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उत्तराखंड का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां सूर्य निकलते ही सूर्य की पहली किरण इस मंदिर में पड़ती है।

कटारमल सूर्य मंदिर

आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो की पूरे भारत में केवल दो ही जगह स्थित है। जिसमें से एक हैं उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में। यह मंदिर उत्तराखंड में स्थित अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार गांव में भगवान सूर्य देव को समर्पित विश्व विख्यात  कटारमल मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह अल्मोड़ा से 17 किलोमीटर की दूरी पर 3 किलोमीटर पैदल कच्चे रास्ते पर चलने के बाद पश्चिम की ओर स्थित है। यह मंदिर एक सुंदर पहाड़ी पर्वत पर समुद्र तल से लगभग 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर अल्मोड़ा और रानीखेत मार्ग में स्थित है। 

इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठी से नवी शताब्दी में कराया गया था। यह मंदिर कुमाऊं मंडल के अन्य मंदिरों में से एक विशाल एवं ऊंचे मंदिरों में गिना जाता है। सूर्य देवता को समर्पित देश का पहला मंदिर उड़ीसा में कोणार्क मंदिर हैं और दूसरा मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कटारमल मंदिर है। इस मंदिर में की गई शिल्पकला से मंदिर की दीवारों पर जो आकृतियां बनाई गई है, इन आकृतियों का बहुत विशेष महत्व माना जाता है। इस मंदिर को बनाते समय बहुत बड़े-बड़े पत्थरों को काटकर इन पर सुंदर आकृतियों का निर्माण किया गया है। 

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कटारमल सूर्य मंदिर एक बड़े से ऊंचे वर्गाकार चबूतरे में स्थित है, जो 800 साल पुराना है। इस मंदिर के चारों ओर 45 छोटे बड़े मंदिर स्थित है, जो मुख्य मंदिर को घेरे हुए हैं। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित प्राचीन एवं प्रमुख मंदिरों में से एक है। आज भी मंदिर के ऊंचे शिखर और इसकी बनावट को देखकर इस मंदिर की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है। इस मंदिर के मुख्य मंदिर की संरचना त्रिरथ है और गर्भ ग्रह का प्रवेश द्वार बेजोड़ काष्ठ कला से बनाया गया है, जो बेहद खूबसूरत दिखाई देता है। 

पुरानी कथाओं के अनुसार हमको यह जानने को मिलता है कि सतयुग में उत्तराखंड की कंदराओ में जब असुरों ने ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने शुरू किए, तब उनके अत्याचारों से दुखी होकर दूनागिरी तथा कंजर आदि पर्वत के ऋषि मुनियों ने कोसी नदी के तट पर आकर सूर्य देव की आराधना करी। ऋषि मुनियों की तपस्या देख सूर्य देव ने अति प्रसन्न होकर अपने दिव्य तेज को वटशिला में स्थापित कर दिया। इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य नामक तीर्थ स्थान पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। जो अब कटारमल सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

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उत्तराखंड का एकमात्र ऐसा मंदिर जिसका निर्माण केवल एक रात में हुआ हैं।

पुरानी कथा/कहानियों से हमें यह भी पता चलता है कि कटारमल सूर्य मंदिर एक रात में बनाया गया है, जैसे ही रात पूरी होकर सुबह हुई तो इस मंदिर का काम बंद करा दिया गया, जिस कारण इस मंदिर के मुख्य मंदिर की छत अधूरी रह गई, फिर उसको आज तक पूरा नहीं करवाया गया है। यह मंदिर कुमाऊं मंडल में सबसे ऊंची इमारतों वाला मंदिर माना जाता है। ऋषि-मुनियों ने जब से इस नदी के तट पर तपस्या की, तब से कोसी नदी को इस मंदिर का मुख्य मार्ग माना जाता है, तभी से इसे कोसी कटारमल के नाम से भी जाना जाता है। 

कहा जाता है कि जब सूर्य निकलता है तो सूर्य की पहली किरण कटारमल सूर्य मंदिर में जो मुख्य मंदिर में शिवलिंग है, उस पर पड़ती है। यह सूर्य की पहली किरण इन्द्र धनुष की तरह दिखाई देती है। इस मंदिर में मुख्य प्रतिमा बड़ादित्य सूर्य की है। इसके अलावा इस मंदिर में शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, नर्सिंग, कुबेर, महिषासुरमर्दिनि आदि की भी मूर्तियां है। इस मंदिर का मुंह पूर्व दिशा की ओर है।

भक्तजनों के द्वारा यह कहा जाता है कि इस सूर्य देवता के मंदिर में जो भी आता है, वह अपनी परेशानी सूर्य देवता से कहता है तो उसकी परेशानी का हल जरूर निकलता है और वह यहां से खुश दिल से ही लौटता है चाहे वह कितना ही दुखी मन होकर आया हो। यहां के आस-पास का वातावरण भी शांति प्रदान करता है, ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी मन्नत मांगो वह अवश्य पूरी होती है। सूर्य देवता हर किसी व्यक्ति की पुकार सुनकर उसके सभी कष्टों को दूर करते हैं। इस मंदिर में देश विदेशों से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर के समीप गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान भी स्थित है।

ऐसा कहा जाता है कि कटारमल सूर्य मंदिर में जो शिवलिंग है वह कोसी से थोड़ा ऊपर चलकर धामस गांव में भी सूर्य देव का शिवलिंग स्थापित है। वहां के लोगों से पता करने पर ऐसा मालूम पड़ता है की कटारमल सूर्य मंदिर के देवता यहां आए हैं और यह शिवलिंग ही उनकी निशानी है, जिस पर आस-पास के गांव वाले लोग उस शिवलिंग की पूजा करते हैं। गांव वालों का कहना है कि जिस दिन से यह शिवलिंग और सूर्य देवता यहां आए हैं, तब से हमारा गांव का नक्शा ही बदल गया है। इस शिवलिंग के यहां आने से हमारे गांव में बहुत बरकत आयी है। तब से धामस गांव के लोग इस शिवलिंग की पूजा करते हैं। सावन के महीने में भक्तजन इस शिवलिंग पर जल, दूध, फूल, फल आदि चढ़ाते हैं।

आशा करता हूं कि आपको ये लेख अवश्य पसंद आया होगा।

More Reference: https://en.wikipedia.org/wiki/Katarmal

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