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आख़िर क्या हैं देहरादून का इतिहास | History of Dehradun in Hindi

History of Dehradun in Hindi

History of Dehradun in Hindi

देहरादून का इतिहास | History of Dehradun in Hindi: हिमालय की पर्वत श्रृंखला में बसा देहरादून भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह उत्तराखंड राज्य की राजधानी के रूप में जाना जाता है। इस जिले में छह तहसील और 6 सामुदायिक विकास खंड है। यहां पर 17 शहर और 764 गांव है, जो आबाद है। इसके अलावा इस जिले में 18 ऐसे गांव हैं जहां कोई नहीं रहता है। देश की राजधानी से 230 किलोमीटर की दूरी पर एक गौरवशाली ऐतिहासिक स्थल है। देहरादून अपनी अनोखी जीवन शैली खूबसूरत परिवेश प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के लिए आज प्रसिद्ध है। 

देहरादून दो शब्दों में डेरा और दून से बना है। डेरा का अर्थ शिविर और दून का अर्थ घाटी होता है। यह हिमालय की तलहटी में स्थित है। इसके पूर्व में गंगा नदी और पश्चिम में यमुना नदी बहती है। यह इन दोनों नदियों के बीच में यह जिला स्थित है। देहरादून बासमती चावल और बेकरी उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है। लिखित रूप से देहरादून का इतिहास 250 ईसा पूर्व का है। 

शहर के बाहरी इलाके में कालसी में राजा अशोक का शिलालेख भी है। एक चट्टान पर 14 नक्काशी की गई है और पास में एक राजवंश के राजा द्वारा स्थापित जगह भी है। वहां पर लिखने के साथ बड़े ईटों की बीच में एक अपनी अग्नि कुंड बनाई गई है। जहां एक विशाल पक्षी के आकार को भी बनाया गया है।

देहरादून का इतिहास की पौराणिक कथा –

एक पौराणिक कथा के अनुसार देहरादून को दून घाटी के नाम से महाभारत और रामायण में बताया गया है। रावण और भगवान राम के बीच लड़ाई के बाद भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण ने इस स्थान पर तपस्या की थी। वही महाभारत में भी इसका जिक्र है। कहा जाता है कि कौरव और पांडवों के गुरु जिस नगरी में जन्म दिए थे उसे द्रोण नगरी के रूप में जाना जाता है और यह देहरादून ही है। देहरादून के आसपास कई प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों के प्रमाण है जो महाभारत और रामायण के कथाओं से जुड़े हुए हैं। यहां के खंडहर 2000 साल से भी अधिक पुराने बताए जाते हैं। स्थानीय परंपराओं और साहित्य में महाभारत और रामायण की घटनाओं का जिक्र आता है।

 सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र को सुधा नगर के रूप में जाना जाता था। इस बात का जिक्र चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया है। सुधा नगर को कालसी के नाम से भी जाना। देव कालसी में यमुना नदी के किनारे के क्षेत्र में अशोक के अवशेष पाए गए जो प्राचीन भारत के क्षेत्र को दर्शाते हैं। देहरादून के नाम का प्रयोग होने से पहले इस स्थान को पुराने मानचित्र पर गुरुद्वारा के रूप में दिखाया गया है। जेरार्ड के नक्शे में देयरा या गुरुद्वारा नाम देखने को मिलता है।

कहा जाता है कि देहरादून शहर की स्थापना 18वीं शताब्दी के दौरान एक सिख गुरु ने की थी। उनका नाम गुरु राम राय था। सिख धर्म के अनुयायियों का आगमन 1672 में हुआ था। तब देहरादून को पृथ्वीपुर के नाम से जाना जाता था और वह यहां पर 24 वर्ष तक रहे। तब उनके साथ में गुरु राम राय के बड़े बेटे का यहां पर आगमन हुआ और उसके बाद ही यह अस्तित्व में आया। गुरु राम राय के सम्मान में प्रतिवर्ष धामवाला गांव में भव्य मेले का आयोजन आज भी किया जाता है।

देहरादून से जुड़े एक पौराणिक स्थल का भी जिक्र किया जाता है जिसका उल्लेख विभाग के रूप में स्कंद पुराण में किया गया है। यह क्षेत्र भगवान शिव के नजदीक बताया गया है। यह भी कहा जाता है कि यह स्थान महर्षि गौतम का निवास स्थान भी रहा है। महर्षि गौतम काफी समय तक यहां पर रहे थे और यहां के चंद्रबानी मंदिर के पास एक कुंड है उसे गौतम कुंड के नाम से जाना जाता है।

देहरादून का भौगोलिक इतिहास – 

देहरादून की भौगोलिक स्थिति भी बेहद ही खास है। यह पहाड़ी पर्यटन स्थल के तौर पर जाना जाता है। यहां घूमने फिरने और देखने के लिए कई सारे शानदार जगह है। देहरादून जिले के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसके पूर्व में गंगा नदी और पश्चिम में यमुना नदी इसकी प्राकृतिक सीमा बनाने का काम करती हैं। देहरादून दो भागों में बांटा जाता है। मुख्य शहर को देहरादून एक खुली घाटी के रूप में जो शिवालिक तथा हिमालय से निकली हुई है, के रूप में जाना जाता है और दूसरे भाग को जौनसार बावर के तौर पर जाना जाता है जो हिमालय के पहाड़े भाग में स्थित है। इसके उत्तर और उत्तर पश्चिम में उत्तरकाशी जिला, पूर्व में टिहरी और पौड़ी जिला है। इसकी पश्चिमी सीमा हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से लगती है। इसके दक्षिण में हरिद्वार जिला और उत्तर प्रदेश का सहारनपुर जिला है।

देहरादून के शिक्षा संस्थान –

 देहरादून में कई सारे प्राचीन शैक्षिक संस्थान है। दून और वेल्हम्स स्कूल काफी समय से अभिजात वर्ग के लिए शान रहा है। यहां पर भारतीय प्रशासनिक सेवा और सैनिक सेवाओं के लिए प्रशिक्षण के संस्थान भी स्थित है। यहां पर तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे ऑफ इंडिया, आईआईपी जैसे कई राष्ट्रीय संस्थान भी है। देहरादून में वन अनुसंधान अनुसंधान संस्थान स्थित है, जहां पर भारत के ज्यादातर वन अधिकारी आते हैं। यहीं पर यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम फॉर एनर्जी स्टडीज हायर एजुकेशन का एक विशेष संस्थान है जो देश के गिने-चुने संस्थानों में गिना जाता है। 

यह जिला योग, आयुर्वेद और ध्यान के लिए भी केंद्र बिंदु रहा है। यहां पर नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द वर्तुअल हैंडीकैप के लिए एक संस्थान है जो दृष्टिहीन के लिए काम करता है। यह संस्थान भारत का पहला संस्थान है और यही पर देश की पहली ब्रेली लिपि प्रेस है। 

लोक संस्कृति –

देहरादून गढ़वाल क्षेत्र का ही एक भाग है, तो यहां पर गढ़वाल की संस्कृति पर स्थानीय रीति-रिवाजों का प्रभाव देखने को मिलता है। यहां की प्राथमिक भाषा गढ़वाली है इसके अलावा हिंदी और अंग्रेजी भाषा भी बोली जाती है। इस घाटी में परंपरागत पोशाक ऊनी कंबल जिसे लांबा कहा जाता है। ऊँचाई पर स्थित गांव वाले आज भी इसे पहनते हैं। वही स्त्रियां पूरी बाँह वाली कमीज के साथ साड़ी पहनना पसंद करती हैं और अंगरा जो एक प्रकार का कोट होता है उसे पहनते हैं।

 यहां पर प्राचीन स्थापत्य के संदर्भ भी देखने को मिल जाते हैं। प्राचीन भवन निर्माण शैली आज भी आकर्षण का केंद्र है। यहां पर बनने वाले भवनों की सबसे बड़ी खासियत ढलवा छत होती है। इसका कारण यह है कि यहां पर मूसलाधार बारिश होती है। बारिश से घर को नुकसान न पहुंचे इसलिए ज्यादातर घरों पर ढलवा छत बनाई जाती है।

देहरादून के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल –

 देवभूमि की राजधानी देहरादून में कई सारे पर्यटन स्थल है। जहां पर हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं। यहां के प्रसिद्ध स्थलों में आसन बैराज, गुचूपानी, बुद्ध टेंपल, सहस्त्रधारा, फॉरेस्ट म्यूजियम जैसे प्रसिद्ध स्थल है।

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