उत्तराखण्ड की ऐसी जगह जहां शिव ने बाघ का रूप धारण किया

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर जो बागनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर सिर्फ बागेश्वर जिले में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। बागेश्वर जिले का नाम भी इसी मंदिर के आधार पर रखा गया है। यह मंदिर समुद्र तल से 1004 मीटर की ऊंचाई पर सरयू तथा गोमती नदी के संगम पर स्थित है। इसके पूर्व में भिलेश्वर पर्वत, पश्चिम में नीलेश्वर पर्वत, उत्तर में सूर्यकुण्ड तथा दक्षिण में अग्निकुंड स्थित है।

इस मंदिर का निर्माण कुमाऊं के राजा लक्ष्मीचंद ने सन् 1602 ई. में करवाया था। शिव पुराण में मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छाओं के अनुसार बसाया था।

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बागनाथ मंदिर

हिंदू धर्म के अनुसार पुरानी कथाओं में इस मंदिर से जुड़ी कई रोचक कथाएं हैं जिनमें से एक जो काफी प्रसिद्ध हैं कि इस मंदिर में एक बाबा रहा करते थे, जिनका नाम बाबा मार्कण्डेय था, वह इस मंदिर में भगवान शिव जी की घोर अराधना करते थे, बाबा की इस भक्ति को देखकर शिव जी और माता पार्वती ने उनकी परीक्षा लेने की सोची। शिवजी ने माता पार्वती से गाय का रूप लेने को कहा और स्वयं बाग का रूप धारण कर लिया। फिर उन्होंने पहले गाय को उस स्थान पर भेजा जहां पर बाबा मार्कण्डेय सोए थे उसके बाद भगवान शिव ने बाग का रूप धारण कर गाय पर हमला किया। गाय की आवाज सुनकर बाबा मार्कण्डेय की आंखे खुल गई। जैसी ही बाबा की आंखे खुली उन्होंने गाय पर बाग को हमला करते हुए देखा वह गाय की जान बचाने के लिए दौड़ पड़े। जैसी वह उस गाय और बाग तक पहुंचे तो गाय ने पार्वती और बाग ने शिवजी का रूप ले लिया, फिर शिवजी ने बाबा मार्कण्डेय को उनकी इच्छा के अनुसार वरदान दिया। भगवान शिव के बाग रूप लेने के कारण ही इस स्थान को बागनाथ कहा जाता है।

इस मंदिर की कुछ हैरान कर देने वाली बातें

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बागनाथ मंदिर

इस मंदिर के सामने सरयू नदी पर एक घाट स्थित है, जहां प्रतिदिन अनगिनत शवों को जलाया जाता है। इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि सामने घाट पर आने वाले शव को जलाने के लिए मंदिर में एक अमर आग है जो दिखाई नहीं देती है लेकिन जैसी उस स्थान पर चिता पर आग देने के लिए लकड़ी लगाई जाती है तो वह खुद-ब-खुद उस लकड़ी में आग जल जाती है फिर उसी आग से शव को जलाया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव को दो समय भोग लगाया जाता है। एक सुबह के समय और एक शाम के समय। एक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में भोग तभी लगाया जाता है जब सामने घाट पर कोई शव आता है, तभी भगवान शिव को भोग लगाया जाता है और जब तक कोई शव नहीं आए तब तक भगवान शिव को भोग नहीं लगाया जाता है। शव की चिता पर आग और भगवान शिव को भोग दोनों ठीक एक ही समय पर लगाया जाता है, जब तक कोई शव सुबह के समय नहीं आता तब तक सुबह का भोग भगवान शिव को नहीं लगाया जाता और जब तक शाम के समय कोई शव नहीं आता, तब तक शाम का भोग नहीं लगाया जाता है। मंदिर में भगवान शिव जी को भोग मंदिर के दरवाजे बंद करके लगाया जाता है।

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क्या आप जानते हैं  उत्तराखंड का एकमात्र घाट जहाँ सूर्यास्त के बाद भी जलती हैं चिताएं ?

इसी मंदिर में एक भैरव देवता का मंदिर भी स्थित है। इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि भैरव देवता की पूजा करने के बाद मंदिर के बाहर रखे पत्थर के टुकड़े से मंदिर के बाहर दीवारों पर भक्तजन अपनी सभी परेशानियां या मनोकामनाएं लिखते हैं और भक्तजनों के द्वारा लिखी गई बातें भगवान भैरव देवता जरूर पूरा करते हैं। इस मंदिर में जनवरी में मकर संक्रांति के दिन उत्तरायणी का विशाल मेला लगता है।

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Piyush Kothyari

Hi there, I'm Piyush, a proud Uttarakhand-born author who is deeply passionate about preserving and promoting the culture and heritage of my homeland. I am Founder of Lovedevbhoomi, Creative Writer and Technocrat Blogger.

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