसके जीवनकाल की बात की जाए तो कहा जाता है कि अल्मोड़ा में स्थित कल्पवृक्ष हजारों साल पुराना हैं। सदाबहार इस पेड़ की पत्तियां कभी कभार ही गिरती हैं और कहा जाता है कि इस पेड़ की गिरी हुई पत्तियां मिलना अत्यंत शुभ माना जाता है।
दोस्तो कहा जाता है कि इस वृक्ष पर सकारात्मक गुण अधिक पाया जाता है जिस कारण व्यक्ति इस वृक्ष के नीचे बैठकर जो भी कल्पना करता है वो साकार हो जाती है। इस वृक्ष की ऐसी मान्यता है कि जो भी इस वृक्ष की पूजा करने और मन्नत मांगने यहां आता है तो उसे इस वृक्ष के आस-पास कुछ ना कुछ पकवान या भोजन बनाकर वृक्ष को भोग लगाना पड़ता है फिर उस बने हुए पकवान को सभी लोग आपस में प्रसाद के रूप में बांट लेते हैं।
कहा जाता है जब वृक्ष को भोग लगाया जाता है तभी यहां की यात्रा सफल मानी जाती है। इस जगह पर आए भक्तजन लोग वृक्ष की टहनी पर चुनरी, धागा बांधकर अपनी मन्नतें मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर उस चुनरी, धागा को खोलते हैं लेकिन इस वृक्ष की टहनी पर इतनी अत्यधिक चुनरिया, धागे बंधे होते है कि जिस कारण अपनी चुनरी, धागा पहचानना असंभव होता है तो भक्तजनों की जब मनोकामनाएं पूरी होती है तो वह कोई भी एक चुनरी या धागे को पेड़ से उतार कर भगवान का धन्यवाद करते हैं।
भक्तों द्वारा इस वृक्ष को शिव के रूप में पूजा जाता हैं। संत साधु लोगो की साधना के लिए भी यह स्थान को श्रेष्ठ माना गया है। विभिन्न स्थानों के संत महात्मा भी यहां आकर अपनी साधना करते है। वर्तमान में यहां पर परम संत महायोगी बाबा श्री कैलाश गिरी जी महाराज साधना कर रहे हैं। मुझे बाबा जी का सानिध्य आशीर्वाद रूप में प्राप्त हुआ। कैलाश गिरी महाराज के अनुसार उनसे पहले इस स्थल में परम तेजस्वी श्री मनमोहन गिरी महाराज ने लगभग २०-३० वर्षों तक घोर तपस्या करी। उनकी मृत्यु उपरांत उनकी समाधि स्थल यहां पर बनाया गया है। महान तेजस्वी श्री कैलाश गिरी महाराज ने अपनी साधना और कर्मठशीलता से इस स्थल को एक विशेष धार्मिक और पर्यटन स्थल बनाया हैं।
देश के विभिन्न राज्यों के पर्यटक भी पर्यटन सीजन में जब ऐतिहासिक नगर पहुंचते हैं तो वह अपनी सुविधानुसार कल्पवृक्ष के दर्शन को अवश्य ही आते है। साल भर के सभी पर्वो में यहां नगर ही नहीं दूरदराज के क्षेत्रों के लोग भी पेड़ की पूजा-अर्चना करने को यहां पहुंचते हैं।
पौराणिक कथा
दोस्तों इस दैवीय पेड़ से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा भी हैं। जिसके अनुसार कहा जाता है कि एक बार एक व्यक्ति गर्मी के मौसम में तेज धूप में कहीं जा रहा था। तेज गर्मी लगने पर उसने भगवान से प्रार्थना करी कि हे प्रभु कहीं एक ऐसे वृक्ष की छांव दिला दो, जहां बैठकर मैं आराम कर सकूं। भगवान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर कल्पवृक्ष से कहा कि जाओ और इस व्यक्ति को थोड़ी देर अपनी छांव दे आओ।
कहा जाता है कि ये व्यक्ति कल्पवृक्ष का महत्व नहीं जानता था और ये व्यक्ति कल्पवृक्ष की ठंडी और सकारात्मक छाव में बैठ कर हवा का आनंद लेने लगा। उस व्यक्ति ने पेड़ के नीचे बैठने के बाद सोचा की छांव तो बहुत अच्छी है, मगर एक गद्दा और तकिया मिल जाता तो बड़ा ही सुकून मिलता तो कुछ समय बाद वहां पर अचानक से गद्दा और तकिया आ गया और व्यक्ति वहां पर तकिया लगा कर लेट गया। इस व्यक्ति की इच्छाएं असीमित होती जा रही थी और कहा जाता है कि अगर इच्छाएं असीमित हो जाए तो जीवन में कष्ट भी असीमित हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ इस व्यक्ति के साथ भी हुआ।
इसके पश्चात इस व्यक्ति ने खाने की इच्छा जताई तो इस पेड़ ने उसको खाना भी प्रदान कर दिया। वह ये सब देखकर आश्चर्य हो जाता है कि आखिर आज भगवान मुझ पर इतना प्रसन्न कैसे हो रहे हैं कि जो मैं बोल रहा हूं वह पूरा हो जा रहा है। फिर थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति खाना खा कर आराम करता है और सोचता है कि अब मैं आगे की यात्रा को कल को ही शुरू करूंगा। आज मैं यहीं पर रुक जाता हूं।
इस व्यक्ति को इस वृक्ष की कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि वह कल्पवृक्ष के नीचे बैठा था और कल्पवृक्ष एक ऐसा वृक्ष है जिसके नीचे बैठकर किसी भी चीज की कल्पना करो तो वह अवश्य ही पूरी हो जाती है।
थोड़ी देर में अंधेरा होने लगा तो उसके मन में एक ख्याल आया कि मैं इस जंगल पर अकेला हूं। कहीं रात को बाघ आकर मुझे खा गए तो क्या होगा मेरा। उस व्यक्ति का यह सोचना ही था कि कुछ देर बाद बाघ वहां आ गया और उस व्यक्ति को खाकर चला गया। इसीलिए इस वृक्ष को कल्पनाओं को पूर्ण करने वाला वृक्ष भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि इस वृक्ष की मान्यताओं का उल्लेख शास्त्रों में भी मिलता हैं।
कल्पवृक्ष का महत्व
कल्पवृक्ष को औषधी वृक्ष भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस वृक्ष में संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन ‘सी’ होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं। इसकी पत्ती को धोकर सुखाकर या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है।
यह वृक्ष को पर्यावरण के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह वृक्ष जहां भी होता है वहां कभी भी सूखा नहीं पड़ता है। इस वृक्ष की एक खासियत यह भी है कि ये वृक्ष कीट-पतंगों को अपने आसपास नहीं आने देता और दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को समाप्त कर देता है। इस मामले में इसमें तुलसी जैसे गुण पाए जाते हैं।
दोस्तों आशा करता हूं कि आपको हमारी ये पोस्ट अवश्य पसंद आयी होगी।
Reference : Wiki Link
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