उत्तराखंड में फलों की खेती में हैं रोजगार की बेहतर संभावनाएं | Fruit Farming Hindi

जाने उत्तराखंड में फलों की खेती करने के बेहतरीन आईडिया

हमारा उत्तराखंड भारत के उत्तरी भाग में है जैसा कि हम सभी जानते हैं हमारा उत्तराखंड एक पहाड़ी इलाका है लेकिन यहां की मिट्टी बहुत ज्यादा उपजाऊ है।हमारे उत्तराखंड में  वर्षा से सिंचित और असिंचित कृषि दोनो की जाती हैं, हालाँकि वर्षा से सिंचित कृषि ज़्यादा की जाती है। हमारे उत्तराखंड के किसान बहुत अच्छी खेती- बाढ़ी करते हैं और उन्हें खेती बाढ़ी का बहुत अच्छा अनुभव भी है। हमारे उत्तराखंड के किसान अगर चाहे तो वो अपने  घरों पर रहकर फलो की अच्छी खेती बाढ़ी कर सकते है।

उत्तराखंड में कीवी की खेती में है अच्छी आमदनी

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कीवी फल’ गूजबैरी भी कहते है  कीवी फल की डिमांड भारत में काफी होती है। कीवी का फसल मध्यवर्ती, निचले पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों तथा मैदानी क्षत्रों में की जाती है जहां सिंचाई की सुविधा काफी अच्छी है इसीलिए यहां पर  कीवी का फल काफी स्वादिष्ट होता है और कीवी फल का उपयोग सलाद के रूप में भी कीया जाता है कहां जाता है कि कीवी फल अपने पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। सर्दी के मौसम में कीवी फल की खेती की जाती है। जब किसान कीवी फल के पौधों को लगाता है तो उसके चारों और मिट्टी से अच्छी तरह से दबा देता है उसके बाद सिंचाई करता है पाले से बचाने के लिए पौधे पर खरपतवार रख देते हैं ताकि पाले  कारण पौधे खराब ना हो। कीवी फल में सिंचाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। करीब 1 फुट तक पूनिंग करने पर पौधे तेजी से बढ़ते हैं। जब कीवी अच्छे से तैयार हो जाते हैं तो उसे बाजारों में बेचा जाता है।  

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खीरे की खेती कैसी की जाती है

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किसानों के लिए खीरी का खेती करना बहुत ही आसान तरीका है  उत्तराखंड के किसान आसानी से खीरे की खेती कर सकते हैं।खीरे की खेती करने के लिए किसानों को सबसे पहले  दिसंबर के महीने में प्लास्टिक के गिलास में मिट्टी भरकर खीरे के बीज को अंकुरित करने के लिए डालना होता है। फिर जब धान की फसल कट जाता है।तो किसान खेत को अच्छी तरह से  जोताई करवाकर उसमें खाध डालते हैं फिर जनवरी के अंतिम सप्ताह में खीरे के पौधे को खेत में रोप दिया जाता है। खीरे के पौधे में किसानों को सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। और समय-समय पर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव भी करना होता है।

सेव की खेती

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सेव की खेती करना किसानों के लिए काफी आसान होता है सेव लगाने के लिए किसानों को सबसे पहले  90×90 सेंटीमीटर गहरे और व्यास के 6 से 7 मीटर की दूरी पर गड्ढा खोद लेना होता है उसके बाद उस गड्ढे में  12 से 18 किलोग्राम गोबर और मिट्टी भरकर कुछ दिनों के लिए छोड़ देना होता है उसके बाद पौधों को मकोड़े से बचाने के लिए डेढ़ सौ ग्राम  फंफूदजनित रोगों से बचाने के लिए 150 ग्राम एल्ड्रिन धूल 10 प्रतिशत मिट्टी में मिला ना होता है उसके बाद रोपाई के पहले तैयार पौधों के जड़ों को फफूंदनाशी एगलाल,थायरम, से उपचारित कर लेना चाहिए जिससे कि पौधे में कीड़े मकोड़े बिल्कुल ही ना लगे ।

किसान को सेब का पौधा तभी रोकना चाहिए जब मौसम ठंडा हो  सेव से पौधे को गड्ढे के बीचोबीच रोपना चाहिए रोपने के बाद गड्ढे के खाली ऊपरी जगह को मिट्टी से  अच्छे तरह से भर कर पौधे के चारो ओर थाला बना देना चाहिए उसके बाद पौधे पर अच्छे तरह से मिट्टी चढ़ा देना चाहिए । सेव का पौधा रोपने के बाद पौधे मे हल्की सिंचाई करनी चाहिए। जब भी पौधे में पानी दे तो एक बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि पौधे के तने में ज्यादा पानी नहीं जाना चाहिए अगर तने में ज्यादा पानी चला जाएगा तो पौधे को सड़ने गलने का ज्यादा खतरा रहता है।

सेब को दिन में किसी भी समय तोड़ा जा सकता है, परन्तु तोड़े गए सेबों को धूप में नही रखना चाहिए, सेब को वर्षा के समय या कोहरा और  वर्षा होने के तुरंत बाद कभी नही तोड़ना चाहिए। सेव तोड़ने के समय काम आने वाली टोकरी या किल्टे में कोई मुलायम वस्त्र या कोई कपडा  रख देना चाहिए जिससे की जब सेव को तोङा जाऐ तो सेव में चोट ना लगे और सेव बिल्कुल ही खराब ना हो।

पपीते की खेती कैसे करे

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पपीते की खेती करना किसान के लिए काफी आसान है और इसमें बहुत कम पैसे भी लगते हैं किसान पपीते का उत्पादन कर सकता है।पपीते की खेती  गर्म और ठंडा जलवायु में भी आसानी से किया जा सकता है जब भी किसान पपीते की खेती करता है तो उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पपीते की खेती के लिए दोमट या हल्की मिट्टी ज्यादा सही रहता है इस मिट्टी में पपीते की पैदावार बहुत अच्छी होती है पपीते की खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच मान हमेशा 7 होना अच्छा रहता है क्योंकि हम सभी जानते हैं की पपीता का पौधा ज्यादा पानी सहन नहीं कर पाता है ज्यादा पानी अगर पपीते के पौधे में लग जाए तो वह गिर जाता है इसीलिए पपीते की खेती करने से पहले खेत में अच्छे से नाला बना देना चाहिए जिससे कि पानी खेत में ना रुके।

पपीते के बीज तैयार करने के लिए पपीते के पौधे को अच्छी तरह से क्यारी और पॉलिथीन में तौयार करना चाहिए। जब भी पपीते की पौधे को रोपाई करना हो तो सबसे पहले खेत की तैयारी अच्छी से कर लेना चाहिए खेत में दो-तीन बार जुताई करवा देना चाहिए जिससे कि पपीते की पैदावार अच्छा हो। अगर पपीते का पौधा अच्छा रहता है और उसकी देखभाल सही ढंग से होता है तो 40 से 50 किलो एक पौधा पपीता देता है जो कि बाजार में बहुत महंगे दामों पर बिकता है।

संतरेे की खेेेती

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हमारे उत्तराखंड में संतरे की खेती अगर की जाए तो किसानों को इसकी खेती करने में ज्यादा मेहनत की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन उनको हमेशा ये देखना होगा कि संतरे की खेती के लिए शुष्क जलवायु होना बहुत जरूरी है जिससे पौधे को बारिश की जरूरत नहीं हो। 

संतरे की खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छी रहती है दोमट मिट्टी में संतरे की खेती बहुत अच्छी तरह से होती है संतरे की खेती के लिए जलभराव वाली भूमि की जरुरत नही होती है।

संतरे की पौधों को खेत में लगाने से पहले संतरे के पौधे को नर्सरी में उगाया जाता है इसके लिए संतरे के बीजों को सबसे पहले राख में मिलाकर सूखने के लिए कुछ देर के लिए रखा जाता है  फिर उसे मिट्टी में भरकर तैयार किया जाता है फिर पॉलीथिन की बैग में उस पौधे को लगाया जाता है।

संतरे की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई कुड़ाई करा देना चाहिए। उसके बाद तैयार किए हुए खेत में खुरपी से गड्ढा करके संतरे के पौधे को पॉलीथिन से हटाकर गढे में लगा देना चाहिए उसके बाद पौधे के चारों तरफ अच्छे से मिट्टी का भराव कर देना चाहिए एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि संतरे की खेती हमेशा ही बरसात वाले मौसम में करनी चाहिये।  संतरे की खेती पौधे की देखरेख पर निर्भर रहता है अगर पौधा अच्छा होगा तो फल भी अच्छा होगा।

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