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ऋषिकेश में स्थित महादेव मंदिर जहाँ भगवान शिव ने किया था विषपान

Neelkanth-Mahadev-Rishikesh

नीलकंठ महादेव मंदिर : गढ़वाल, उत्तराखंड में हिमालय पर्वतों के बीच ऋषिकेश में स्थित “नीलकंठ महादेव मंदिर” पर्यटन का प्रमुख स्थान माना जाता है। यहां पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित अत्यंत प्राचीन मंदिर है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूजनीय मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर ऋषिकेश से 32 किलोमीटर की दूरी पर बैराज के माध्यम से और 22 किलोमीटर की दूरी पर राम झूला के माध्यम से, स्थित है। यह जगह धार्मिक उत्साह के साथ पौराणिक महत्व का केंद्र है। साथ ही यहां खूबसूरत परिवेश में देखने को मिलता है। पौराणिक कथा में इस जगह का नाम भगवान शिव से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने ‘समुद्र मंथन’ के दौरान निकले ‘विष’ का सेवन इसी जगह पर किया था। उस विष के सेवन से है भगवान शिव का गला ‘नीला’ पड़ गया था और शिव जी नीलकंठ कहलाये  इसलिए यह जगह नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुई।

सदियों से यह प्राचीन मंदिर अपनी आकाशीय आभा के साथ पौराणिक महत्व को संजोए हुए हैं। 

भौगोलिक स्थिति – 

नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश में स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्वर्ग आश्रम की चोटी पर स्थित है। नाव द्वारा गंगा नदी को पार करके यह मंदिर 25 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। इस मंदिर की नक्काशी कला देखने में अत्यंत मनमोहक है। इस मंदिर के शिखर पर समुद्र मंथन के जैसे चित्र को चित्रित किया गया है। वहीं इसके गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर एक विशाल पेंटिंग बनी हुई है जिसमें भगवान शिव को विषपान करते हुए दिखाया गया है। इसके सामने की पहाड़ी पर शिव जी की पत्नी पार्वती जी का मंदिर स्थित है।

Nilkanth Mahadav Temple

इस मंदिर के मुख्य द्वार पर द्वारपालों की प्रतिमा बनी हुई है। तो वही मंदिर के परिसर में कपिल मुनि और गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित हुई है। अन्य मंदिरों की तुलना में इस मंदिर की खासियत यह है कि इसका शिवलिंग चांदी का बना हुआ है और श्रद्धालु काफी नजदीक से इसका दर्शन कर सकते हैं। यह मंदिर बद्रीनाथ और केदारनाथ के मार्ग में एक झांकी की तरह है।

पौराणिक कथा –

नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर पर्वत की गोद में स्थित मधुमति और पंकजा नदियों के मुख संगम स्थल पर स्थित है। यह हिंदू धर्म का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र है। पौराणिक कथा के अनुसार नीलकंठ महादेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के लिए मंथन हुआ था। यह मंथन दूध के सागर में हुआ था। मंथन के दौरान 14 रत्न निकले थे जिसमें लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभ मणि, एरावत, परिजात, उच्चेश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रंभा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चंद्रमा, धनवंतरी, अमृत और कल्पवृक्ष निकले थे।  देवताओं ने चालाकी से 14 रत्नों में से अमृत ले जाने में सफल हो गए।

लेकिन इस अमृत मंथन के दौरान अमृत के साथ-साथ विष में निकला था। पौराणिक कथा में कहा जाता है कि अमृत मंथन के दौरान अमृत के साथ निकला विष इतना खतरनाक था उसकी एक बूंद से दुनिया खत्म हो सकती थी। जब देवताओं को इस बारे में जानकारी हुई तो देवताओं के साथ-साथ राक्षस भी भयभीत हो गए थे। तब इस समस्या के समाधान के लिए भगवान शिव जी वहां पर पहुंचे। समाधान के लिए भगवान शिव ने यह फैसला किया कि वह स्वयं विष का सेवन करेंगे।

Nilkanth Mahadav Temple

भगवान शिव ने दुनिया को विष के प्रभाव से बचाने के लिए विष से भरा घड़ा उठाया और पी लिया। पौराणिक कथा में यह भी कहा जाता है कि भगवान शंकर द्वारा विष का सेवन करने के दौरान विष शिव जी के पेट तक न पहुंचे इसलिए माता पार्वती ने उनका गला दबाया था। जिससे वह विष शिव जी के गले तक ही रहा। विष के कारण ही शिव जी का गला नीला पड़ गया था।

कहा जाता है कि शिव जी ने ऋषिकेश के इसी स्थान पर विष का सेवन किया था। यही वजह है कि यह जगह “नीलकंठ” के नाम से जानी जाती है। बाद में उस जगह पर एक मंदिर बनाया गया उस मंदिर को ‘नीलकंठ महादेव मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। आज यह जगह धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बन गया है।

कैसे पहुँचे –

नीलकंठ महादेव मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के ऋषिकेश में स्थित है। यह राम झूला/ शिवानंद झूला से करीब 23 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। मुनि की रेत से यह मंदिर सड़क मार्ग से 50 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। वहीं नाव द्वारा गंगा नदी पार करके यह मंदिर लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

सावन के महीने में इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। बाकी अन्य समय में इस मंदिर में श्रद्धालु आसानी से दर्शन कर सकते हैं।

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