जाने चमोली जिले का इतिहास | History of Chamoli in Hindi

चमोली जिले का इतिहास | History of Chamoli: देवभूमि उत्तराखंड का एक जिला चमोली है। यह अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है। इसलिए बद्रीनाथ यात्रा पर रहने वाले लोगों का यह एक मुख्य पड़ाव भी होता है। यहीं पर स्थित है गोपीनाथ मंदिर, जोकि देवभूमि उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी है। चमोली अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती है। यही पर फूलो की घाटी स्थित है। हर साल सैकड़ों की संख्या में यहाँ पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं। चमोली जिले में छोटे-बड़े कई मंदिर है। यहाँ पर लोगो के ठहरने के लिये छोटे छोटे स्थान हैं। जिसे चाती नाम से भी जाना जाता है। चाती एक प्रकार की झोपड़ी होती है जो अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। चमोली भौगोलिक दृष्टि से मध्य हिमालय के बीच में स्थित है। अलकनंदा नदी यहां की प्रसिद्ध नदियों में एक है, जो तिब्बत की जास्कर श्रेणी से निकलती है। 

चमोली जिले का प्राचीन इतिहास –

शेष गढ़वाल क्षेत्र की तरह चमोली में भी प्राचीन काल में कत्यूरी राजवंश का शासन रहा है। कत्यूरी राजवंश के शासन के समय उनकी राजधानी पहले जोशीमठ और बाद में कार्तिकेयपुर (बैजनाथ) रही है। 13वीं शताब्दी में जब कत्यूरी साम्राज्य का विघटन हो गया तब गढ़वाल क्षेत्र 52 छोटे-छोटे गढ़ो में विभाजित हो गया था और उन सभी गढ़ो में अलग-अलग राजा का शासन हुआ करता था, जिन्हें राणा, राय, ठाकुर आदि नामों से जाना जाता है। 

बताया जाता है कि 823 में मालवा के राजकुमार बद्रीनाथ मंदिर की यात्रा पर आए थे। मालवा के राजकुमार कनकपाल ने चांदीपुर गढ़ी के मुखिया राजा भानु प्रताप के पुत्री से विवाह किया और दहेज में उन्हें गढ़ी का नेतृत्व प्राप्त हुआ था। इसके बाद उन्होंने दूसरे गढ़ो पर आक्रमण करके अपने राज्य का विस्तार कर लिया और गढ़वाल राज्य की नींव रख दी।

 बताया जाता है कि धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आगे की पीढ़ियां पंवार वंश के नाम से विख्यात हुई और एक एक कर के लगभग सारे गढ जीतकर उन्होंने अपने राज्य के सीमा को बढ़ा लिया। इस तरह से लगभग पूरा गढ़वाल क्षेत्र 1358 तक उनके कब्जे में आ गया। अगले 918 सालों तक पंवारो का गढ़वाल पर शासन रहा।

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 चमोली को देवों के निवास के रूप में भी जानते हैं क्योंकि यहाँ के स्थानीय लोग मिथकों को विभिन्न देवताओं और देवी से जोड़कर देखते है। यह जगह वाल्मीकि ऋषि, व्यास व अन्य महान संतों के कुछ पांडुलिपियों में उल्लेखित भी है।

चमोली का आधुनिक इतिहास –

History of Chamoli in Hindi

कत्यूरी शासन के बाद 18 वीं शताब्दी के अंत में नेपाल के गोरखा राजाओं ने पौड़ी और कुमायू पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। 1803 में देहरादून में गढ़वाल और गोरखाओं की एक लड़ाई हुई थी जिसमें गोरखा विजय हुए थे और राजा प्रदुमन शाह मारे गए थे। धीरे-धीरे गढ़वाल क्षेत्र में गोरखाओं का प्रभुत्व बढ़ता गया और उन्होंने करीब 12 साल तक गढ़वाल क्षेत्र में राज किया। एक समय तक गोरखा अपने शासन को कांगड़ा तक फैला लिया था। लेकिन कांगड़ा के महाराजा रणजीत सिंह ने गोरखा को बाहर निकाल दिया।  उस समय ब्रिटिश शासन भारत में आ गया था। 1814 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोरखा पर आक्रमण कर दिया। एक वर्ष तक युद्ध चला जिसमें कंपनी की जीत हुई और 1816 में सुगौली की संधि हुई। जिसके अनुसार गढ़वाल के साथ-साथ हिमाचल और कुमायू पर भी ब्रिटिश कंपनी का शासन हो गया। कंपनी ने धीरे-धीरे मंदाकिनी नदी की सीमा को बढ़ाकर गढ़वाल का क्षेत्र विभाजन कर दिया और कुमायू, देहरादून तथा पूर्वी गढ़वाल में स्वाधीनता के नींव रखी। वहीं पश्चिम में गढ़वा राजा सुदर्शन शाह को दे दिया गया। यही पश्चिमी गढ़वाल टिहरी गढ़वाल रियासत के नाम से जाना गया। विभाजन के बाद इस पूरे क्षेत्र को पूर्वी गढ़वाल के अंतर्गत शामिल कर दिया गया और कुमायू मंडल के अंतर्गत गढ़वाल जिले का एक भाग बन गया। इस तरह से भारतीय स्वाधीनता से पहले 1839 में गढ़वाल जिला बना था।

भारत की आजादी के बाद 1960 में चमोली जिले की स्थापना की गई और इसका मुख्यालय चमोली में ही बनाया गया। गोपेश्वर चमोली से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा खूबसूरत गांव था। चमोली और गोपेश्वर को जोड़ने के लिए 1963 में एक सड़क निर्मित की गई।

 अलकनंदा घाटी में बसने के कारण चमोली क्षेत्र में अक्सर बाढ़ आया करती थी। घाटी में स्थित होने के कारण इसका भौगोलिक विस्तार करना भी मुश्किल था। चमोली जिले का कुल क्षेत्रफल 3525 वर्ग मील है। 1966 में गोपेश्वर में राजकीय डिग्री कॉलेज खोला गया और 1967 में इसे एक नगर का नाम दे दिया गया। 20 जुलाई 1970 को अलकनंदा नदी में भीषण बाढ़ आई। बाढ़ में चमोली नगर का एक क्षेत्र पूरी तरह से बह गया था। इसी के बाद चमोली जिले का मुख्यालय गोपेश्वर में स्थापित कर दिया गया। चमोली जिले में ही 1974 में अति महत्वपूर्ण घटना चिपको आंदोलन शुरू हुआ था।

चमोली जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल –

चमोली जिले का इतिहास,History of Chamoli in Hindi

बद्रीनाथ –  बद्रीनाथ उत्तराखंड का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह चार धामों से एक धाम है। यहां पर भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है। यह मंदिर बद्रीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दो शताब्दी पूर्व गढ़वाल राजा ने करवाया था। बद्रीनाथ मंदिर तीन भागों में विभाजित है – गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप।

badrinath dham image

अप कुंड – चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे पर अप कुंड स्थित एक कुंड है। इस कुंड का पानी काफी गर्म है। कहा जाता है कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले इस गर्म पानी में स्नान करना जरूरी है। यह मंदिर हर साल अप्रैल-मई के महीने में खुलता है। सर्दियों के दौरान नवंबर में यह मंदिर बंद रहता है। इसके साथ ही बद्रीनाथ में बद्री भी है जिसे सम्मिलित रूप से पांच बद्री के नाम से जानते हैं। 4 बद्री – योग बद्री, ध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्धा बद्री है।

हेमकुंड साहिब – चमोली जिले में हेमकुण्ड साहिब स्थित है। यह समुद्र तल से 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ पर बर्फ से ढके सात पर्वत है जिसे हेमकुंड पर्वत के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा तार के आकार में यहां पर गुरुद्वारा है जो झील के समीप है। यह सिख धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। यहां पर दुनिया भर से हिंदू और सिख भक्त घूमने के लिए आते हैं। बताया जाता है कि गुरु गोविंद सिंह, जो सिखों के दसवें गुरु थे यहीं पर तपस्या किए थे।

गोपेश्वर –  गोपेश्वर वर्तमान में चमोली जिले का मुख्यालय है। यहां पर बहुत सारे छोटे बड़े मंदिर हैं। यहां का प्रमुख आकर्षण मंदिर व वैमाती कुंड है। 

अनुसूया मंदिर –  सती माता अनुसुइया मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। यह नगरी वातावरण से दूर प्राकृतिक वातावरण में स्थित हिमालय के उतुंग शिखरों पर स्थित है। यहां पर पहुंचना आस्था की वास्तविक परीक्षा मानी जाती है। यह जगह आम पर्यटकों के लिए भी काफी रोमांचक है। यह मंदिर हिमालय की ऊंची दुर्गम पहाड़ियों पर स्थित है। इसलिए इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल ही चढ़ाई करनी होती है।।

पंच प्रयाग – पंच प्रयाग गढ़वाल हिमालय से निकलने वाली पांच प्रमुख नदियों का संगम स्थल है। यहां पर पांच नदियां विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग नदियों का संगम होता है। इसे पंच प्रयाग के नाम से जानते है।

देवप्रयाग – देवप्रयाग में दो प्रमुख नदियां अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है। इसके अलावा यहां पर कई प्रसिद्ध मंदिर और नदी घाटी है। वैसा बताया जाता है कि देवप्रयाग में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन कदम भूमि मांगी थी। यहां पर बसंत पंचमी दशहरा और रामनवमी पर बड़े मेले का आयोजन होता है।

विष्णु प्रयाग – विष्णु प्रयाग में अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों का संगम होता है। यह समुद्र तल से 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। विष्णु प्रयाग से जोशीमठ मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है।

औली – चमोली जिले में स्थित औली एक बेहद खूबसूरत प्राकृतिक आकर्षण वाला क्षेत्र है। यहां पर बर्फ से ढके पर्वतों और स्केटिंग का मजा लिया जा सकता है। जोशीमठ के रास्ते औली आसानी से पहुंचा जा सकता है। सर्दियों में यहां कई तरह की प्रतियोगिता का आयोजन होता है। इसके अलावा औली से नंदा देवी और दुनगिरी पर्वतों का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है।

फूलों की घाटी

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चमोली जिले में स्थित फूलों की घाटी प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है। इस घाटे में सबसे अधिक जंगली फूल की किस्म देखने को मिलती है। पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा के लिए संजीवनी बूटी लेने के लिए यहीं पर आए थे। कहा जाता है कि इस घाटी में पौधों की 521 किस्में हैं। 1982 में फूलों की घाटी नामक जगह को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था। यहां पर कई सारे जंगली जानवर जैसे काला भालू, हिरण, तेंदुआ, चीता देखे जा सकते है।

यह भी जाने : देवभूमि के पौड़ी गढ़वाल जिले का इतिहास | HISTORY OF PAURI GARHWAL IN HINDI

 

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