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जानिए कहाँ मनायी जाती है उत्तराखंड की विश्वविख्यात होली

उत्तराखंड की होली

होली का त्यौहार हिन्दू धर्म से संबंधित है। हिंदुस्तान में इस त्यौहार को केवल हिंदू लोग ही मनाते हैं, लेकिन उत्तराखंड में इस त्यौहार को सभी धर्मों के लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं। उत्तराखंड में होली का त्यौहार सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार माना जाता है। उत्तराखंड की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होली अल्मोड़ा जिले की मानी जाती है। उत्तराखंड की होली देखने और मनाने के लिए काफी संख्या में विदेशी पर्यटक भी यहां आते हैं और होली के रंग में रंग जाते हैं। चलिए दोस्तो आज हम आपको उत्तराखंड की विश्वविख्यात होली के बारे में बताते हैं :-

शास्त्रों के नियमानुसार होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि में करना चाहिए। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन लोग सुबह उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं। बच्चों के लिए तो यह त्यौहार विशेष महत्व रखता है। वह कुछ दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियां व गुब्बारे लाते हैं। बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठाते हैं। सभी लोग भेद-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते हैं और होली की बधाइयां देते है।

होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्यौहार है, जिसे हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। होली का त्यौहार आमतौर पर दो दिनों का होता है। लेकिन उत्तराखंड राज्य में होली के त्यौहार को ८ से १० दिनो तक मनाया जाता है।

हिंदुओं के लिए होली का पौराणिक महत्व भी है। इस त्यौहार को लेकर सबसे प्रचलित कहानी है प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी। लेकिन होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित हैं। जैसे कामदेव का भस्म होना। लेकिन होली का प्रतीक होलिका-प्रह्लाद की कहानी को ही माना जाता है।

भक्त प्रह्लाद की भगवान विष्णु में आस्था की कहानी

होलिका दहन

भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह भगवान विष्णु के विरोधी थे, जबकि प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे। उन्होंने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने को कही बार मना किया पर वह जब नहीं माने तो उन्होंने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने की कोशिश की। प्रह्लाद के पिता ने आखिर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की मदद करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठ गई, परन्तु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जल कर भस्म हो गई। यह कथा इस बात का संकेत करती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं। यह त्यौहार को बड़े उत्साह से रंगों के साथ मनाते है।

कामदेव को किया था भस्म

होली की एक कहानी कामदेव पर भी आधारित है। माता पार्वती भगवान शिव से बहुत प्रेम करती थी और वह भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने भगवान शिव पर पुष्प बाण चला दिया। जिस कारण भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। तपस्या भंग होने के कारण भगवान शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि ने कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के भस्म हो जाने पर कामदेव की पत्नी रति रोने लगीं और भगवान शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। अगले दिन तक भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। तभी से कामदेव के भस्म होने के दिन को होलिका(चीर) जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में दूसरे दिन रंगों का त्यौहार मनाया जाता है।

धर्मसिंधु नामक ग्रंथ के अनुसार होलिका दहन के लिए तीन चीजों का एक साथ होना बहुत ही शुभ माना जाता है। पूर्णिमा तिथि हो, प्रदोष काल हो और भद्रा ना लगा हो। होलिका दहन पर ये तीनों संयोग बन रहे हो तो होली आनंदमय रहती है।

कुमाऊँनी होली

उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में होली का त्यौहार एक अलग ही तरह से मनाया जाता है, जिसे कुमाऊँनी होली कहते हैं। कुमाऊँनी होली का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। यह कुमाऊँनी लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है, क्योंकि यह केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का ही नहीं, बल्कि पहाड़ी सर्दियों के अंत का और नए फसल बुआई के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।

उत्तराखंड के लोग होली के त्यौहार को लेकर इतने उत्साहित रहते हैं कि वह लोग होली आने से एक महीना पहले से ही होली की तैयारियों में जुट जाते हैं। होली आने से एक महीना पहले से ही उत्तराखंड के लोग अपने घरों में आलू के चिप्स, सूजी के पापड़ और गुजिया घर में बनाना शुरु कर देते हैं। एक महीने तक यह सिलसिला लगा ही रहता है। होली आने तक खाने वाली सभी चीजें तैयार कर ली जाती है।

उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिला ऐसा जिला है जहां औरतों और आदमियों दोनों की होली होती है। औरतों की जो होली होती है, उसे बैठक होली कहा जाता है और जो आदमियों की होली होती है उसे खड़ी होली कहा जाता है।

बैठक होली में आस पड़ोस की महिलाएं एवं उनके सभी रिश्तेदार होते हैं और ये सब मिलकर एक दिन में लगभग 5 से 6 घरों में बैठक होली का आयोजन करते है। इसमें महिलाएं सभी महिलाओं के आंगन या घर में बैठकर होली के गीत गाती हैं व नृत्य करती है। ये सभी महिलाएं होली के इस माहौल में खूब मनोरंजन करती है।

अल्मोड़ा जिले में मनाए जाने वाली उत्तराखंड की विश्वविख्यात होली

जब शुरू में महिलाएं होली के लिए किसी भी घर के आंगन में बैठती है, तो सबसे पहले ढोलक मंगाई जाती है, फिर सबसे पहले ढोलक में अबीर- गुलाल लगाया जाता है, फिर घर में आई महिलाओं की टोली अबीर- गुलाल का टीका लगाकर होली की शुरुआत भगवान की होली गाकर करती है। जब महिलाओं को अबीर- गुलाल का टीका लगाया जाता है तो टीके के साथ सौप, मीठी सुपारी, इलायची, पान, नमकीन आदि भी दिया जाता है, फिर होली के धमाकेदार गाने गाए जाते हैं। गाने के साथ-साथ महिलाएं नृत्य भी करती है। खूब मनोरंजन करती है। महिलाएं जिसके घर में होली गाते हैं, उसके घर में होली गाने वाली महिलाओं के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था की जाती है जिसमें महिलाओं के लिए चाय, आलू के गुटके, चटनी, चिप्स, पापड़ व गुजिया यह सभी चीजों को महिलाओं को नाश्ते के रूप में दिया जाता है। जब सभी महिलाएं होली कर चाय नाश्ता करके दूसरे के घर में जाने के लिए तैयार होती है, तो वह जाते-जाते गाने के रूप में उस घर को आशीर्वाद देते हुए जाती है। ऐसे ही एक-एक करके सभी महिलाओं के घर में होली का आयोजन किया जाता है।

बैठकी होली

बैठकी होली

बैठकी होली पारम्परिक रूप से कुमाऊँ के अल्मोड़ा और नैनीताल जिले में ही मनाई जाती है और इस में होली पर आधारित गीत घर की बैठक में बैठकर ढोलक बजाकर गाए जाते है। बैठकी होली जैसा कि नाम से ही जाहिर होता है, बैठ के गाई जाने वाली होली को बैठकी होली कहा जाता है। जो सदियों पुरानी रीति है। किसी मंदिर के प्रांगण से बैठकी होली की शुरुआत होती है। होल्यार लोग हारमोनियम, तबला, ढोलक लेकर और बाकी लोक श्रोता बनकर मंदिर में इकट्ठा होते हैं और बैठकी सजती है। पहले दिन गुड़ की भेली तोड़कर सभी कलाकारों और श्रोताओं में प्रसाद बनाकर बांटा जाता है। दिन को आयोजित होने वाली बैठकों में होलियों के गाने गाए जाते है। इसकी पहली गूंज हमें चंद राजाओं के शासन काल से सुनाई देती है कि तत्कालीन राजा महाराजाओं के दरबार में होली गायन की यह विधा विद्यमान थी।

खड़ी होली

खड़ी होली

खड़ी होली आदमियों से संबंधित है और यह केवल अल्मोड़ा जिले में ही मनाई जाती है। खड़ी होली में आदमियों की होली होती है, जिसमें होली शुरू होने के पहले दिन में सभी घरों के आदमी इकट्ठा होकर एक मंडली बनाते हैं, फिर जिस दिन से होली की शुरुआत होती है, उस दिन से सभी आदमी लोग पूरे गांव घरों में चक्कर लगाते हैं और गाने गाते हुए सभी के घरों में जाते हैं और जिस जिसके घर में यह आदमी लोग होली गाते हैं, वह घर के लोग आदमियों के ऊपर रंग डालते हैं और कुछ भेंट भी देते हैं। कोई – कोई तो भेंट के साथ गुड़ की भेली भी भेंट के रूप में देता है। यह गुड़ की भेली और भेंट को मंदिर में चढ़ाया जाता है, फिर होली की शुरुआत होती है। हर शाम को सभी आदमी पूरे पड़ोस का एक एक चक्कर लगाते हैं और थोड़ी थोड़ी देर सभी के घर के सामने खड़े होकर आदमी लोग ढोलक और हुड़का बजाते हैं, फिर होली के गाने गाते हैं और नाचते हैं। पहाड़ी में एक से एक किस्से और कहावतें भी सुनाते हैं। खड़ी होली का प्रसार कुमाऊँ के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है। खड़ी होली में गाँव के लोग नुकीली टोपी, कुरता और चूड़ीदार पायजामा पहन कर पूरे गांव के चक्कर लगाते है और होली के गाने गाते हैं, और साथ साथ ही ढोल-दमाऊ तथा हुड़के की धुनों पर नाचते हैं। खड़ी होली के गाने पूरी तरह कुमाऊँनी भाषा में होते हैं। होली गाने वाले लोग, जिन्हें होल्यार कहते हैं, बारी बारी गाँव के हर एक व्यक्ति के घर जाकर होली गाते हैं, और उनके परिवार वालों को सुख शांति की दुवाएं देते है।

महिला होली

महिला होली

महिला होली में प्रत्येक शाम बैठकी होली जैसी ही बैठकें लगती हैं, परन्तु इनमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं। इसके गीत भी प्रमुखतः महिलाओं पर ही आधारित होती है। महिला होली का आयोजन मंदिर के प्रांगण में शुरू होता है, इसमें महिलाएं तरह-तरह के स्वांग करके सबका मनोरंजन करती है। होली के शुभ अवसर पर अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर के प्रांगण में होली महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें हर जिले से महिलाओं की टीमें आती हैं। ये टीमें अपनी अपनी होली कि बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुतियां देती हैं। महोत्सव में महिला टीमों की प्रस्तुति में महिलाए नृत्य प्रस्तुत करती है। इसके बाद महिला टीम एक एक कर मंच पर अपनी प्रस्तुति देती है। इस दौरान महिला टीमों में अनेक परंपरागत होलियों के गीत गाए जाते है। जिसे देखने के लिए काफी संख्या में पर्यटक भी यहां आते हैं। इन टीमों में से जिस टीम की प्रस्तुति सबसे अच्छी होती है, उनको पुरस्कार भी दिया जाता है।

होल्यार

होल्यार

आदमियों और महिलाओं का समूह जो होली की टोली (मंडली) बनाकर निकलते हैं, उन्हें ही होल्यार कहते हैं। होली के त्यौहार में सरकारी कर्मचारी, दुकानदार, नेता, किसान और कोई भी धर्म का व्यक्ति कुमाऊं में होली के दिनों में होल्यार हो जाता है। होल्यार सफेद कपड़े, जो ज़्यादा देर तक सफ़ेद नहीं रहते, नेताओं वाली टोपी जो ज़्यादा देर तक सर पर नहीं रहती पहन के होली के गीत गाते हुए घर-घर जाते हैं। एक तरह के मनोरंजन के लिए ये सब किया जाता है, इन्हें ही पहाड़ में होल्यार कहते है।

चीर दहन

चीर दहन

कुमाऊं में होलिका को चीर के रूप में जाना जाता है। जिसमें होली से 5-6 दिन पहले चीर बांधी जाती है। एक पैयां के पेड़ के तने को कपड़ो से सजाया जाता है या उसमें छोटे छोटे कपड़े बांधे जाते हैं और उस पर अबीर गुलाल डाला जाता है। एक मुहल्ले के चीर की उस मुहल्ले वाले पूरे 5-6 दिनों तक सुरक्षा करते हैं ताकि आस पड़ौस के मुहल्ले वाले उसे चुरा न ले जाएं। होली की पहली रात को यह चीर जलाई जाती है। जिसे चीर दहन कहा जाता है। चीर दहन को प्रह्लाद की हरणकश्यप के विचारों पर जीत का प्रतीक माना जाता है।

छलड़ी

छलड़ी

धुलंडी, यानी होली, जिसे कुमाऊं में छलड़ी कहा जाता है। दरअसल छलड़ का अर्थ फूल के अर्क, राख और पानी के मिश्रण से बनने वाला एक अवलेह होता है, जिसे होली खेलने के लिए प्रयोग किया जाता है। छलडी के दिन सभी लोग आपस में मिलते है, गले लगते है और अपने आस पास के लोगों को रंग लगाते है, पानी से भीगते व भीगाते है। तरह तरह के पकवान बनाते है, घर आए लोगो को खिलाते है। खूब गाना बजाना करते है। इस दिन सभी लोग एक दूसरे के गले लगकर होली की बधाइयां देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि होली ही एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें दुश्मन भी एक दूसरे के गले लग कर एक दूसरे को होली की बधाइयां देते है। पहाड़ की ऐसी कहावत है कि होली में दुश्मन भी गले लगकर साथ गाते बजाते व नाचते हैं। ये होली कि समाप्ति वाला दिन होता है और होल्यार लोग इस दिन इस होली की अच्छी समाप्ति का गाना गाते हैं और अगले साल आने वाली होली का स्वागत करते हैं।

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