मनसा देवी मन्दिर में पूरी हो जाती हैं हर किसी की मन्नत

Mansa Devi Temple in Haridwar : उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ स्थलों में हरिद्वार एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। जहां पर साल भर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। वैसे हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं को पूजा जाता है। लेकिन इसी में एक नाम है मनसा देवी। मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार में स्थित है। कहा जाता है कि मनसा देवी मंदिर में आकर धागा बांधकर जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूरी हो जाती है। मनसा देवी मंदिर में आने से हर किसी की मन्नत पूरी हो जाती है। मनसा देवी को कई रूपों में पूजते हैं। इन्हें कश्यप की पुत्री और नाग माता के नाम से भी जाना जाता है।

मनसा देवी को शिव की पुत्री और विष देवी के रूप में भी पूजा जाता है। करीब 14 वी सदी स शिव के परिवार की तरह मनसा माता को भी मंदिरों में आत्मसात किया गया। पुराणों में कहा जाता है कि मानसा देवी का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ था।

पौराणिक कथा –

मनसा देवी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। मनसा देवी को अपने भक्तों की इच्छा को पूरा करने वाली माता के तौर पर भी जाना जाता है। कहा जाता है कि जो भी भक्त अपनी इच्छा लेकर यहां आते हैं और पेड़ की शाखा पर पवित्र धागा बांधते हैं उनकी इच्छा पूरी हो जाती है। जब इच्छा पूरी हो जाती है तो भक्त दोबारा से यहाँ आकर मां को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लेते हैं और अपना धागा खोल देते हैं।

कौन है मनसा देवी?

मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति मस्तिष्क से हुई थी। इसलिए इनका नाम मनसा पड़ा। महाभारत में इनका वास्तविक नाम ‘जरत्कारु’ बताया गया है। इनके पति का नाम भी मनु जरत्कारु है तथा उनके पुत्र आस्तिक जी हैं।

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मनसा देवी को नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजते हैं। कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इन्हें कश्यप की पुत्री बताया गया है और कहा गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ था। कुछ ग्रंथों में लिखा गया है कि नाग वासुकी द्वारा बहन की इच्छा पर उन्हें एक कन्या भेंट की गई थी और वह इस कन्या के तेज को सह न सके और नाग लोक में जाकर पोषण के लिए तपस्वी हलाहल को दे दिया था। इसी मनसा नामक कन्या की रक्षा के लिए हलाहल ने अपने प्राण भी त्याग दिए। 

मनसा देवी का जिक्र रोम में भी आता है। उन्हें कश्यप की पुत्री और नाग माता के रूप में बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव द्वारा हलाहल विष का सेवन करने के बाद उन्हें मनसा देवी ने ही बचाया था। परंतु कई जगह यह भी कहा जाता है कि मानसा माता का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ।

उत्तराखंड के अलावा मनसा देवी को विष की देवी के रूप में झारखंड, बिहार और बंगाल में धूमधाम से पूजा जाता है। बांग्ला पंचांग के अनुसार भादो महीने में इनकी विशेष पूजा की जाती है। उत्तराखंड के हरिद्वार में मनसा देवी मंदिर में नवरात्रि के समय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

मनसा देवी प्रमुख रूप से सर्प से आच्छादित एवं कमल पर विराजमान देखी जाती है। सात नाग हमेशा उनके रक्षा करने के लिए मौजूद होते हैं। कई बार मनसा देवी के चित्र के साथ एक बालक भी दिखाया जाता है जिसे वह अपनी गोद में लिए होती हैं। कहा जाता है कि यह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।

मनसा देवी मंदिर कहाँ है –

प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर उत्तराखंड के हरिद्वार से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर शिवालिक पहाड़ियों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। यह मंदिर गंगा और हरिद्वार के समतल मैदान से भी दिखाई पड़ता है। श्रद्धालु इस मंदिर तक पहुंचने के लिए केवल कार का इस्तेमाल करते हैं, जिसे उड़नखटोला के नाम से भी जाना जाता है। हरिद्वार से करीब डेढ़ किलोमीटर की पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़ कर भी मंदिर तक पहुंचा जाता है। हालांकि अब कुछ समय से मंदिर तक बाइक या कार से भी पहुँचा जा सकता है। 

मंदिर में मनसा देवी की दो मूर्तियां स्थापित हैं। एक मूर्ति में पंचभुज और एक मुख्य है तो दूसरी मूर्ति में आठ भुजाएं बनी हुई है। मनसा देवी मंदिर को मां दुर्गा की 52 शक्तिपीठों में से एक माना गया है।

कैसे पहुंचे (How Reach) –

मनसा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए सीधी चढ़ाई जाने पड़ती है या फिर उड़नखटोले का इस्तेमाल करके भी पहुंचा जा सकता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कुल 786 खड़ी सीढियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर के खुलने का एक समय निर्धारित है। मंदिर सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान दोपहर 12 से 2 के बीच मंदिर बंद रहता है। कहा जाता है कि इस वक्त मनसा देवी का सिंगार सत्कार किया जाता है।

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