देव भूमि उत्तराखंड के जोशीमठ का इतिहास | क्या है कारण जिससे जोशीमठ पर मंडरा रहा खतरा | History of Joshimath in Hindi

जोशीमठ जिला -

जोशीमठ को गेटवे ऑफ हिमालय (हिमालय का द्वार) भी कहा जाता है। यह केदारनाथ धाम तथा बद्रीनाथ धाम के बीच में पड़ता है। जोशीमठ देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है।

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जोशीमठ जिला -

जोशीमठ, पांडुकेश्वर में पाये जाने वाले कत्यूरी राजा ललितपुर के ताम्रपत्र के अनुसार कत्यूरी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। उस समय जोशीमठ का नाम कार्तिकेयपुर था।

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जोशीमठ जिला -

जोशीमठ त्रिशूल शिखर से उत्तर की ओर अलकनंदा के किनारे पर स्थित है। इसके दोनों ओर एक चक्रकार की छाया है। इसके उत्तर में ऊंचा पर्वत उच्च हिमालय से आती ठंडी हवा को रोकता है।

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जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

संभावना जताई जा रही है कि यहां पर बड़ी आपदा आ सकती है। 1976 में ही उत्तराखंड के जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति को लेकर चेतावनी जारी की थी।

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जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

लेकिन इसे अनदेखा कर दिया गया नतीजा अब घरों की दीवारो व छतों दरारे पड़ रही है।  यह दिन-ब-दिन स खिसक रहा है।

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जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

वैसे तो पूरा उत्तराखंड हिमालय के सबसे नाजुक हिस्से में स्थित है। भूस्खलन, भूकंप, बादल फटना, हिमस्खलन, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं यहां पर घटती रहती है।

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जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

लगभग 50 साल पहले 1976 मे गढ़वाल के तत्कालीन कलेक्टर एमसी मिश्रा के नेतृत्व में 18 सदस्य समिति का गठन हुआ था। इस समिति की रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि जोशीमठ एक पुराने भूस्खलन क्षेत्र पर स्थित है। अगर यहां पर विकास कार्य जारी रहा तो यह डूब सकता है।

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जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

रिपोर्ट में जोशीमठ में निर्माण प्रतिबंध की सिफारिश की गई थी। लेकिन रिपोर्ट की सिफारिशों को अनदेखा कर दिया गया। नतीजा आज जोशीमठ डूबने के कगार पर पहुंच गया है।

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