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Haat Kalika Temple Gangolihat Pithoragarh | सेना को भी अपना सिर झुकाना पड़ता है यहां !

haat kalika temple

हाट कालिका मन्दिर

कहा जाता हैं कि जिसने भी देवभूमि में एक बार कदम रख दिया वो यहां की सुंदरता, खूबसूरती और यहां के पर्यटन स्थलों का कायल हो जाता हैं। यही कारण हैं कि यहां साल दर साल पर्यटकों की संख्या बडती जा रही हैं। यहां के धार्मिक स्थलों के रहस्य आज तक अनसुलझे हैं। जी हां दोस्तों आज हम आपको देवभूमि के एक ऐसे ही रहस्यमयी मां के शक्तिपीठ के बारे मे बताने जा रहे हैं जिसके बारे ये कहा जाता हैं कि यहां साक्षात देवी प्रतिदिन विचरण करती हैं।

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दोस्तों पेज को लाईक, सब्सक्राइब और शेयर जरूर करें ताकि जानकारी सभी तक पहुंच सकें। तो चलिए दोस्तों जानते हैं इस मन्दिर के बारे में- चारों ओर से खुबसूरत देवदारों के जंगल से घिरा माॅ हाट कालिका मंदिर अपने आप में बहुत सारे रहस्य समेंटे हुए उत्तराखण्ड के जिला पिथौरागड में गंगोलीहाट नामक स्थान में स्थापित हैं।

इस शक्तिपीठ के बारे में कहा जाता हैं कि यहां साक्षात माॅं काली विराजती हैं। ये मंदिर बेहद ही पौराणिक हैं, जितनी मान्यता काली कलकत्ते वाली मां की हैं उतनी ही मान्यता हाट कालिका मंदिर की भी हैं। इस मंदिर की शक्तियों के बारे में बात करे तो इतना कहना काफी होगा कि ये मंदिर भारतीय सेना में सबसे पराक्रमी कुमाउं रेजीमेंट की आराध्य देवी हैं। देवी मां के कुमांउ रेजीमेंट की आराध्य देवी बनने की कहानी जानें तो कहा जाता हैं कि युद्व के दौरान कुमांउ रेजीमेंट की एक टुकड़ी पानी के जहाज से कहीं कूच कर रही थी इसी दौरान जहाज में तकनीकी खराबी आ गयी और जहाज डूबने लगा, ऐसे में मृत्यु नजदीक देख टुकड़ी में शामिल जवान अपने परिजनों को याद करने लगे।

इसी टुकड़ी में शामिल पिथौरागड़ निवासी एक जवान ने मदद के लिए मां हाट कालिका का आहवाहन किया जिसके बाद देखते-देखते डूबता जहाज अपने आप पार लग गया। इसी के बाद से मां हाट कालिका कुमांउ रेजीमेंट की आराध्य देवी बन गई और उनका युद्वघोष भी कालिका माता की जय बन गया। बताया जाता हैं कि कुमांउ रेजीमेंट के जवान युद्व या मिशन में जाने से पहले मां हाट कालिका के दर्शन जरूर करते हैं। आज भी कुमांउ रेजीमेंट की तरफ से मंदिर में नियमित तौर पर पूजा-अर्चना की जाती हैं।

इस मंदिर की धर्मशालाओं में किसी ना किसी आर्मी अफसर का नाम जरूर मिल जाता हैं। बताया जाता हैं कि सन् 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्व के बाद कुमांउ रेजीमेंट ने सूबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में यहां महाकाली की मूर्ति की स्थापना की थी। ये सेना द्वारा पहली मूर्ति स्थापित की गयी थी। इसके बाद कुमांउ रेजीमेंट ने सन् 1994 में एक बड़ी मूर्ति स्थापित की थी। इस मंदिर की प्रचलित कथाओं के बारे में जानें तो कहा जाता हैं कि स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया गया हैं कि सुम्या नाम के दैत्य का इस पूरे क्षेत्र में आतंक था उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया था जिससे आतंकित होकर देवताओं ने शैल पर्वत पर आकर इस दैत्य से मुक्ति पाने हेतु देवी की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण कर सुम्या नामक दैत्य का वध कर देवताओं को मुक्ति दिलायी। इसके बाद से ही इस स्थान पर मां काली की पूजा शक्तिपीठ के रूप में होने लगी। इसके साथ ही कुछ जगह पर ये उल्लेख भी किया गया हैं कि महिषासुर नामक दैत्य का वध भी मां ने इसी स्थान पर किया था।

दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार, कहा जाता हैं कि यहां पर मां काली पहले से विराजमान थी लेकिन देवी मां के प्रकोप से यह स्थान निर्जन था। इस कथा के अनुसार देवी मां रात को महादेव का नाम पुकारती थी और जो भी व्यक्ति उस आवाज को सुनता था उसकी मृत्यु हो जाती थी, ऐसे में आस-पास से लोग गुजरने से कतराते थे। आदिगुरू शंकराचार्य जब इस क्षेत्र के भ्रमण पर आए तो उन्हें देवी के प्रकोप के बारे में बताया गया फिर आदिगुरू शंकराचार्य ने अपने तंत्र-मंत्र जाप से देवी को खुश किया और इस मंदिर की दोबारा से स्थापना की। तीसरी सबसे अधिक प्रचलित कथा के अनुसार कहा जाता हैं कि मंदिर के पुजारी प्रतिदिन शाम के समय इस मंदिर के अन्दर एक बिस्तर लगाते हैं और मंदिर के कपाट बंद कर देते हैं और सुबह जब मंदिर के कपाट खोलते हैं तो बिस्तर में सिलवटें पड़ी रहती हैं।

स्थानीय लोगों का ऐसा मानना हैं कि स्वंय महाकाली रात्रि में इस स्थान पर विश्राम करती हैं। कहा जाता हैं कि अगर श्रद्वालु सच्चे मन से यहां आकर मां से कुछ मनोकामना करते हैं तो मां तुरंत ही उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। बेहद ही खुबसूरत जगह में बसा देवी का यह शक्तिपीठ काफी लोकप्रिय और रहस्यमयी हैं। दोस्तों आशा करता हूँ कि आपको ये लेख अवश्य पंसद आया होगा

। जय उत्तराखण्ड।

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