Site icon Lovedevbhoomi

देवभूमि का ऐसा मंदिर जहां घंटी बजाना मना है

binsar temple

दोस्तों आज हम आपको लव देवभूमि उत्तराखंड के इस पोस्ट में अल्मोड़ा जिले के रानीखेत क्षेत्र में स्थित  बिनसर महादेव मंदिर (सोनी बिनसर) के बारे में जानकारी देने वाले है | दोस्तों ये मंदिर बेहद ही खूबसूरत और प्राकृतिक सौंदर्य की एक मिसाल हैं। इस मंदिर की बनावट मन को मोहने वाली हैं। चलिए जानते हैं इसके बारे में –

बिनसर महादेव मंदिर

बिनसर महादेव मंदिर अपने पुरातात्विक महत्व और खूबसूरती के लिए लोकप्रिय है। बिनसर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय हिंदू मंदिर है । यह मंदिर उत्तराखंड के जिला अल्मोड़ा में स्थित पर्यटन नगरी रानीखेत से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित सोनी देवलीखेत नामक स्थान में स्थित है । यह मन्दिर समुद्र तट से लगभग 2480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर चारो ओर से हरे-भरे देवदार के जंगलों से घिरा हुआ एक मैदान में स्थित हैं। कहा जाता है कि बिनसर महादेव 10 वीं सदी में बनाया गया था। बिनसर महादेव उत्तराखंड में सदियों से एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल रहा है।

बिनसर महादेव मंदिर

ये मंदिर भगवान गणेश, शिवजी, माता गौरी और महेशमर्दिनी की मूर्तियों के साथ साथ इसकी स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है। यहां पर महेशमर्दिनी की मूर्ति 9 वीं शताब्दी की तारीख में ‘नगरीलिपी’ में ग्रंथों के साथ स्थापित है।

हिंदू भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में किया गया था | महेशमर्दिनी, हर गौरी और गणेश के रूप में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ निहित, इस मंदिर की वास्तुकला शानदार है। ये मंदिर यहां पर रहने वाले स्थानीय निवासियों के आस्था व श्रद्धा का केंद्र है। इस मन्दिर में हर साल हजारों लाखो की संख्या में मंदिर के दर्शन के लिए देश विदेशों से श्रद्धालु आते हैं।

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवो के द्वारा एक ही रात में कराया गया था। कहा जाता है कि इस मंदिर को राजा पीथू ने अपने पिता बिन्दू की याद में बनवाया था, इसीलिए इस मंदिर को बिन्देश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है |

मंदिर से जुड़ी कुछ कहावतें

बिनसर महादेव मंदिर

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित मंदिरों के पीछे कुछ कहावतें भी होती है। इस मंदिर के पीछे भी कुछ कहावतें हैं। चलिए जानते हैं उनके बारे में –

ऐसा कहा जाता है कि एक दिन इस स्थान पर अचानक से शिवलिंग निकल आया और उस शिवलिंग के अंदर से भगवान शिव जी की आवाज़ आयी कि मैं प्रकट हो गया हूं, इस जगह में मेरा मंदिर बनवा दो। फिर सभी गांव वालो ने मिलकर इस जगह में भगवान शिव जी के इस मन्दिर का निर्माण करवाया।

बिनसर महादेव मंदिर

दूसरी कहावत के अनुसार, निकटवर्ती सौनी गांव में मनिहार लोग रहते थे। उनमें से एक की दुधारु गाय रोजाना बिनसर क्षेत्र में घास चरने जाती थी। घर आने पर इस गाय का दूध निकला रहता था। ऐसा रोज रोज होता देख एक दिन मनिहार ने गाय का पीछा करने का फैसला किया और वो गाय के पीछे चला गया और देखा कि जंगल में एक शिला के ऊपर खड़ी होकर गाय दूध छोड़ रही थी और शिला दूध पी रही थी। इससे गुस्साए मनिहार ने गाय को धक्का देकर कुल्हाड़ी के उल्टे हिस्से से शिला पर प्रहार कर दिया। इससे शिला से रक्त की धार बहने लगी। उसी रात एक बाबा ने स्वप्न में आकर मनिहारों को गांव छोड़ने को कहा और वह गांव छोड़कर चले गए। इसके कुछ समय पश्चात सौनी बिनसर के निकट किरोला गांव में एक 65 वर्षीय नि:संतानी वृद्ध रहते थे। उन्हें सपने में एक साधु ने दर्शन देकर कहा कि कुंज नदी के तट की एक झाड़ी में शिवलिंग पड़ा है। उसे प्रतिष्ठित कर मंदिर का निर्माण करो। उस व्यक्ति ने आदेश पाकर मंदिर बनाया और उसे पुत्र प्राप्त हो गया।

पूर्व में इस स्थान पर छोटा सा मंदिर स्थापित था। वर्ष 1959 में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से जुड़े ब्रह्मलीन नागा बाबा मोहन गिरि के नेतृत्व में इस स्थान पर भव्य मंदिर का जीर्णोद्घार शुरू हुआ। इस मंदिर में वर्ष 1970 से अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर की व्यवस्थाएं देख रहे 108 श्री महंत राम गिरि महाराज ने बताया कि यहां श्री शंकर शरण गिरि संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई है जिसकी वजह से इस मंदिर में घंटी नहीं बजाई जाती हैं ताकि बच्चो की पढ़ाई में व्यवधान न हो। इसके लिए मंदिर के बाहर एक नोटिस भी लगाया गया है कि कृपया घंटी ना बजाए।

इस मंदिर की खूबसूरती का जिक्र किया ही नहीं जा सकता है। हिमालय का जो नजारा यहां से देखने को मिलता है, वह शायद कुमाऊं में कहीं और से नहीं मिलेगा। सामने फैली वादी और उसके उस पार बाएं से दाएं नजरें घुमाओ तो एक के बाद एक हिमालय की चोटियो को नयनाभिराम, अबाधित दृश्य। चौखंबा से शुरू होकर त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा कोट, शिवलिंग और पंचाचूली की पांच चोटियों की अविराम श्रृंखला आपका मन मोह लेती है और अगर मौसम खुला हो और धूप निकली हो तो आप यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री तक को निहार सकते हैं।

सवेरे सूरज की पहली किरण से लेकर सूर्यास्त तक इन चोटियों के बदलते रंग आपको इन्हें अपलक निहारने के लिए मजबूर कर देंगे। यहां से मन न भरे तो आप थोड़ा और ऊपर जाकर बिनसर हिल या झंडी धार से अपने नजारे को और विस्तार दे सकते हैं। बिनसर ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए ये स्थल स्वर्ग है। चीड़ व बुरांश के जंगलों से लदी पहाडि़यों में कई पहाड़ी रास्ते निकलते हैं। जंगल का यह इलाका बिनसर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के तहत आता है। इस अभयारण्य में कई दुर्लभ जानवर, पक्षी, तितलियां और जंगली फूल देखने को मिल जाते हैं।

इस मन्दिर में हर साल मई से जून के महीने में ग्यारह दिन का यज्ञ हवन किया जाता है और यज्ञ हवन के दौरान ग्याहर दिन तक इस मन्दिर में लंगर लगाया जाता है और आखिरी दिन इस मन्दिर में एक विशाल भंडारा होता है।

बिनसर महादेव मंदिर

आशा करता हूं कि आपको उत्तराखंड की ये जानकारी पसंद आयी होगी। आगे भी ऐसी जानकारी जानने के लिए आप हमें हमारे फेसबुक पेज और इंस्टाग्राम पेज लवदेवभूमि को लाइक कर सकते हैं।

जय उत्तराखंड

 

Exit mobile version