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जाने क्या है हिन्दू नववर्ष का इतिहास

हिन्दू नववर्ष

देवभूमि उत्तराखंड में हर त्यौहार, सामाजिक कार्य और कोई भी धार्मिक कार्य बड़े उत्साह और मनोरंजन के साथ मनाया जाता है। दोस्तो अंग्रेजी नए साल के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, लेकिन क्या आपको अपने हिन्दू नववर्ष के बारे में पता है, यदि नहीं तो आपको ये लेख अवश्य पड़ना चाहिए।

हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ

शास्त्रों में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी १ रविवार था। हिन्दू नववर्ष अंग्रेजी माह के मार्च – अप्रैल में पड़ता है। इसी कारण भारत मे सभी शासकीय और अशासकीय कार्य तथा वित्त वर्ष भी अप्रैल (चैत्र) मास से प्रारम्भ होता है। चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है। हिन्दी महीने और हिन्दू नववर्ष की शुरूआत इसी दिन से होती है।

हिन्दू नववर्ष के प्रारंभ होते ही आपको एक बहुत ही खूबसूरत अनुभव होगा। पेड़-पोधों मे फूल, मंजर और कली इसी समय आना शुरू होते है। वातावरण मे एक नया उल्लास होता है, जो मन को प्रफुल्लित कर देता है। जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है। 

दोस्तो शायद आपको पता नहीं होगा कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की भी शुरुआत इसी दिन से होती है।

हिन्दू नववर्ष का इतिहास

वैसे तो दुनिया भर में नया साल 1 जनवरी को ही मनाया जाता है लेकिन भारतीय कैलेंडर के अनुसार नया साल 1 जनवरी से नहीं बल्कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह अक्सर मार्च-अप्रैल के महीने से आरंभ होता है। दरअसल भारतीय कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। माना जाता है कि दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। मान्यता तो यह भी है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारतीयों द्वारा ही कैलेंडर यानि कि पंचाग का विकास हुआ। इतना ही नहीं 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है। कहा जाता है कि भारत से नकल कर युनानियों ने इसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया।

हिंदू नव वर्ष का महत्व

भले ही आज अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन उससे भारतीय कलैंडर की महता कम नहीं हुई है। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र की शुरुआत भी होती है। एक अहम बात और कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।

उत्तराखंड में हिन्दू नववर्ष का महत्व

हिन्दू नववर्ष के आरंभ होते ही उत्तराखंड में चारों ओर पकी फसल के दर्शन, आत्मबल में वृद्धि और नए उत्साह के साथ हम सभी इस सुंदर पर्व को खूबसूरत तरीके से मनाते है।

दोस्तो उत्तराखंड में इस नववर्ष के आरंभ होते ही खेतों में हलचल, फसलों की कटाई और जरा दृष्टि फैलाइए भारत के आभा मंडल के चारों ओर क्या सुंदर नजारा दिखाई देता है। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा जाती हैं।

उत्तराखंड में नई फसल के घर मे आने का समय भी यही होता है। इस समय प्रकृति मे उष्णता बढ्ने लगती है, जिससे पेड़ -पौधे, जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है। लोग इतने मदमस्त हो जाते है कि आनंद में मंगलमय  गीत गुनगुनाने लगते है। 

संवत्सर की मान्यता

चैत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है, वहीं वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है। मेषार्क प्रवेश के दिन जो वार होता है, वही संवत्सर का मंत्री होता है। इस दिन सूर्य मेष राशि मे होता है। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधवारें, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं।

चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है।

हिन्दू नववर्ष कैसे मनाएँ

1) एक दुसरे को हिन्दू नववर्ष की शुभकामनाएँ दें।

2) अपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को हिन्दू नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।

3) इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका  फेहराएँ।

4) अपने घरों के मुख्य द्वार को आम के पत्तों की माला से सजाएँ।

5) घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।

कहा जाता है कि हिन्दू नववर्ष के आरंभ में नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।

दोस्तो अपने रीति रिवाजों को जाने और पहचाने। इनसे दूर मत जाइए। हमारी इस कोशिश को सफल बनाने में सहयोग करें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

:.. आप सभी को हिन्दू नववर्ष की शुभकामनाएं ..:

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