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लंबकेश्वर महादेव जहाँ लंकेश कर बैठा अपनी सबसे बढ़ी भूल

Lambkeswar

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि इस महादेव के स्थान का लंका के राजा लंकेश यानी रावण से कुछ ना कुछ संबंध जरूर होगा। जी हां आप लोग सही सोच रहे हैं। दोस्तो मैंने जब इस जगह या स्थान के बारे में सुना तो मुझे भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि महादेव का ऐसा स्थान कहा हैं और इसकी क्या मान्यता हैं और जब मैने इसके बारे में जानकारी जुटाई तो सच में दोस्तों मैं स्तब्ध रह गया और मैंने उसी समय सोच लिया था कि मैं यहां जरूर जाऊंगा। दोस्तो ये बात मैंने अपने भाइयों को बताई तो वो भी मेरे साथ आने के लिए तैयार हो गए और कुछ समय बाद हम तीनों इस रोमांचक और धार्मिक सफर पर जाने के लिए निकल पड़े। दोस्तों मैंने अपना बैग, कैमरा और फोन उठाया और मैं इस स्थान के लिए निकल गया।

दोस्तो ये जगह है पिथौरागढ़ जिले में बेरीनाग और गंगोलीहाट के मध्य में स्थित एक बहुत ही खूबसूरत चारों ओर हिमालय और बांज के जंगलों से घिरा हुआ एक गांव है जिसका नाम हैं जाड़ापानी। दोस्तो जाड़ापानी तक आप गाड़ी से जा सकते हैं और फिर उसके बाद शुरू होता है असली रोमांचक पैदल सफर। मैंने इस रोमांचक और धार्मिक यात्रा के लिए अपने भाईयों को भी जाड़ापानी आने को बोला और वो लोग जाड़ापानी में मुझसे मिले।

दोस्तों हम तीन लोग इस पैदल यात्रा में निकल पड़े। हम लोगो के पास कुछ खाना, पानी, और पूजा की सामग्री थी। दोस्तों जब हम इस यात्रा पे निकले तो हमें मन में विश्वास था कि लमकेश्वर महादेव में हमें बर्फ देखने को मिलेगी। इस विश्वास के साथ हमने यात्रा प्रारंभ की। जैसा कि हमें बताया गया था कि इस रास्ते में हमें कोई सुविधा नहीं मिलेगी इसलिए हम लोग जरूरी सामान अपने साथ लेकर गए। जैसे पानी, भोजन, प्रसाद, पूजा सामग्री। बांज के घने जंगलों में तेंदुए मिलने का डर हैं तो हम तीनो ने हाथ में एक लकड़ी पकड़ ली और हम निकल पड़े महादेव के दर्शन को हर हर महादेव बोलकर।

“हर हर महादेव”

लंबकेश्वर महादेव

दोस्तों सफर शुरू किया और हम तीनों चलने लगे। लंबकेश्वर महादेव (1800 mtr above sea level) की यात्रा में लगभग ३ किमी० की खड़ी चढ़ाई है। इस यात्रा का रास्ता एकदम संकरा और घने बांज के जंगलों के बीच में से था। हम तीन लोग इस यात्रा में मस्ती करते हुए, फोटो खींचते हुए आगे बढ़ते रहे। इस घने जंगल में हमें पहाड़ी मुर्गियां, कांकड़, हिरण दिखाई दिया। सही मायने में अगर प्रकृति की सुंदरता देखना चाहते हैं तो यकीन मानिए इससे बेहतर और सुंदर जगह कोई नहीं है।

इस ३ किमी० के सफर में थोड़ा थकने के बाद हमने एक जगह पर कुछ देर आराम किया और वहां से हिमालय की सुंदरता को निहारा। यकीन मानिए हिमालय के ऐसे दर्शन शायद ही कहीं से होते हो। बेहद खूबसूरत दृश्य ने हमारी सारी थकान को मिटा दिया। यहां से हमने वो स्थान देखा जहां से हमने अपनी यात्रा प्रारंभ की थी, काफी दूर और बहुत ही छोटा दिखाई देरा था। जिसकी वजह हमारा काफी ऊंचाई में होना था।

दोस्तो कुछ देर विश्राम करने के बाद हम तीनो फिर से यात्रा के लिए चल पड़े। थोड़ी दूर आगे जाने पर हमको रास्ते के किनारे बर्फ दिखाईं दी। हम तीनो खुशी से बर्फ से खेलने लग गए। मानो ऐसा महसूस हुआ कि महादेव ने हमारे मन की सुन ली हो। ऐसा खूबसूरत नजारा था कि भुला नहीं जा सकता। बर्फ दिखते ही हमारा फोटो शूट शुरू हो गया और काफी फोटो खींचने के बाद हम आगे बढ़ने लगे। दोस्तो एक बात ध्यान देने वाली हैं कि इस सफर में कभी भी आए तो ये ध्यान रखना जरूरी है कि ये काफी घना जंगल हैं और यहां पर तेंदुवे के कभी भी आने का डर रहता है तो अपना ध्यान रखकर चलें।

कुछ देर चलने के बाद हमें एक घंटी दिखाई दी जो महादेव के इस पवित्र स्थल का आरम्भ था। यकीन मानिए इस घंटी को देखकर जो बची कुची थकान थी गायब हो गई थी। हम तीनो ने घंटी बजाकर जैसे ही ऊपर की ओर कदम रखा दोस्तो कुदरत और महादेव की इस पवित्र भूमि का अद्भुत नजारा हम तीनों के सामने था।

लंबकेश्वर महादेव

शिवालय के आगे जो मैदान था पूरा बर्फ से ढका था ऐसा अदभुत नजारा देखकर ही हम तीनो को, कहते हैं ना कि स्वर्ग में आ गए हो बस दोस्तो वेसी ही अनुभूति हुई। पूरा मंदिर बर्फ से ढका हुआ था। खैर हम लोगो ने जूते उतारे और नंगे पैर मंदिर की तरफ गए और पूजा अर्चना करने लग गए।

लंबकेश्वर महादेव

एक बात गौर करने लायक थी कि नंगे पैर बर्फ में हम तीनो को ठंड का बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ। अब ये चमत्कार था या महादेव की कोई लीला ये तो वही जाने।

पूजा के बाद दोस्तो हमने उस जगह में बर्फ से काफी खेला और फोटो भी खिंचे। सच में जैसा सुना था इस जगह के बारे में उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत हैं। दोस्तो यहां पर काफी सारे पर्यटक भी आए थे उस दिन। उनमें से किसी एक से बात की तो उसने बताया कि उसने भी ऐसी जगह पहले कभी नहीं देखी थी और सोचा भी ना था कि इतनी उंचाई में ऐसा कोई स्थान भी होगा, जहां महादेव साक्षात वास करते होंगे। काफी खुश लग रहे थे वो पर्यटक भी।

इस मंदिर के सामने एक कुटिया थी जिसमे एक बाबा जी साधना में लीन थे। आप लोग खुद सोचिए एक घने जंगल में अकेले बर्फ में इतनी ऊंचाई पर खतरनाक जानवरों के बीच में बिना पानी के एक बाबा का साधना करना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। यहां जो भी जाता है बाबा जी के लिए कुछ अनाज और पानी या फिर उनके जरूरत की चीजे अपने साथ ले जाता हैं।

बाबा जी से हमने बात की तो बाबा जी ने हमें बताया कि १९६० से १९९० के दशक तक इस स्थल पर महान तेजस्वी संत निर्मल दास जी ने निरन्तर ३० वर्षों तक खुली झोपडी नुमा कुटिया में तपस्या की, जो अब समाधि स्थल हो चुका है। बताया गया कि शिवरात्रि के दिन इस स्थल में स्थानीय लोगों द्वारा एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें फ्रांस, जापान जैसे देशों से भी पर्यटक आते हैं। स्थानीय लोग यहां आकर महादेव के दर्शन और जलाभिषेक आदि पूजा करते हैं।

संत माधव दास जी और स्थानीय लोगों की मदद से इस स्थल में कुछ धर्मशालाओं और बरसाती टैंको का निर्माण कराया गया है। जिस ऊंचाई पर ये स्थल हैं उससे ये पता चलता है कि यहां पानी का अभाव है। केवल बारिश का पानी ही काम आता है। इस मंदिर के थोड़ा सा आगे जाने पर एक विष्णु जी का मंदिर भी है। जिसमें विष्णु भगवान की विशाल संगमरमर की मूर्ति स्थापित हैं। इसके बारे में कहा जाता है कि पूर्व संत बाबा माधव दास जी ने इसकी स्थापना की।

इसी स्थल के पास एक विशाल प्राकृतिक तालाब नुमा स्थल हैं जो वर्तमान में पानी के आभाव में विशाल मैदान में परिवर्तित हो चुका है। 

हम तीनो इसके बाद इस मंदिर को देखने चले गए। जैसे ही मंदिर पहुंचे अद्भुत हिमालय के दर्शन हुए।

लंबकेश्वर महादेव

ये मंदिर चारो ओर से हिमालय से घिरा हुआ था। यहां भी पूजा अर्चना करने के बाद हमने एक स्थान में बैठकर भोजन किया और कुछ देर विश्राम भी किया।

लंबकेश्वर के इस ऊंचे शिखर में अंग्रेज शासकों ने एक ऊंचा झंडा लगाया था जिसे आज भी एडिडास के नाम से जाना जाता है। इस स्थल की सबसे खूबसूरत विशेषता यह है कि यहां से एक स्थान पर खड़े होकर हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं का अद्भुत दृश्य चारों ओर देखा जा सकता है।

इसी स्थल से भारत के पड़ोसी देश नेपाल, तिब्बत की सीमाएं और उत्तराखंड के धार्मिक स्थल बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, और रुद्रनाथ के दर्शन भी होते हैं। साथ ही नंदा देवी, पंचाचुली और त्रिशूल पर्वत के शिखर निकट से दिखाई देते हैं।

लंबकेश्वर महादेव

वहीं दूसरी ओर पूर्णागिरी माता, पाताल भुवनेश्वर गुफा, हाट कालिका मंदिर, चंडिका घाट, सरयू नदी, वृद्ध जागेश्वर, मोस्टा मानू मंदिर, ध्वज, थल केदार मंदिर और बागेश्वर की चोटियों के दर्शन होते हैं।

दोस्तो ऐसा नजारा शायद ही मैने कभी अपनी ज़िन्दगी में देखा होगा। आपको बताना चाहता हूं कि इस लंबकेश्वर शिखर के पश्चिमी भाग में ध्वनि नामक सेल्टिक हैं जिसे मणि पर्वत भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस पर्वत के मूल में मणियों से जड़ित कोई गुप्त गुफा है। इस पर्वत को धर्मेश्वर पर्वत भी कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ शिव और विष्णु भगवान से हैं।

दोस्तो सच में यहां से वापस जाने का मन तो नहीं था लेकिन सुविधाओं के आभाव की वजह से हमको वापस आना पड़ा। दुबारा फिर वापस बुलाने की मन्नत मांगकर महादेव जी से हम लोग वापस लौट गए।

एक बात जरूर कहूंगा कि आप लोग भी यहां जरूर जाएं एक बार। ये मेरा वादा है कि आप लोगो को भी ये स्थल जरूर पसंद आयेगा और जाएं तो बाबा जी के लिए जरूर कुछ जरूरी सामान अपने साथ ले जाएं।

शिवलिंग स्थापना की कहानी

दोस्तो मैंने इस महादेव के स्थल के बारे में एक कहानी सुनी थी जो में आप लोगो के साथ भी शेयर करना चाहता हूं। कहा जाता है कि रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने अपना शिवलिंग रावण को दिया और कहा कि तुम कैलाश मानसरोवर लंका में स्थापित करना लेकिन शर्त ये थी कि इस शिवलिंग को कहीं पर भी रास्ते में मत रखना। रावण जब यहां पर पहुंचा तो उसे एक ग्वाला मिला तो रावण ने वो शिवलिंग इस ग्वाले को दे दिया और कहा कि इसे नीचे मत रखना और रावण मूत्र क्रिया करने चला गया। उस ग्वाले ने जैसे ही शिवलिंग पकड़ा उसका भार अपने आप बड़ने लग गया और वो इस स्थल में स्थापित हो गया।

शिवलिंग का महत्व

लंबकेश्वर महादेव

एक कथा के अनुसार इस घने जंगल में बहुत से ग्वाले गाय चराया करते थे। एक ग्वाले की गाय रोज शाम को इस शिवलिंग के पास आकर खड़ी हो जाती थी और उसके थनो से दूध अपने आप निकलकर शिवलिंग में चड़ जाता था। उसके घर जाने के बाद उसका दूध नहीं निकलता था। ग्वाले को ये देखकर शक हुआ कि इस गाय का दूध कौन निकालता है तो उसने ३-४ दिन ये देखने के बाद गाय पर नजर रखी और देखा कि गाय रोज शाम को शिवलिंग के पास खड़ी हो जाती थी । ये देखकर उसने ये बात गांव वालो को बताई। तब से इस शिवलिंग पर यहां के लोगो की आस्था और बड़ गई हैं।

इस शिवलिंग के बारे में एक कहानी और पता चली। कहानी के अनुसार ब्रिटिश काल में अंग्रेज जब इस घने जंगल में शिकार करने गए तो कुछ स्थानीय लोग भी उनके साथ थे। घूमते घूमते अंग्रेज जब इस जगह पर पहुंचे तो स्थानीय लोगो ने इस शिवलिंग पर अपना माथा टेका और पूजा करने लग गए। ये देखकर अंग्रेज उनका मजाक उड़ाने लग गए और अंग्रेज़ ने उस शिवलिंग पर गोली चला दी। ऐसा कहा जाता है कि शिवलिंग पर गोली लगते ही उस अंग्रेज का बायां हाथ और पैर सुन्न पड़ गया। इसी अवस्था में उस अंग्रेज को हॉस्पिटल ले जाया गया और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई।

इतनी सुविधाएं ना होने के बावजूद भी सालभर में यहां १०००० से ज्यादा भक्तगण दूर दूर से आते है। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से ये स्थान उत्तराखंड का लोकप्रिय स्थान बन सकता है। यहां पर योग ध्यान केंद्र, वन्य जीव अभ्यारण आदि बनाया जा सकता है। यदि योजनाबद्ध ढंग से इस स्थान का सरकार पर्यटन के रूप में विकास करें तो यह स्थल आकर्षण का केंद्र बन सकता है। स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सकता है, तथा पलायन रोका जा सकता है। इस स्थल को पर्यटन मानचित्र में लाने की आश्यकता हैं।

आशा करता हूं कि आप लोगो को मेरी ये रोमांचक यात्रा जरूर पसंद आयी होगी। आप भी जरूर जाएं यकीन मानिए ऐसा रोमांचक सफर नहीं किया तो कुछ नहीं किया। अगर आप भी हमारे साथ अपनी रोमांचक यात्रा शेयर करना चाहते हे तो हमें मेल (piyushkothyari@gmail.com) करे हम इस प्लैट्फ़ॉर्म की ज़रिए सबके साथ साझा करेंगे |

” जय लंबकेश्वर महादेव की “

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