विश्व पर्यावरण दिवस : पर्यावरण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देवभूमि में भी दिख रहा जलवायु परिवर्तन का असर
Dehradun News : उत्तराखंड के पर्यावरणीय सेवा का लाभ उत्तराखंड के ही लोग नही बल्कि पूरा देश ले रहा है। नदियों का पानी, शुद्ध हवा सबके हिस्से में आते हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में उत्तराखंड का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रदेश के कुल 72% भाग में वन फैले हुए हैं। ग्लेशियर नदियों को सदा जलमग्न बनाए रखते हैं। वन कार्बन को शोख कर ऑक्सीजन देते हैं। नदिया पहाड़ी हिस्सों के साथ-साथ मैदानी हिस्से की लोगों की भी प्यास बुझाती हैं। पूरी पारिस्थितिकी तंत्र को संभालने वाले तंत्रिका का यहाँ अनमोल खजाना पाया जाता है।
लेकिन अब उत्तराखंड में भी जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्पन्न विषमताओं और प्रकृति का अंधाधुंध दोहन की वजह से हिमालय क्षेत्र का परिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है। मैदानी क्षेत्रों के साथ-साथ पहाड़ो में भी उसका असर सीधे देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी, शहरीकरण का विस्तार, विकास के नाम पर वनों की कटाई जैसे कई कारण हैं जो यहां की परिस्थितिकी के लिए एक चुनौती बने हैं। इन सभी परिवर्तनों की वजह से हिमालय क्षेत्र में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है।
जैसा कि हम जानते है नदी, झील, जंगल, वेटलैंड, घाटी सब का अपना एक परिस्थितिकी तंत्र होता है और यह मनुष्य के हस्तक्षेप से प्रभावित हो रहा है। प्रदेश में तेजी से विकसित हो रहे पेरी अर्बन एरिया वनों की कटाई कर उन्हें नष्ट कर रहे हैं। नदियों के स्वरूप में बदलना शुरू हो गया है और वे सिकुड़ रही हैं। अब इनमे मानसून के मौसम में ही पानी देखने को मिलता है। यहां के कंजर्वेशन रिजर्व भी सुरक्षित नहीं है। मानवीय हस्तक्षेप की वजह से वन्यजीवों की दुनिया भी प्रभावित हो रही है।
प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। नतीजा यह है कि हिमालय क्षेत्र में औसत से कम वर्षा हो रही है। मौसम चक्र में परिवर्तन हो रहा है। जिसके फलस्वरूप कृषि और फलोत्पादन पर भी इसका दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से हिमालयी क्षेत्रों में वनस्पतियां अपना स्थान बदलकर ऊंचाई वाले क्षेत्र की तरफ आगे बढ़ रही हैं, जो कि हिमालय के परिस्थितिकी तंत्र के लिए उचित नहीं है। तापमान वृद्धि से ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे आने वाले समय में नदियों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो सकता है।
पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य का जीवन सुरक्षित रहे, इसके लिए परिस्थितिकी तंत्र का संतुलित बने रहना बेहद जरूरी है।
उत्तराखंड के पर्यावरण सेवाओं के बदले पिछले एक दशक से वहां पर ग्रीन बोनस बनाने की मांग की जा रही है। पर्यावरण सेवा के लिए एक वैज्ञानिक आधार तैयार होने के बाद इस मांग को मजबूती भी मिली है। लेकिन इस संबंध में नीति नियंताओ का रुख उदार नही है।
कोरोना वायरस महामारी ने लोगों को पर्यावरण के अहमियत को काफी हद तक समझा दिया है। लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत होने की जरूरत है। पर्यावरणीय सेवाओं के मामले में उत्तराखंड एक समृद्ध राज्य है। यहां पर हवा, पानी, बुग्याल, नदियों, झील, वेटलैंड और झरने सब कुछ है। सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में प्राकृतिक संसाधन अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इको टूरिज्म, होमस्टे, जैसे कई क्षेत्र हैं जिनमें संतुलित विकास को ध्यान में रखते हुए स्थानीय लोगों को आजीविका प्राप्त हो सकती है। लेकिन सबसे पहले लोगों को यहां की परिस्थिति तंत्र के प्रति जिम्मेदार होना होगा, और उनके संरक्षण के लिए काम करना होगा।
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