
प्रदेश में चुनाव होने वाला है। नेता अपने प्रतिनिधित्व क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। लेकिन शायद उन्हें अपने क्षेत्र में लोगों की जरूरतों का ध्यान नहीं है। क्षेत्र में लोगों के घरों के आसपास जंगल फैल रहा है। लेकिन इसकी सुध नहीं ली जा रही है। उदाहरण के तौर पर पिथौरागढ़ जिले के जाडापानी क्षेत्र में सड़क के ऊपर-नीचे अकेले मकान है। इस मकान के चारों तरफ घना जंगल बन चुका है। ऐसे में शाम के समय सड़क पर पैदल यात्रा जान को जोखिम में डाल कर करना होता है।
आसपास बंदर और लंगूरो ने अपना आशियाना बना लिए हैं, जिससे क्षेत्र में फसलों की खेती को काफी नुकसान हो रहा है। क्षेत्र के जो पैसे वाले लोग है वह मैदानी क्षेत्रों में जाकर बस गए हैं जो आर्थिक रूप से इतनी संपन्न नहीं है वो यहां गुजर-बसर कर रहे हैं या फिर ऐसे लोग यहां पर हैं जिन्हें अपनी जन्मभूमि से लगाव है।
इस क्षेत्र में सड़क तो बना दी गई है लेकिन जो मकान सड़क के ऊपर है या सड़क से नीचे हैं वहां पर न तो पेड़ों की छंटाई होती है, न ही झाड़ियों का कटान हो पाता है। नतीजा झाड़ियोंनुमा जंगल फैल रहा है। ऐसी विकट स्थिति में भी कुछ भद्रजन यहाँ पर निवास करते हैं, यह जानते हुए कि यहां पर रहना जान को जोखिम में डालने जैसा है।
हालात काफी चुनौतीपूर्ण हो गए हैं। गुलदार जो रात के अंधेरे में अपना शिकार ढूढने निकलते थे, अब दिन में ही सड़क किनारे दबिश देते हुए अपने शिकार का इंतजार में देखे जा सकते हैं। आसपास के लोग दहशत में जीने को मजबूर है।
लोग स्वच्छता सुरक्षा अभियान से जुड़े हैं और अपने आसपास बाग बगीचे तैयार कर रहे हैं। यहां के युवा, जो पलायन को मात देने की क्षमता रखते हैं वह भी इस मुहिम से जुड़े है, लेकिन ये युवा इस मुहिम में अपनी पूरी क्षमता से काम नही कर पा रहे हैं। क्योंकि यहां की पहाड़ी भूमि का कई हिस्सों में विभाजन होने के कारण वे इस स्वच्छता सुरक्षा अभियान को अंजाम देने में लाचार महसूस करते हैं।
इसका कारण यह है कि अपनी भूमि में तो कुछ भी किया जा सकता है लेकिन दूसरों की भूमि पर कोई कैसे काम कर सकता है? नतीजा यह है कि न तो झाड़ियों की कटाई या सफाई हो पाती है न ही आसमान छूते पेडों की छटाई हो पाती है।
एक तरफ जहां हमारी सरकार पलायन रोकने की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ वह खुद ही ऐसी स्थितियां उत्पन्न कर रही है जिससे लोग पलायन करने को मजबूर हो। पिथौरागढ़ जिले के जाड़ा पानी क्षेत्र में स्थित इस सड़क से जनप्रतिनिधियों से लेकर अफसर तक प्रतिदिन यहां से गुजरते हैं लेकिन किसी को भी लोगों की यह परेशानी नजर नहीं आती है।
यदि समय रहते इन स्थितियों में सुधार नहीं होता है तो एक वक्त ऐसा भी आ सकता है जब यहां पर स्थानीय लोग का सफाया हो जाएगा और लोग दूर दूर तक नजर ही नहीं आएंगे। लोगों की जगह पर ये गुलदार जैसे जंगली जानवर देखे जाएंगे। जब सड़क के किनारे बसे लोगों का यह हाल है तो उन लोगों का क्या हाल होगा जो सड़क दूर बसे हुए हैं?
हमारा विनम्र अनुरोध है कि सरकार कम-से-कम सड़क किनारे फैल रहे इन भयंकर झाड़ीनुमा जंगलों को रोकने के लिए यथाशीघ्र ठोस कार्यवाही करें। अन्यथा ऐसा वक्त दूर नही जब यहां पर इंसान नही जंगली जानवर ही नजर आएंगे और जनप्रतिनिधि बिना किसी विरोध के निर्विरोध ही जीत दर्ज करेंगे।
अब समय आ गया है कि लोगों को जागरूक बनाया जाये। जैसे वस्तुओं की गुणवत्ता के संबंध में लोगो को जागरूक करने के लिए “जागो ग्राहक जागो” जैसा स्लोगन चलाया जाता है। आज हम इस स्लोगन में थोड़ा सा बदलाव करके इसे “जागो जंगल के रहनुमा जागो” कर सकते हैं। प्रदेश के जनप्रतिनिधियों से हमारी विनम्र गुजारिश है कि स्वच्छ सुरक्षा अभियान मुहिम से गांव वालों को भी जोड़ा जाये और गांव वालों की जरूरतों एवं सुरक्षा का ख्याल रखा जाये।